मधुमंगल जी कालदीप के रहने वाले हैं और वे कोलकाता में मीठे पान की खेती करते हैं। पान की यह खेती साधारण तरीके से नहीं होती, बल्कि इसके लिए खास देखभाल और तकनीक की जरूरत होती है। यह पौधा बीज से नहीं उगता, बल्कि इसे दूसरे खेतों से लाना पड़ता है।

पान के पौधे लगाने की प्रक्रिया

सबसे पहले पान की बेल को लाकर 2-3 दिन पानी में रखा जाता है ताकि उसकी जड़ें निकल सकें। इसके बाद मिट्टी तैयार की जाती है। मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए उसमें कैल्शियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम मिलाया जाता है। फिर रॉ (कतारें) बनाई जाती हैं और हल्का पानी छिड़ककर बेलों को इन कतारों में सुला दिया जाता है। कुछ समय बाद बेलों से नए पौधे निकलते हैं।

पान की बेलें लगभग 100 फीट तक बढ़ सकती हैं। इसके लिए खास शेड बनाया जाता है, जिससे पौधों को सही मात्रा में धूप और ठंड से बचाया जा सके। इस शेड को बनाने में 1 से 1.5 लाख रुपये तक का खर्च आता है। सर्दियों में ज्यादा ठंड न पहुंचे, इसलिए प्लास्टिक के पेपर लगाए जाते हैं, और गर्मी में तेज धूप से बचाने के लिए खेत से निकला जैविक कचरा ऊपर बिछा दिया जाता है।

पानी और खाद का विशेष ध्यान

मधुमंगल जी ने अपने खेत में 4,000 पान के पौधे लगाए हुए हैं। हर पौधे के बीच 5 से 6 इंच की दूरी रखी जाती है ताकि उन्हें बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिले। इन पौधों से 1,12,000 से लेकर 1,50,000 तक पत्ते मिल सकते हैं।


पानी देने का तरीका भी मौसम के हिसाब से अलग होता है:

  • गर्मियों में एक दिन छोड़कर एक दिन पानी दिया जाता है।
  • सर्दियों में दो दिन छोड़कर एक दिन पानी दिया जाता है।
  • खेत में मोटर और पाइप के जरिए पानी दिया जाता है ताकि नमी बराबर बनी रहे।

बारिश के मौसम में शेड को खुला रखा जाता है ताकि अधिक पानी रुकने से पत्ते खराब न हों। खेत का स्तर जमीन से चार गुना ऊँचा बनाया गया है, जिससे बारिश का पानी खुद-ब-खुद बहकर बाहर चला जाए।

पान की पत्तियों की तुड़ाई और देखभाल

एक पान के पेड़ से 20 से 35 पत्ते तक मिल सकते हैं और साल में चार बार इस प्रक्रिया को दोहराया जाता है। पत्तों की तुड़ाई के बाद बेलों को एक हफ्ते के बाद सुला दिया जाता है, जिससे वे बेल सूखे ना।

पत्तों की चमक (पॉलिशिंग) कोलकाता के मीठे पान में ज्यादा होती है, जबकि इस पान में थोड़ी कम पॉलिशिंग दिखाई देती है। खेत में एक स्काई ब्लू कलर की खाद का इस्तेमाल किया जाता है, जो पौधों को सही पोषण देती है। खेत के नीचे कपड़ा बिछाया गया है, जिससे पानी धीरे-धीरे मिट्टी में जाए और नमी बनी रहे और जो पोषकतत्व है मिटटी के अंदर वो ना निकले। 


खर्च और उत्पादन

  • 5,000 बेलों के खेत का आकार → 50x120 फीट
  • खेत का खर्च → ₹5 लाख
  • प्रत्येक पेड़ से निकलने वाले पत्ते → 20 से 35
  • 4,000 पौधों से उत्पादन → 1,12,000 से 1,50,000 पत्ते

निष्कर्ष

मधुमंगल जी की मेहनत और सही तकनीक के कारण उनका मीठे पान की खेती का व्यवसाय सफलतापूर्वक चल रहा है। उन्होंने न केवल सही सिंचाई और खाद का ध्यान रखा है, बल्कि पौधों को सही पर्यावरण और सुरक्षा भी दी है। उनकी यह खेती आने वाले समय में और भी उन्नति करेगी और लोगों तक शुद्ध और बेहतरीन गुणवत्ता का मीठा पान पहुँचाएगी।

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