भारत में मिश्रित खेती है अधिक सफल


कृषि प्रधान देश भारत की लगभग 60% जनसंख्या खेती पर निर्भर है। पारंपरिक कृषि प्रणालियों में मिश्रित खेती (Mixed Farming) का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह प्रणाली एक ही खेत में विभिन्न फसलें उगाने के साथ-साथ पशुपालन, मत्स्य पालन, और बागवानी जैसी गतिविधियों को शामिल करती है। यह न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है, बल्कि संसाधनों के अधिकतम उपयोग और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में भी मदद करती है।
मिश्रित खेती:
वह प्रणाली है जिसमें एक खेत में कई गतिविधियों का एक साथ संचालन किया जाता है। इसमें प्रमुखतः फसल उत्पादन और पशुपालन शामिल है, लेकिन इसमें मत्स्य पालन, मुर्गी पालन और मधुमक्खी पालन जैसी गतिविधियाँ भी सम्मिलित की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए गन्ने के खेत के किनारे सब्जियाँ उगाना। गेहूँ के खेत में पशुओं के लिए चारा उगाना एवं खेत के तालाब में मछली पालन करना। अर्थात् एक ही साथ कई सारी कृषि गतिविधियों को में भाग लेना मिश्रित खेती होता है।
भारत में मिश्रित खेती की परंपरा:
भारत में मिश्रित खेती की परंपरा हजारों साल पुरानी है। प्राचीन कृषि पद्धतियाँ प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने पर आधारित थीं। किसान मुख्य फसल के साथ-साथ चारे, सब्जियों और दालों को उगाते थे और पशुपालन को अपनाते थे। यह प्रणाली ग्रामीण भारत में आज भी लोकप्रिय है, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के बीच।

मिश्रित खेती के प्रकार-
फसल और पशुपालन का संयोजन:
खेत में मुख्य फसल उगाने के साथ पशुपालन जैसे गाय, भैंस, बकरी या मुर्गी पालन किया जाता है।
फसल और मत्स्य पालन:
खेत के एक हिस्से में फसलें उगाई जाती हैं, जबकि तालाब में मछलियाँ पाली जाती हैं।
फसल और बागवानी का संयोजन:
मुख्य फसलों के साथ खेत की सीमा पर फलदार वृक्ष या सब्जियाँ लगाई जाती हैं।
फसल, पशुपालन और कुक्कुट पालन:
यह प्रणाली व्यापक स्तर पर पोषण और आय प्रदान करती है।
भारत में मिश्रित खेती का महत्व-
- आय में वृद्धि: मिश्रित खेती के माध्यम से किसान कई स्रोतों से आय प्राप्त कर सकते हैं। जैसे धान की खेती के साथ मछली पालन करने से मछलियों की बिक्री से अतिरिक्त आय होती है।
- जोखिम में कमी: एक ही फसल पर निर्भरता कम होने से किसानों को प्राकृतिक आपदाओं या बाजार में कीमतों में गिरावट से बचाव मिलता है।
- मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना: मिश्रित खेती में विभिन्न फसलों और पशुपालन के संयोजन से मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ती है। उदाहरण के लिए, पशुओं के गोबर का उपयोग खेतों में खाद के रूप में किया जा सकता है।
- संसाधनों का कुशल उपयोग: मिश्रित खेती में जल, भूमि और श्रम जैसे संसाधनों का कुशल उपयोग होता है। तालाब का पानी मछली पालन और खेतों की सिंचाई के लिए उपयोगी होता है।पशुओं का चारा खेतों से प्राप्त होता है।
- पोषण सुरक्षा: मिश्रित खेती में फसल, दूध, मांस, अंडे और मछलियाँ उपलब्ध होती हैं, जो पोषण सुरक्षा प्रदान करती हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण की समस्या को हल करने में मददगार है।
- पर्यावरणीय लाभ: मिश्रित खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का कम उपयोग होता है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है। जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है।ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी आती है।
- ग्रामीण विकास में योगदान: मिश्रित खेती ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाती है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए आय के अतिरिक्त स्रोत उपलब्ध होते हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन होता है।
यह प्रणाली किसानों को अनिश्चित परिस्थितियों में भी आय का एक स्थिर स्रोत प्रदान करती है। जिसमें कम लागत होती है, क्योंकि पशुपालन और फसलों के लिए संसाधन साझा किए जाते हैं। साल भर उत्पादन संभव है, जैसे रबी, खरीफ, और जायद फसलें उगाई जा सकती हैं। एक साथ कई फसलों और जीवों को पालने से जैव विविधता भी बढ़ती है।

मिश्रित खेती की चुनौतियाँ:
किसानों को आधुनिक तकनीकों की जानकारी न होने के कारण क्या ही समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पशुपालन, तालाब निर्माण या ग्रीन हाउस बनाने में अधिक लागत लग जाती है। इसी के साथ सूखा, बाढ़ और तापमान में वृद्धि से फसलों और पशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
सरकार और संस्थानों की भूमिका:
भारत सरकार और विभिन्न संस्थाएँ मिश्रित खेती को बढ़ावा देने के लिए योजनाएँ चला रही हैं:

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY):
किसानों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।पशुपालन योजनाएँ डेयरी विकास और पशुपालन को प्रोत्साहन देती हैं। कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) किसानों को मिश्रित खेती की आधुनिक तकनीक सिखाते हैं। बैंक ऋण और सब्सिडी तालाब निर्माण, बागवानी और पशुपालन के लिए अनुदान उपलब्ध है।
मिश्रित खेती भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि की स्थिरता और किसानों की समृद्धि के लिए एक कुशल और टिकाऊ प्रणाली है। यह न केवल आय बढ़ाने और संसाधनों का बेहतर उपयोग करने में सहायक है, बल्कि पर्यावरणीय लाभ भी प्रदान करती है। इसे प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को तकनीकी जानकारी, वित्तीय सहायता और बाजार की सुविधाएँ उपलब्ध करानी होंगी। सही नीतियों और जागरूकता के साथ, मिश्रित खेती भारत के कृषि क्षेत्र में नई क्रांति ला सकती है। ऐसी ही जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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