पंचगव्य – खेती के लिए रामबाण औषधि

11 Sep 2025 | NA
पंचगव्य – खेती के लिए रामबाण औषधि

जिस धरती को रसायनों ने बीमार कर दिया, उसे पंचगव्य फिर से जीवन दे रहा है। आज की तेज़ रफ्तार और मुनाफ़ाखोर खेती ने हमारी मिट्टी को बंजर बना दिया है, अनाज को ज़हरीला कर दिया है और किसानों को कर्ज़ में डुबो दिया है। लेकिन इसी अंधेरे में एक उजाला फिर से लौट रहा है – हमारी परंपरा, हमारा ज्ञान, और हमारी गाय। पंचगव्य, सदियों पुरानी भारतीय कृषि पद्धति की वह जड़ी-बूटी है, जो न केवल फसलों को प्राकृतिक पोषण देती है, बल्कि मिट्टी, किसान और उपभोक्ता सभी के जीवन में बदलाव लाती है। यह कोई नई खोज नहीं, बल्कि भारत की मिट्टी से जुड़ा वह सत्य है जिसे हम भूल बैठे थे। अब समय आ गया है कि हम इस जैविक विरासत को अपनाएँ और एक स्वस्थ, आत्मनिर्भर और टिकाऊ खेती की ओर कदम बढ़ाएँ।

What is Panchgavya

क्या है पंचगव्य?

‘पंचगव्य’ संस्कृत का शब्द है – पंच यानी पाँच और गव्य यानी गाय से प्राप्त वस्तुएँ। पंचगव्य पाँच चीज़ों से मिलकर बनता है: 1. गाय का दूध 2. गाय का दही 3. गाय का घी 4. गाय का मूत्र  5. गाय का गोबर

ये पाँचों मिलकर एक ऐसी जैविक औषधि बनाते हैं जो न केवल फसलों को पोषण देती है, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी सुधारती है और कीटों से भी रक्षा करती है।

 क्यों है ये खेती के लिए रामबाण?

1. मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है: रासायनिक खादों से मिट्टी धीरे-धीरे बंजर होती जा रही है। पंचगव्य में मौजूद जैविक तत्व मिट्टी को पुनर्जीवित करते हैं, उसमें लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ाते हैं और उसके पोषण स्तर को संतुलित करते हैं।

2. फसल की गुणवत्ता सुधारता है: इससे उगाई गई फसलें स्वादिष्ट, पौष्टिक और रसायन-मुक्त होती हैं। उनका आकार प्राकृतिक होता है और उनका भंडारण समय भी अधिक होता है।

3. कीटनाशक के रूप में प्रभावी: गाय का मूत्र और गोबर प्राकृतिक कीट-नाशक का कार्य करते हैं। इससे कीड़े फसल से दूर रहते हैं और किसी तरह का रसायन प्रयोग करने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

4. सस्ता और सुलभ: जहाँ रासायनिक खादें और दवाइयाँ महंगी होती हैं, वहीं पंचगव्य को किसान खुद अपने घर पर तैयार कर सकता है, जिससे उसकी लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है।

5. पारंपरिक ज्ञान का पुनर्जीवन: पंचगव्य भारत की प्राचीन कृषि प्रणाली का हिस्सा रहा है। इसे अपनाकर हम अपने पुरखों के ज्ञान को फिर से जीवंत कर रहे हैं।

पंचगव्य कैसे बनाएं?

पंचगव्य को बनाने की विधि सरल है, लेकिन कुछ सावधानियाँ रखनी होती हैं: सामग्री: गाय का ताज़ा दूध – 1 लीटर दही – 500 ग्राम, घी – 250 ग्राम, गोबर – 5 किलोग्राम, गौमूत्र – 3 लीटर, केला (इच्छानुसार) – 3-4 पीस, गुड़ – 500 ग्राम, नारियल पानी या गन्ने का रस – 1 लीटर 

विधि: 1. सबसे पहले गोबर और गौमूत्र को किसी मिट्टी या प्लास्टिक के ड्रम में मिलाकर ढक दें। 2. उसमें घी मिलाएं और 3 दिन तक दिन में 2 बार हिलाएं। 3. फिर उसमें दूध, दही, केला और गुड़ मिलाएं। 4. 7 से 10 दिन तक उसे रोज़ अच्छी तरह चलाते रहें। 5. जब मिश्रण सड़ने लगे और उसमें तेज़ खमीर आने लगे, तो पंचगव्य तैयार है।

इस्तेमाल कैसे करें: इसे पानी में 1:10 अनुपात में मिलाकर फसलों पर छिड़का जा सकता है। बीज शोधन में भी इसका उपयोग किया जाता है मिट्टी में डालने से यह जड़ों की पकड़ मजबूत करता है।

Method of making Panchgavya

पंचगव्य का वैज्ञानिक पहलू

कई कृषि वैज्ञानिकों और जैविक खेती के विशेषज्ञों ने पंचगव्य की गुणवत्ता और प्रभाव को प्रमाणित किया है। इसमें मौजूद लाखों सूक्ष्म जीवाणु मिट्टी की बनावट सुधारते हैं, जैविक नाइट्रोजन और फॉस्फेट प्रदान करते हैं और फसल की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। कई विश्वविद्यालयों और कृषि अनुसंधान केंद्रों में पंचगव्य पर अध्ययन हुए हैं, और यह सिद्ध हो चुका है कि इसका उपयोग पारंपरिक रसायनों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित और लाभदायक है।

किसानों की कहानियाँ – अनुभव से प्रमाण

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के किसान रमेश सिंह बताते हैं: "मैं पहले यूरिया और डीएपी पर निर्भर था, लेकिन लागत ज़्यादा और मुनाफा कम होता था। तीन साल पहले जैविक खेती अपनाई और पंचगव्य बनाना शुरू किया। अब मेरी जमीन उपजाऊ भी है और आमदनी भी पहले से दोगुनी हो गई है।"

ऐसी ही कहानी महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान और तमिलनाडु के सैकड़ों किसानों की है, जो रासायनिक खेती से जैविक खेती की ओर मुड़े हैं और पंचगव्य ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है।

पंचगव्य को अपनाने के फायदे

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, स्वस्थ भोजन का उत्पादन, कृषि लागत में कमी, प्रदूषण में कमी और पर्यावरण की रक्षा, देशी गायों की महत्ता और संरक्षण

निष्कर्ष

आज जब पूरी दुनिया जैविक और कृषि की ओर बढ़ रही है, भारत के पास पंचगव्य जैसा अमूल्य खजाना पहले से मौजूद है। यह न केवल खेती के लिए रामबाण औषधि है, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम भी है। पंचगव्य अपनाना सिर्फ एक खेती की तकनीक नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आंदोलन है, जो आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य देने की क्षमता रखता है। आइए, पंचगव्य को अपनाएं और जैविक क्रांति में भागीदार बनें। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये ।। जय हिन्द जय भारत ।।

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