रबड़ बनाने का प्राकृतिक तरीका, जानकार रह जाएंगे दंग


एक विशेष पेड़ से निकलने वाले दूध द्वारा रबड़ का निर्माण होता है। यह तो आप सभी ने सुना होगा, लेकिन वह कौन सा पेड़ और किन-किन प्रक्रियाओं द्वारा रबड़ का निर्माण किया जाता है शायद ही आप जानते हों…. आज हम जानेंगे केरल के एक किसान द्वारा प्राकृतिक रूप से बहुमूल्य रबड़ की सीट बनाने की तकनीक, जो वृहत रूप से 400 पेड़ों द्वारा दूध एकत्रित कर इस शानदार कार्य को कर रहे हैं।

पेड़ का परिचय:
रबड़ के पौधे जिन्हें वैज्ञानिक रूप से फिक्स इलास्टिक के नाम से जाना जाता है। ये सजावटी मूल्यों, स्वास्थ्य लाभों तथा रबड़ की सीटें प्राप्त करने के लिए व्यापक रूप से उगाए जाते हैं। इस पौधे को वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में लगाना भी शुभ माना जाता है।

यह एक सुंदर और सदाबहार पौधा है, जिसे आम भाषा में रबर ट्री भी कहते हैं। ये वृक्ष भूमध्य रेखा सदाबहार वनों में पाए जाते हैं तथा इससे निकलने वाले दूध को लैटेक्स कहते हैं। देश में रबड़ का उत्पादन सबसे पहले उष्णकटिबंधीय क्षेत्र पेरियार केरल में हुआ था और आज भी केरल रबर का उत्पादन करने में शीर्ष स्थान रखता है।

पेड़ से दूध प्राप्त करने की प्रक्रिया:
दूध अर्थात् लैटेक्स निकालने के मेथड को टैपिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया में रबड़ के पेड़ की छाल में एक विशेष प्रकार का कट बनाया जाता है। यह कट इतना गहरा होता है कि पेड़ को कोई नुकसान नहीं पहुंचता, लेकिन इससे लेटेस्ट का प्रवाह शुरू होता है, जिसे एक बर्तन को पेड़ की सहायता से बांधकर उसमें एकत्रित कर लिया जाता है।

पेड़ों से भिन्न-भिन्न मात्रा में दूध का स्राव होता है। इस प्रकार जब डेढ़ से दो लीटर दूध इकट्ठा हो जाता है, तो उसकी सीट बनाने की प्रक्रिया आरंभ होती है। पेड से एक बार दूध लेने के उपरांत कुछ समय बाद फिर से कट की रिकवरी होकर छाल बननी शुरू हो जाती है और किसान बार-बार लेटेक्स प्राप्त कर पाते हैं। यह पेड़ कई सालों तक जीवित रह सकता है, यहां तक की 10 से 15 सालों तक भी। तथा इसकी ऊंचाई 100 से 120 फीट तक हो जाती है।
लैटेक्स से रबर शीट का निर्माण:
सीट बनाने के लिए सिल्वर के आयताकार फर्मे होते हैं, जिनमें डेढ़ लीटर लेटेक्स एक बड़ी-सी छलनी द्वारा फिल्टर करके डाला जाता है। इस डेढ़ लीटर लेटेक्स में सवा लीटर पानी डालकर उसे मिला देते हैं तथा फिर इसमें विभिन्न रसायनों का मिश्रण किया जाता है। जैसे कि सल्फर जो रबड़ की मजबूती और लचीलापन बढ़ाने में मदद करता है। अन्य रसायनों का मिश्रण कर इसको 2 से 3 घंटे के लिए छोड़ देते हैं या मिश्रण को हल्का गर्म भी किया जाता है ताकि रबड़ की फॉर्म बदल सके। इस प्रक्रिया को वल्केनाइजेशन कहा जाता है।

इस प्रकार एक लंबी सतत रबड़ की सीट प्राप्त हो जाती है जिसे दो-तीन दिन तक सुखाते हैं और फिर एक मशीन में कंप्रेस अर्थात् दबाकर सीट को फैला कर बड़ा कर देते हैं। इसके उपरांत यह सीट सुखाई जाती है और काटकर मार्केट में भेजने हेतु तह बना देते हैं। अंततः एक सीट सूख जाने के बाद लगभग 800 ग्राम वजन की प्राप्त होती है।

प्राकृतिक रबड़ का उपयोग:
इस प्राकृतिक रबड़ का उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है। जैसे- ऑटोमोबाइल उद्योग में टायर बनाने हेतु प्राकृतिक रबड़ का अत्यधिक उपयोग होता है यह टायरों को लचीला और मजबूत बनाती है।

फुटवियर में जूते और चप्पल बनाने हेतु भी प्राकृतिक रबर का प्रयोग होता है, जो कृत्रिम रबड़ की अपेक्षा अधिक ग्रिप और आराम प्रदान करती है।रबर एक अच्छे इंसुलेटर के रूप में कार्य करते हैं, जिससे इलेक्ट्रिकल उपकरणों में भी इसका प्रयोग होता है। कुशन, गद्दे और अन्य घरेलू सामानों में रबड़ का प्रयोग। रबड़ का प्रयोग चिकित्सा उपकरणों जैसे कि ग्लव्स और बैंडेज में भी किया जाता है।

प्राकृतिक रबड़ के लाभ:
बाजार में प्राकृतिक रबड़ की मांग कृत्रिम से कहीं अधिक रहती है, क्योंकि यह अधिक लचीली, जलरोधी मजबूत और हल्की होती है तथा इसका पुन: भी उपयोग किया जा सकता है, इसलिए ये पर्यावरण की दृष्टि से भी फायदेमंद है।तो दोस्तों आज हमने जाना कैसे लैटेक्स प्राप्त अर्थात् रबड़ टेपिंग और सीट का निर्माण किया जाता है। यह एक फायदेमंद खेती हो सकती है, बशर्ते इस पेड़ की प्रकृति के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए जुड़े रहे "हेलो किसान" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद, जय किसान॥
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