कृषि क्षेत्र में आज़ादी के 77 साल का सफर

14 Aug 2025 | NA
कृषि क्षेत्र में आज़ादी के 77 साल का सफर

15 अगस्त 1947 को जब भारत ने आज़ादी की सांस ली, तो सिर्फ एक देश आज़ाद नहीं हुआ था, एक उम्मीद, एक भविष्य और एक आत्मा भी जन्मी थी वो आत्मा जो खेतों में पसीना बहाने वाले किसान के दिल में बसती है। उस दौर में जब देश की आर्थिक हालत डगमगाई हुई थी, न कोई बड़ा उद्योग था, न मजबूत ढांचा तब देश की रीढ़ बना कृषि क्षेत्र। आज, जब हम आज़ादी के 77 वर्ष पूरे कर चुके हैं, यह जरूरी हो जाता है कि हम पीछे मुड़कर देखें कि भारतीय खेती ने कैसे खुद को बदलते युग के साथ ढाला, किस तरह चुनौतियों से लड़ी और कैसे वह आज ‘आत्मनिर्भर भारत’ की सबसे अहम कड़ी बनकर उभरी।

1947 farmers in india

1. 1947: खेती, लेकिन मजबूरी वाली

आज़ादी के समय देश की लगभग 70% आबादी खेती पर निर्भर थी, लेकिन खेती की हालत बेहद खराब थी: सिंचाई का साधन न के बराबर था बारिश पर निर्भरता। बीज पारंपरिक थे, न तो वैज्ञानिक, न ही उन्नत। बैल और लकड़ी के हल से खेती होती थी। खाद्यान्न उत्पादन इतना कम था कि देश को अमेरिका से गेहूं मांगना पड़ता था  किसानों को उचित दाम नहीं मिलते थे, और कर्ज के बोझ में दबे रहते थे।उस समय का भारत पेट भरने के लिए खेती करता था न कि व्यापार या आय के लिए।

2. 1960s: हरित क्रांति ने बदली तस्वीर

1947 से 1965 तक भारत कई बार अकाल, सूखा और अनाज संकट का शिकार हुआ। हालात इतने बिगड़ गए कि भारत को भुखमरी से जूझना पड़ा। फिर आया एक मोड़ हरित क्रांति का। डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन जैसे वैज्ञानिकों ने उन्नत गेहूं और चावल की किस्में विकसित कीं। सरकार ने सिंचाई के साधनों, ट्रैक्टरों, खाद और कीटनाशकों का प्रचार-प्रसार किया। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य खेती के हब बन गए। उत्पादन इतना बढ़ा कि भारत ने खुद अनाज का आयात बंद कर दिया। भारत भिखारी से अन्नदाता बन गया।

Green revolution in india

3. श्वेत, नीली और दूसरी क्रांतियाँ

खेती सिर्फ गेहूं-चावल तक सीमित नहीं रही, बल्कि कई और क्षेत्रों में क्रांति आई: श्वेत क्रांति: डॉ. वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में दूध उत्पादन में जबरदस्त उछाल आया। "अमूल" एक राष्ट्रीय ब्रांड बना। इससे गांवों की महिलाएं भी आर्थिक रूप से सशक्त हुईं। नीली क्रांति: मछली पालन में तकनीकी सुधार हुआ। पीली क्रांति: तिलहन और सरसों जैसी फसलों की पैदावार बढ़ी। गोल्डन रिवोल्यूशन: बागवानी, फूलों और फलों की खेती को बढ़ावा मिला। इन सबका असर यह हुआ कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का दायरा खेती से निकलकर पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी तक फैल गया।

blue revolution and golden revolution in india

4. किसान अब सिर्फ हल नहीं, मोबाइल भी चलाता है

आज के किसान के पास सिर्फ खेत नहीं, फोन और ज्ञान भी है। Hello Kisaan  जैसे ऑनलाइन पोर्टल से किसान मंडियों से जुड़कर बेहतर दाम पा रहा है। PM-Kisan योजना से सालाना ₹6,000 सीधे किसानों के खातों में जा रहे हैं। सोलर पंप, ड्रोन, सेंसर, और मोबाइल ऐप से खेती अब स्मार्ट होती जा रही है। मौसम की भविष्यवाणी, मिट्टी की जांच और क्रॉप मैनेजमेंट अब किसान के हाथों में है। कृषि अब सिर्फ पसीने से नहीं, तकनीक से भी चल रही है।

technology used in farms

5. लेकिन, अभी भी लंबा रास्ता बाकी है

हमने बहुत कुछ हासिल किया है, लेकिन चुनौतियां अभी भी सामने खड़ी हैं: 85% किसान छोटे और सीमांत हैं जिनकी जमीन बहुत कम है प्राकृतिक आपदाओं से फसलें बर्बाद हो जाती हैं जलवायु परिवर्तन एक गंभीर खतरा बन चुका है। बिचौलियों की भूमिका आज भी बाजार में किसानों के हक को मारती है। MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी सभी फसलों पर नहीं है। कर्ज और घाटे की वजह से किसान आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर होते हैं। यह कड़वा सच है कि आज भी एक बड़ा तबका खेती को फायदे का सौदा नहीं मानता।

6.आत्मनिर्भर किसान और प्राकृतिक खेती

भारत सरकार अब प्राकृतिक खेती, जैविक खेती और जीरो बजट खेती को बढ़ावा दे रही है। कम लागत, बिना रसायन और अधिक पोषण वाली खेती का चलन बढ़ा है। देशी गाय, गोबर, गोमूत्र और जैविक खाद पर आधारित खेती को सरकार समर्थन दे रही है। 2025 तक 10 लाख हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती के अंतर्गत लाने का लक्ष्य है। इसके अलावा, कृषि स्टार्टअप्स, फार्म प्रोसेसिंग यूनिट्स और एक्सपोर्ट में तेजी से वृद्धि हो रही है।

7. युवा लौट रहे हैं खेतों की ओर

सबसे बड़ी बात अब गांव का पढ़ा-लिखा युवा भी खेती को करियर मान रहा है: मल्टीक्रॉपिंग, हाइड्रोपोनिक्स, कंटेनर फार्मिंग जैसे इनोवेशन ला रहा है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन मार्केटिंग से खुद का ब्रांड बना रहा है। सीधा ग्राहक तक सामान पहुंचा रहा है "Farmer to Consumer" मॉडल से। खेती अब बोझ नहीं, अवसर बन रही है।

youth intersted in agriculture

मिट्टी की ताकत, देश की असली आज़ादी

भारत की आज़ादी की कहानी अधूरी है अगर हम किसान और खेती को न देखें। इस देश ने पेट से पेट भरने तक, बैल से ड्रोन तक, और बोझ से ब्रांड तक का जो सफर तय किया है, वह गर्व करने लायक है। आज जब हम 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, तो यह याद रखना जरूरी है कि अन्नदाता की समृद्धि ही राष्ट्र की असली स्वतंत्रता है। ऐसी अमेजिंग जानकारी के लिए जुड़े रहे Hello Kisaan के साथ और आपको ये जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताइये।। जय हिंन्द जय भारत ।।

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