उड़द की दाल: एक महत्वपूर्ण फसल और किसानो के लिए फायदेमंद


उड़द की दाल का प्रयोग भारत में बहुत पहले से किया जाता है, इसमें प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट और फाइबर जैसे प्रमुख पोषक तत्व होते हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही जरुरी है और ऐसी फसल की खेती कर, किसान भी बहुत मुनाफा कमा सकते है, चलिए जानते है कैसे??
उड़द की दाल - कम पानी में और काम समय में तैयार हो जाती है, जो सूखा और कम पानी वाले इलाकों के लिए आदर्श है। इसको उगाने में ज्यादा रसायन की जरूरत नहीं होती जिससे यह पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है , साथ ही बाजार में अच्छी मांग होने की वजह से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।
आमतौर पर उधर्ड को अगस्त से अक्टूबर के बीच बोया जाता है, जो गर्मी के मौसम के बाद आने वाले मानसून के मौसम में होती है और इसे लास्ट फेब्रुअरी से स्टार्टिंग अप्रैल तक बोया जाता है, इसको तैयार होने में लगभग 4 से 6 महीने लगते है।

उड़द की दाल के स्वास्थ्य लाभ
- प्रोटीन का अच्छा स्रोत: उड़द की दाल में उच्च मात्रा में प्रोटीन होता है जो मांसपेशियों की मजबूती के लिए महत्वपूर्ण है।
- पाचन स्वास्थ्य: इसकी उच्च फाइबर सामग्री पाचन तंत्र को स्वस्थ रखती है और कब्ज की समस्या से राहत दिलाती है।
- दिल के स्वास्थ्य में सुधार: उड़द की दाल में उपस्थित एंटी ऑक्सिडेंट्स दिल की बीमारियों को रोकने में मदद करते हैं और रक्त संचार को बेहतर बनाते हैं।
- वजन कम करने में मदद: यह दाल वजन घटाने के लिए भी प्रभावी है क्योंकि इसमें कम कैलोरी और उच्च फाइबर होती है जिससे पेट देर तक भरा हुआ महसूस होता है।
1. खेती के लिए सही जलवायु
- उड़द गर्म जलवायु की फसल है और इसे 25-35°C तापमान की जरूरत होती है।
- इसे बारिश वाले इलाकों में उगाया जा सकता है।
- ठंडी जलवायु और अधिक नमी से फसल को नुकसान हो सकता है।
2. खेती के लिए सही मिट्टी
- वैसे तो अरहर की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लकिन दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है
- मिट्टी का pH स्तर 7 से 8 होना चाहिए।
- खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए, इसलिएजल निकालने की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
3. बीज की मात्रा और बुवाई का तरीका
- बीज की मात्रा
- खरीफ में – 8-10 किलो प्रति एकड़
- रबी में – 12-15 किलो प्रति एकड़

4.बुवाई कैसे करें
- पौधों के बीच 10-15 सेमी की दूरी रखें।
- बीज को 4-6 सेमी गहराई में बोएं।
5. खाद और उर्वरक प्रबंधन
- उड़द की अच्छी पैदावार के लिए सही मात्रा में खाद और उर्वरक देना जरूरी है।
6. सिंचाई की जरूरत
खरीफ की फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती, क्योंकि यह बारिश पर निर्भर करती है।
1. पहली सिंचाई – अंकुरण (बीज के अंकुर निकलने) के 20-25 दिन बाद।
2. दूसरी सिंचाई – जब फूल बनने लगें।
3. तीसरी सिंचाई – जब फलियां बनने लगें।

7. फसल की कटाई और भंडारण
- उड़द की फसल 70-90 दिनों में तैयार हो जाती है।
- जब पत्तियाँ पीली पड़ने लगें और फलियाँ सूखने लगें, तो कटाई का सही समय होता है।
- कटाई के बाद दानों को धूप में सुखाकर अच्छी तरह से भंडारण करें ताकि नमी न रहे।
8. खेती के फायदे
1. कम लागत – उड़द की खेती में ज्यादा खर्च नहीं आता।
2. अच्छी पैदावार – थोड़ी सी मेहनत में अच्छी उपज मिलती है।
3. मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है – यह फसल मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाती है।
4. ज्यादा मांग – उड़द की दाल की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है।
निष्कर्ष
उड़द की खेती करना किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। अगर सही मौसम, मिट्टी, खाद, सिंचाई और देखभाल का ध्यान रखा जाए तो अरहर की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकतें हैं। उड़द की दाल स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक होती है, इसलिए इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।
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