मछली से उगने वाली सब्जी करोड़ो की


भारत में खेती के तरीके अब बदल रहे हैं। पानी की कमी और जमीन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए किसान नई-नई तकनीक अपना रहे हैं। ऐसा ही एक शानदार उदाहरण है महाराष्ट्र के कोल्हापुर में बना भारत का सबसे बड़ा एक्वापोनिक फार्म जहाँ मछलियों के जरिए सब्जियाँ उगाई जाती हैं बिना मिट्टी के और सिर्फ 5% पानी के उपयोग से।

क्या होता है एक्वापोनिक?
एक्वापोनिक फार्मिंग एक आधुनिक खेती की तकनीक है, जिसमें मछली पालन और खेती को एक साथ जोड़ा जाता है। इसमें मिट्टी की बजाय पौधों की जड़ें सीधे पोषक तत्वों से भरपूर पानी में डाली जाती हैं। यह पानी मछलियों के टैंकों से आता है जिसमें मछलियों का वेस्ट यानी मल-मूत्र मिला होता है। यह वेस्ट ही पौधों के लिए जैविक खाद का काम करता है। पौधे इस पानी से पोषक तत्व ले लेते हैं और बदले में पानी को साफ कर देते हैं, जो दोबारा मछलियों के पास चला जाता है। इसे कहते हैं सेल्फ-क्लीनिंग और सेल्फ-रेगुलेटिंग सिस्टम।
2.5 एकड़ का फार्म और 5 करोड़ की कमाई
यह फार्म 2.5 एकड़ में फैला है और यहाँ पालक, केल, स्विस चार्ड, और लेट्यूस की अलग-अलग वैरायटी सहित कुल 7 प्रकार की लीफी सब्जियाँ उगाई जाती हैं। इस फार्म से हर साल औसतन 5 करोड़ रुपये की कमाई होती है जिसमें से डेढ़ करोड़ रुपये शुद्ध मुनाफा होता है। यहाँ की खास बात यह है कि यह पूरा फार्म लीफी ग्रीन्स यानी पत्तेदार सब्जियों के उत्पादन के लिए ही डिजाइन किया गया है।
मछलियों की मदद से होती है खेती
इस फार्म में 123 टैंक हैं, जिनमें से 16 टैंक मछलियों के लिए हैं। एक समय में लगभग 50,000 से ज्यादा मछलियाँ पाली जाती हैं जिनमें तिलापिया और कार्प प्रमुख प्रजातियाँ हैं। मछलियों को खास फीड दिया जाता है जिससे उनका वेस्ट पानी में घुलकर खाद बन जाता है। यह पानी पौधों की जड़ों तक पहुंचता है और उन्हें पूरा पोषण देता है।

खेती का डिज़ाइन और टेक्नोलॉजी
पौधों को कोकोपीट में उगाया जाता है। हर बैच का एरिया 1000 स्क्वायर फीट होता है, जिसमें 2000 पौधे लगाए जाते हैं। पौधे फ्लोटिंग बोर्ड में होते हैं जो पानी पर तैरते हैं। एक बोर्ड की कीमत लगभग 500 रुपये होती है और एक कप में एक पौधा लगाया जाता है। हर बैच 30 से 35 दिनों में तैयार हो जाता है जिससे रोज एक बैच की कटाई हो सके। गर्मियों में पौधों का ग्रोथ टाइम थोड़ा कम और सर्दियों में थोड़ा ज़्यादा होता है।
पानी की बचत और ऑक्सीजन सप्लाई
इस फार्म में केवल 5% पानी का उपयोग होता है यानी 95% पानी की बचत। पानी को साफ रखने के लिए पौधों की जड़ें काम करती हैं और ऑक्सीजन देने के लिए पानी में बबलिंग सिस्टम लगाया गया है ताकि पौधों की साँस चलती रहे।
छोटे किसानों के लिए भी है मौका
अगर कोई किसान छोटा एक्वापोनिक यूनिट लगाना चाहता है तो एक बेड की लागत करीब 15 से 20 लाख रुपये आएगी। एक प्लांट का नेट पॉट लगभग 5 रुपये और एक फ्लोटिंग बोर्ड की कीमत लगभग 500 रुपये होती है।
इसका क्या फायदा है?
1. कम पानी की जरूरत – पारंपरिक खेती से 90% कम पानी लगता है।
2. कोई कीटनाशक नहीं – रसायनों की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि सब कुछ कंट्रोल में होता है।
3. मछली और सब्जी दोनों का उत्पादन – एक ही जगह से खाने के दो स्रोत।
4. घर या छत पर भी संभव – छोटे टैंक और ट्रे लगाकर आप अपने घर में भी यह खेती कर सकते हैं।
5. तेज़ फसल – कुछ फसलें सिर्फ 4-6 हफ्तों में तैयार हो जाती हैं।

बिक्री और मार्केट
इस फार्म से निकला हुआ प्रोडक्शन साउथ इंडिया और नॉर्थ इंडिया में भेजा जाता है। यहाँ की सब्जियाँ 300 से ज्यादा कंपनियों को सप्लाई की जाती हैं।
निष्कर्ष:
आज के समय में जब खेती में ज़्यादा पानी, रसायन और ज़मीन लगती है तब यह तरीका बहुत उपयोगी है। इससे ना सिर्फ शुद्ध और ताजी सब्जियाँ मिलती हैं बल्कि मछली पालन से प्रोटीन भी मिलता है। मछलियों के ऊपर उगाई गई फसल एक ऐसी खेती है जो हमारे भविष्य को सुरक्षित बना सकती है। यह पर्यावरण के लिए भी अच्छा है और हमारे स्वास्थ्य के लिए भी। अगर आप अपने घर में कुछ नया और टिकाऊ करना चाहते हैं, तो इस तरह की खेती एक बेहतरीन विकल्प है।
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