इस इंजीनियर के बनाये बर्तन से हो रहा लाखों का बिज़नेस


आज कल प्लास्टिक की बोतल और नॉन स्टिक बर्तनों से होते नुक़सान को जानने के बाद बाज़ार में मिट्टी के बने बर्तन, कुकवेयर और बोतल जैसी चीज़ें काफ़ी बिकने लगी हैं। हम सभी इसे अपनी सेहत के लिए फ़ायदेमंद मानकर खरीदते हैं, और इस्तेमाल भी करते हैं। लेकिन जब आपको पता चले कि ये मिट्टी के बर्तन आपके नार्मल प्रोडक्ट्स से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं तो?
पेशे से इंजीनियर, हरियाणा के रहनेवाले 28 वर्षीय नीरज शर्मा पिछले दो सालों से ‘मिट्टी, आप और मैं' नाम से अपना बिज़नेस कर रहे हैं। इसके ज़रिए वह अपने गांव के कुम्हारों को रोज़गार देने के साथ-साथ, आम लोगों तक केमिकल फ्री मिट्टी के बर्तन पहुंचा रहे हैं।

जी हाँ, बाज़ार में मिट्टी के बर्तनों की मांग जितनी बढ़ती जा रही है, इसे बनाने का बिज़नेस भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रहा है। लेकिन देश की ज़्यादातर जगहों में बन रहे मिट्टी के इन बर्तनों को कोई कुम्हार नहीं, बल्कि मशीन तैयार कर रही है।
डाई मोल्ड और केमिकल कोटिंग के साथ काफ़ी फैंसी मिट्टी के बर्तन तैयार किए जाते हैं। मिट्टी के बर्तनों की इसी सच्चाई को जानने के बाद, झज्जर (हरियाणा) के डावला गाँव के रहनेवाले नीरज शर्मा को ‘मिट्टी, आप और मैं’ नाम से अपना बिज़नेस शुरू करने की प्रेरणा मिली।
नीरज वैसे तो एक इंजीनियर हैं, लेकिन पिछले दो सालों से वह अपने गाँव में रहकर ही काम कर रहे हैं। वह केमिकल और डाई मोल्ड के बिना, पारम्परिक चाक में बर्तन तैयार करते हैं और इसे ऑनलाइन देशभर में बेच रहे हैं। अपने गाँव के दो कुम्हारों के साथ उन्होंने इस काम की शुरुआत की थी। आज उनके साथ आठ से ज़्यादा कुम्हार काम कर रहे हैं।
नीरज बताते हैं, “लोगों में सेहत के प्रति काफ़ी जागरूकता आ गई है। इसलिए वे सही और ग़लत का फ़र्क़ समझने लगे हैं। मेरे साथ कुछ डॉक्टर और न्यूट्रिशियनिस्ट भी जुड़े हुए हैं; जो अपने जानने वालों और मरीज़ों को मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।”
नीरज अपने इस बिज़नेस से हर महीने दो से ढाई लाख रुपये का टर्नओवर भी कमा रहे हैं।
गाँव में रहने के लिए छोड़ दी शहर की नौकरी:
नीरज के पिता बिजली विभाग में काम करते थे और साथ ही उनकी पुश्तैनी खेती भी थी। नीरज का पूरा बचपन गाँव में ही बीता है। बाद में उन्होंने साल 2016 में रोहतक से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और नौकरी करने के लिए गुड़गांव चले गए।
नीरज कहते हैं, “मुझे शहर में कई तरह की स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्क़तें होती थीं। सिर्फ़ एक साल शहर में रहकर ही मैंने मन बना लिया था कि मुझे गाँव वापस जाकर अपना कुछ काम करना है।”
हालांकि, उनके परिवारवालों को उनका यह फैसला ग़लत लग रहा था। इसलिए नीरज ने घर पर रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी करना शुरू कर दिया।
वह गाँव में किसी बिज़नेस की तलाश में भी थे। उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि उनके घर में जिन मिट्टी के बर्तनों में खाना बन रहा है, एक दिन वह उसी का बिज़नेस करेंगे।
गांव में रहकर ही मिला बिज़नेस आईडिया:
नीरज के घर में कई तरह के मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल होते थे। कुछ जल्दी टूट जाते और कुछ लम्बे समय तक चलते थे। उन्हें लगता था कि ये बर्तन ज़रूर कोई कारीगर बनाता होगा और यह काफ़ी मुश्किल काम होगा। इस बारे में और जानकारी लेने के लिए वह अपने गाँव के पास की ही एक फैक्ट्री में गए।
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