इस MBA ग्रेजुएट ने बनाया गाँव की डेयरी को ब्रांड

17 Sep 2022 | others
इस MBA ग्रेजुएट ने बनाया गाँव की डेयरी को ब्रांड

सालों से गांव में ऐसे अपनेपन के साथ रहे, मेरठ के मनीष भारती को सिर्फ़ दो सालों में ही समझ में आ गया कि वह शहरी जीवन के लिए नहीं बने हैं। इसके बाद उन्होंने शहर में अच्छी खासी नौकरी छोड़कर, मेरठ से क़रीब 15 कि.मी. दूर अपने गांव वापस आने का फैसला किया। साल 1997 से वह गांव में रहकर काम कर रहे हैं।

उन्होंने अपनी मार्केटिंग की डिग्री का बखूबी इस्तेमाल करके, खेती को एक अच्छा बिज़नेस ब्रांड बना दिया है। आज मेरठ में हर दिन उनकी डेयरी बिज़नेस से सैकड़ों लीटर दूध बिकता है और उनका ब्रांड, ‘भारती मिल्क स्पलैश’ शहर में जाना-माना नाम है। इसके अलावा वह अपने खेतों में उगने वाले सभी प्रोडक्ट्स भी अपने खुद के ब्रांड से ही बेचते हैं।

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वह बताते हैं, “जिस दौर में मैंने पढ़ाई पूरी की थी, उस समय सभी गांव में रहने के नुक़सान के बारे में बातें करते थे। लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह नुक़सान से ज़्यादा मुझे गांव में रहने के फ़ायदे दिखे। यहाँ एकता और सुकून है। 

अपने गाँव से करते हैं बेहद प्यार:

मनीष का परिवार सालों से खेती से जुड़ा हुआ है। लेकिन उनके घर में शिक्षा का भी काफ़ी महत्व रहा है, इसलिए उन्होंने मेरठ के अच्छे स्कूल और कॉलेज से पढ़ाई की। उन्होंने MBA भी मेरठ से ही किया है। 1995 में अपना MBA पूरा करने तक वह गांव में ही रहते थे।

वह बताते हैं, “क्योंकि हमारा घर शहर से सिर्फ़ 15 कि.मी. ही दूर था इसलिए मैं हमेशा यहीं रहकर पढ़ा हूँ। उनके बाद नौकरी के लिए मैं दिल्ली गया था।”

मार्केटिंग की पढ़ाई करने के बाद वह दिल्ली में एक अच्छी इंटरनैशनल कंपनी में काम कर रहे थे। लेकिन उन्हें गांव का अपनापन और जीवन में एक कमी सी महसूस होती थी। वहाँ सिर्फ़ दो साल रहने के बाद, उन्होंने मेरठ में ही काम ढूंढा और वापस आ गए।

मेरठ आकर उन्होंने आगे खुद का कुछ काम करने का फैसला किया और खेती में पिता का साथ देने से इसकी शुरुआत की।

मार्केटिंग स्किल्स से पिता की खेती को डेयरी बिज़नेस में बदला:

जब मनीष ने पिता के साथ काम करना शुरू किया, उस दौरान उनके पिता फूलों की खेती किया करते थे। अपने खेतों में उगाए फूल वह दिल्ली मंडी में बेचते थे। मनीष ने देखा कि जिन फूलों को उनके पिता सिर्फ़ दो रुपये दर्जन में बेच रहे थे, वही फूल बाज़ार में 30 रुपये से ज़्यादा भाव में बिक रहे हैं। वह सालों पुराना पारम्परिक तरीक़ा ही अपना रहे थे।

मनीष बताते हैं, “मैंने इस बीच के अंतर को भरने का फैसला किया और पिता से कहा कि हम खुद अपने फूलों की मार्केटिंग करेंगे। इसके बाद हमने फूलों की होम डिलीवरी करने के सिंपल आईडिया से शुरुआत की।”

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