उपज बढ़ेगी पर फसल रह जाएगी कमजोर


आइआइएसएस के प्रधान विज्ञानी डॉ. नरेंद्र कुमार लेंका ने यह शोध किया है। शोध के लिए आठ ओपन टॉप चैंबर में वातावरण में मौजूदा कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर 410 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) की तुलना में बढ़ाकर 550 से 600 पीपीएम स्तर रखा और सामान्य तापमान की तुलना में दो डिग्री बढ़ाया। विज्ञानियों का मानना है कि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा प्रत्येक वर्ष दो पीपीएम बढ़ रही है। इसलिए 70 साल के हिसाब से चैंबर में मात्रा बढ़ाकर रखी गई। इन आठ ओपन टॉप चैंबर में गेहूं-सोयाबीन की छह फसलें ली गईं। पांच साल के शोध में पता चला कि सोयाबीन और गेहूं की पैदावार में तो वृद्धि हुई, लेकिन मिट्टी के जरूरी पोषक तत्व लगातार कम होते गए। लेंका के मुताबिक भले ही पैदावार में वृद्धि दिख रही है, लेकिन मिट्टी के पोषक तत्वों के घटने से भविष्य में पैदावार पर भी असर पड़ेगा। भले ही अभी मिट्टी में विभिन्न् पोषक तत्वों के लिए रासायनिक खाद डाला जाता है, लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड की ज्यादा मात्रा की वजह से यूरिया की मात्रा और बढ़ानी पढ़ेगी। ज्यादा रासायनिक खाद भी मिट्टी के लिए नुकसानदायक है।
30 लाख रुपये में बनाए थे ओपन टॉप चैंबर्स:-
आइआइएसएस परिसर में वर्ष 2016 में करीब 30 लाख रुपये से आठ चैंबर बनाए गए थे। अत्याधुनिक तकनीक से सोयाबीन व गेहूं की फसलें बोई गईं। चैंबर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा व तापमान बढ़ाकर रखा। वहीं कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता, विकिरण व मिट्टी के तापमान की निगरानी के लिए सेंसर लगाए गए। साथ ही इंफ्रारेड हीटर भी लगाया गया, जिससे तापमान बढ़ाया जा सके। कंट्रोल रूम से फसलों की निगरानी भी की गई।
16 वर्गमीटर के आठ चैंबर में उगाई फसल:-
संस्थान द्वारा बनाए गए 16 वर्गमीटर का एक ओपन टॉप चैंबर तैयार किया गए। ऐसे आठ अलग-अलग चैंबर तैयार कर यह शोध किया गया। विज्ञानियों का कहना है कि कार्बन डाइऑक्साइड को लेकर शोध तो कई हुए, लेकिन चैंबर में सोयाबीन-गेहूं फसल उगाने का पहला मामला है। आमतौर पर शोध फसलों को गमलों में उगाकर किया गया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने यह शोध आइआइएसएस को दिया था।
इनकी कमी:-
पौधों के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्सियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, जिंक, तांबा, मैग्नीज, बोरान आदि पोषक तत्वों की जरूरत होती है। आइआइएसएस विज्ञानी ने जो शोध किया, उनमें प्रमुख तौर पर नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, तांबा, लोहा, मैंगनीज व जिंक की कमी देखी गई।
शोध के बाद ये सलाह:-
किसान प्रत्येक तीन-चार साल में मृदा परीक्षण कराएं, ताकि पोषक तत्वों की कमी दूर की जा सके।
- रासायनिक की बजाय जैविक खाद का उपयोग जरूर करें।
- नरवाई न जलाएं। इससे जरूरी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
- फसलें बदलकर लगाएं।
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