एक्वापोनिक्सः मछलियों के पानी में बिना मिट्टी के अनोखी खेती

23 Mar 2021 | Aquaponics
एक्वापोनिक्सः मछलियों के पानी में बिना मिट्टी के अनोखी खेती

अगर आप सब्जियों की खेती के साथ मछली पालन भी करना चाहते हैं तो एक्वापोनिक्स विधि आपके लिए एक अच्छा विकल्प है।भारत कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है ‘कृषि’। जब से दुनिया में सभ्यताओं का प्रारंभ हुआ तभी से खेती की जा रही है। 

भारत में पहला एक्वापोनिक्स फार्म:-

माधवी फ़ार्म्स, बैंगलोर शहर के केंद्र में स्थित एक 20 एकड़ की जैविक संपत्ति, 1998 में भूमि के एक बंजर भूखंड पर स्थापित की गई थी। आज यह हजारों औषधीय, सुगंध, लकड़ी, फल और पवित्र वैदिक पेड़ों के साथ एक जैव-विविधता हॉटस्पॉट है। जड़ी बूटियों और पौधों की किस्में।


चीन, ओमान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशो में पहले से ही एक्वापोनिक्स फार्म:-

नवंबर 2017 में माधवी फार्म्स चैप्टर में लॉन्च किया गया एक स्टार एडिशन भारत का पहला और सबसे बड़ा वाणिज्यिक एक्वापॉनिक्स फार्म है, जो मेसर्स वाटरफर्मर्स, कनाडा (www.waterfarmers.ca) के सहयोग से है। माधवी फार्म भारत में इस तरह से ब्रेकिंग, नए युग, नवीन, कृषि-प्रौद्योगिकी की स्थापना करने वाली पहली कंपनी है, और 2018 में बैंगलोर भर में सभी चयनात्मक ग्राहकों की पूरी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार करेगी। वॉटरफ़ार्मर्स के पहले से ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों में समान सफल उद्यम हैं, जिनमें हांगकांग, चीन, ओमान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका और कनाडा के कुछ हिस्से शामिल हैं।

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कैसे काम करता है एक्वापोनिक्स फार्म:-

एक्वापोनिक्स, जैसा कि नाम से पता चलता है, एक्वाकल्चर + बागवानी का एक संयोजन है। इसमें मछली को प्रचुर मात्रा में विकसित करते हैं, और हमारे पौधों को निषेचित करने के लिए मछली के समृद्ध खनिजयुक्त कचरे का उपयोग करते हैं। संपूर्ण ऑपरेशन मिट्टी रहित होता है, केवल 10% पानी का उपयोग करता है जो एक ही क्षेत्र के खुले क्षेत्र की खेती में उपयोग किया जाता है, और एक आउटपुट देता है जो पारंपरिक खेती से कई गुना अधिक है।


जल बचाव के लिए महत्वपूर्ण कदम:-

दुनिया भर में आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। कई अनुमान लगाए जाते हैं कि 2050 तक भारत की जनसंख्या 160 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी, लेकिन धरती पर जमीन उतनी ही रहेगी। हो सकता है बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती और वन भूमि कम हो जाए। ऐसे में बढ़ती आबादी का दबाव पानी सहित सभी प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ेगा। इन संसाधनों में सबसे ज्यादा प्रभावित जल होगा। 

जल संकट का असर इंसान की कई जरूरतों के साथ ही खेती पर भी पड़ेगा, इसका असर अभी से दिखने भी लगा है और भारत जल संकट के सबसे भीषण दौर से गुजर रहा है। कई स्थानों पर सूखे से किसानों की फसल बर्बाद हो रही है, जबकि विभिन्न स्थानों पर पानी के अभाव में किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। देश के विभिन्न स्थानों में खेती की जिस पद्धति को अपनाया जा रहा है, उसमें अधिकांश किसान अधिक पैदावार के लिए कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। इसने फसल और मिट्टी को ज़हरीला बना दिया है, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। 

कीटनाशक धरती से जैव विविधता को भी समाप्त कर रहे हैं। क्योंकि कीटनाशकों का उपयोग कीट मारने के लिए किया जाता है। इन मरे हुए कीटों को विभिन्न पक्षी खाते हैं। जिस कारण उनकी भी मौत हो रही है। कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं, जिनमें चील भी शामिल हैं। इसलिए वर्तमान परिस्थितियों से सबक लेते हुए और भविष्य को ध्यान में रखते हुए जैविक खेती अपनाने तथा जल संरक्षण पर जो दिया जा रहा है। भविष्य की जरूरत और इन समस्याओं के समाधान के लिए ‘एक्वापोनिक्स’ तकनीक सबसे फिट बैठती है।


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