एशिया का सबसे बड़ा गांव, जहां हर घर में पैदा होते हैं जवान


विश्व युद्ध से लेकर कारगिल में लिया था भाग:-
प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध हो या 1965 या फिर 1971 का युद्ध या कारगिल की लड़ाई, यहां के फौजियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। विश्वयुद्ध के समय में अंग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक शामिल थे। जिनमें 21 मारे गए थे। इनकी याद में गांव में एक शिलालेख लगा है।
गहमर के भूतपूर्व सैनिकों ने पूर्व सैनिक सेवा समिति नामक संस्था बनाई है। गांव के युवक कुछ दूरी पर गंगा तट पर सुबह-शाम सेना की तैयारी करते नजर जाते हैं। यहां के युवकों की फौज में जाने की परंपरा के कारण ही सेना गहमर में ही भर्ती शिविर लगाया करती थी।
1986 में इस परंपरा को बंद कर दिया गया और अब यहां के लड़कों को सेना में भर्ती होने के लिए लखनऊ, रूड़की, सिकंदराबाद जाना पड़ता है। भारतीय सेना ने गहमर गांव के लोगों के लिए सैनिक कैंटीन की भी सुविधा उपलब्ध कराई थी।
जिसके लिए वाराणसी आर्मी कैंटीन से सामान हर महीने गहमर गांव भेजा जाता था, लेकिन पिछले कई सालों से यह सेवा बंद है।

गांव में है सारी सुविधायें:-
गांव में शहर जैसी सारी सुविधाएं हैं। गांव में टेलीफोन एक्सचेंज, डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, स्वास्थ्य केंद्र हैं। युद्ध हो या प्राकृतिक विपदा, यहां की महिलाएं पुरुषों को वहां जाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
गांव के बारे में कुछ खास बाते:-
- इस गांव के करीब 10 हजार लोग इंडियन आर्मी में जवान से लेकर कर्नल तक हैं, जबकि 14 हजार से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक हैं।
- रिकॉर्ड के मुताबिक, 2009 के लोकसभा चुनाव में गांव में 24 हजार 734 वोटर्स रहे।
- गांव गाजीपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गहमर में एक रेलवे स्टेशन भी है, जो पटना और मुगलसराय से जुड़ा हुआ है।
- इतिहासकारों के मुताबिक, सन् 1530 में कुसुम देव राव ने 'सकरा डीह' नामक स्थान पर इसे बसाया था।
- गांव 22 टोले में बंटा हुआ है और हर पट्टी किसी न किसी प्रसिद्ध व्यक्ति सैनिक के नाम पर है।
- प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध हो या 1965 और 1971 के युद्ध या फिर कारगिल की लड़ाई, सब में यहां के फौजियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
- विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक शामिल थे, जिनमें 21 मारे गए थे। इनकी याद में गहमर में एक शिलालेख लगा हुआ है।
- गहमर के भूतपूर्व सैनिकों ने पूर्व सैनिक सेवा समिति नामक संस्था बनाई है। गांव के युवक गांव से कुछ दूरी पर गंगा तट पर स्थित मठिया चौक पर सुबह-शाम सेना की तैयारी करते नजर आ जाते हैं।
- इंडियन आर्मी गहमर में ही भर्ती शिविर लगाया करती थी, लेकिन 1986 में इसको किसी कारण से बंद कर दिया गया।
- सैनिकों की भारी संख्या को देखते हुए भारतीय सेना ने गांव के लोगों के लिए सैनिक कैंटीन की भी सुविधा उपलब्ध कराई थी। जिसके लिए वाराणसी आर्मी कैंटीन से सामान हर महीने में गहमर गांव में भेजा जाता था, लेकिन पिछले कई सालों से यह सेवा बंद चल रही है
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