कई बीघा जमीन से लेकर करोड़ों रुपये की प्रॉपर्टी के मालिक हैं कबूतर


दुनियाभर में अजूबो और अजीब बात की कोई कमी नही है। आये दिन कुछ न कुछ अनोखा देखने और सुनने को मिल जाता है। आज हम बात कर रहे है करोड़पति कबूतरों की। इन कबूतरों के पास पैसे के साथ ही काफ़ी ज़मीन और नौकर भी है।
126 बीघा जमीन, 27 दुकान, 400 गौशाला के मालिक हैं कबूतर:
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ये कबूतर कई दुकानों के मालिक हैं। कई किलोमीटर तक फैली जमीन और नकद रुपये भी इनके पास जमा है। कबूतरों के नाम जहां 27 दुकानें हैं। वहीं ये कबूतर 126 बीघा जमीन के भी मालिक हैं। इसके अलावा इनके पास 30 लाख रुपये की नकदी भी है। जसनगर के करोड़पति कबूतरों के पास 400 से अधिक गौशालाएं भी हैं। ये गौशाला 10 बीघा भूमि पर भी संचालित किए जाते हैं।

400 वर्ष पूर्व की परंपरा:
बंबोरी गांव के लोगों का कहना है कि इस परंपरा की शुरुआत 400 वर्ष पूर्व उनके पूर्वज़ों द्वारा शुरू की गयी थी। जिसके बाद समय समय पर लोग इसमें जुड़ते गए। गांव के ही लोगों ने मिलकर बंबोरी कबूतर खाना व्यवस्था समिति का गठन किया। अब यह समिति ही सभी कबूतरों की सारी व्यवस्था देखती है।
गांव के लोगों द्वारा इन कबूतरों के लिए लगभग 12 बीघा जमीन दान कर रखी गई है ताकि कबूतरों के दाने पानी में किसी भी प्रकार की कमी न आये । इस व्यवस्था को सुचारू रुप से बनाए रखने के लिए कबूतर खाना समिति प्रत्येक वर्ष इस जमीन को लीज पर देती है। लीज पर देने से समिति को हर वर्ष तक़रीबन एक लाख रुपये की आय प्राप्त हो जाती है। कबूतर खाने की सभी व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे इसके लिए समिति ने बैंक में खाता भी खुलवा रखा है।
लोगों के दान से चलता है ट्रस्ट:
कबूतारण ट्रस्ट के सचिव प्रभुसिंह राजपुरोहित के मुकाबिक जसनगर के कबूतरों के लिए लोग दान भी करते हैं। हमें हर महीने कई लोगों के दान मिलते हैं। कबूतरों के लिए खोली गई 27 दुकानों से सलाना आय 9 लाख रुपये की होती है।

दाने पानी की व्यवस्था ट्रस्ट के माध्यम से:
भामाशाहों ने कबूतरों के संरक्षण व नियमित दाने पानी की व्यवस्था के लिए ट्रस्ट के माध्यम से कस्बे में 27 दुकानें बनवाई और इन्हें इनके नाम कर दिया। अब इसी कमाई से ट्रस्ट पिछ्ले 30 सालों से रोजाना 3 बोरी अनाज दे रहा है।
कबूतरान ट्रस्ट द्वारा रोजाना करीब चार हजार रुपए से 3 बोरी धान की व्यवस्था की जाती है। ट्रस्ट द्वारा संचालित गोशाला में भी आवश्यकता पड़ने पर 470 गायों के चारे पानी की व्यवस्था की जाती है। इन दुकानों से किराया के रूप में करीब 80 हजार रुपए मासिक आय है।
कैसे बने ये कबूतर करोड़पति:
चार दशक पहले यानी 40 साल पहले यहां एक नए उद्योगपति ने कबूतारण ट्रस्ट की स्थापना की थी। आईएएनएस की एक रिपोर्ट के मुताहिक 40 साल पहले पूर्व सरपंच रामदीन चोटिया के निर्देशों और अपने गुरु मरुधर केसरी से प्रेरणा लेकर अप्रवासी उद्योगपति स्वर्गीय सज्जनराज जैन व प्रभुसिंह राजपुरोहित ने कबूतारण ट्रस्ट की स्थापना की थी। इन्ही लोगों ने कबूतरों के संरक्षण व नियमित दाने पानी के लिए स्बे में 27 दुकानें बनवाई और इन्हें कबूतरों के नाम कर दिया।
ट्रस्ट के सिचव क्या कहते हैं?
ट्रस्ट के सचिव प्रभुसिंह राजपुरोहित बताते हैं कि कस्बे के कई लोगों ने कबूतरों के संरक्षण के लिए दिल खोलकर दान दिया था और आज भी दान देते रहते हैं। उन दान के रूपयों का सही उपयोग हो और कभी कबूतरों के दाने पानी में कोई संकट न आए, इसके लिए ग्रामीणों व ट्रस्ट के लोगों ने मिलकर दुकानें बनाईं। आज इन दुकानों से करीब 9 लाख रूपये की सालाना आय होती है, जो कबूतरों के दाने पानी के लिए खर्च की जाती है।
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