कबाड़ को रिसाइकल कर बना रहे, पेपर शीट और शानदार हैंडीक्राफ्ट


भारतीयों की खास बात है कि वे किसी भी चीज को वेस्ट नहीं जाने देते। खराब मटेरियल का प्रयोग करके नई-नई चीजें बनाने की कला इनमें कूट-कूट कर भरी है। इसी तरह खराब कपड़ों की कतरन, केले का ताना और नारियल के छिलकों का प्रयोग कर बना देते हैं, एकदम फ्रेश मोटे कागज की सीटें, जिनसे बनाये जाते हैं सैकड़ो तरह के क्राफ्ट। ये सब कार्य प्राकृतिक रूप से बिना किसी उच्च तकनीक के द्वारा किया जाता है। आये जानते हैं किस प्रकार कबाड़ को सोने जैसे क्राफ्ट्स में बदलकर यह नामुमकिन सा कार्य मुमकिन करते हैं।
कबाड़ के प्रयोग से मजबूत सीटें बनाने की विधि:
सबसे पहले रॉ मटेरियल के रूप में अलग-अलग स्रोतों से खराब बनियान,टी-शर्ट, पैंट-शर्ट, चादरें या अन्य टेक्सटाइल वेस्ट को इकट्ठा करके फैक्ट्री में मंगा लिया जाता है। सबसे पहले इस प्रीमियम रॉ मैटेरियल रूपी कबाड़ की सोर्टिंग की जाती है। जिसमें एक जैसे दिखने वाले वेस्ट मटेरियल को एक तरफ कर उन्हें मशीन द्वारा छोटी-छोटी कतरन कर दी जाती है। सिंथेटिक फाइबर, सूती वस्त्र आदि पदार्थों की सोर्टिंग हो जाने के बाद; इन्हें एक मशीन में डालकर बहुत छोटी-छोटी महीन कटिंग कर दी जाती है, जिसे चॉपिंग करना कहते हैं। चॉपिंग के बाद ये कॉटन के समान हो जाती है। ऐसा करने से पल्प बनाने में आसानी होती है। अब इस चॉप्ड पदार्थ को एक पानी से भरी वॉलंटर मशीन, जिसे बीटर मशीन भी कहते हैं; में डाल दिया जाता है। जिसमें ये घुलकर या गलकर पल्प बन जाता है। इस मशीन में रोलर तथा ब्लेडस लगे होते हैं, जो इस पदार्थ को घुमाकर तथा काटकर एक पेस्ट जैसा पल्प बना देते हैं। ये पल्प बनाने की प्रक्रिया लगातार 4 घंटे तक चलती है, इसके उपरांत पल्प एक टैंक में आकर इकट्ठा हो जाता है, जिसमें वॉल खोलने से पल्प ऊपर रखे बड़े से टैंक में स्टोर कर देते हैं तथा आवश्यकता अनुसार वहीं से पाइप द्वारा पल्प नीचे एक दूसरे टैंक में आ जाता है। अब सीट बनाने हेतू, एक दूसरे छोटे टैंक में सीट के आकार की आयताकार जाली रखी जाती है तथा उसमें बाल्टी भर के पल्प डालते हैं। जिसे हाथों के द्वारा आवश्यक मोटाई के अनुसार जाली पर घुमा-घुमा कर कर फैला दिया जाता है। जाली उठाकर साइड में रख देते हैं, जिससे पल्प ऊपर रह जाता है और पानी छनकर नीचे गिर जाता है। अब पल्प को होल्ड तथा सीट पर टेक्सचर डिजाइन करने के लिए, उसके ऊपर एक कपड़ा लगाया जाता है और इसी प्रकार जाली उठाकर एक-दूसरे के ऊपर-नीचे रखकर 200 सीट का चट्टा या बंच बना देते हैं। इसके बाद बंच को हाइड्रोलिक मशीन के नीचे रखकर प्रेशर देते हैं, जिससे उसका सारा पानी निकल जाता है और सीट भी दाब पड़ने के कारण पतली हो जाती है। सीट को हल्का सूख जाने के बाद उस पर से कपड़ा हटा लेते हैं और तारों पर चिमटी से लटका कर सुखा देते हैं। सूखने की प्रक्रिया एकदम प्राकृतिक है अर्थात् कमरे के तापमान पर ही सुखाते हैं, जिससे उनके रंग भी नहीं उड़ाते। सीटें सूख जाने के बाद उन्हें इकट्ठा करके कैलंडरिंग प्रक्रिया हेतु प्रेस करने के लिए ले जाया जाता है। यहां प्रेस करने के लिए सीट को दो मेटल की सीट के बीच में रखकर एक रोलर में निकालते हैं, जिसके प्रेशर से पेपर बिल्कुल सीधा और सलवट रहित हो जाता है। अब पेपर को फाइनली आवश्यकता अनुसार साइज में काटकर बंच बना लेते हैं।
पेपर सीट का प्रयोग:
वेस्ट मटेरियल से विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा तैयार की गई रंग-बिरंगी पेपर शीटों से सैकड़ो क्राफ्ट बनते हैं, जिनमें सुंदर-सुंदर बॉक्स, सजावटी सामान, फ्लावर्स,डायरी तथा विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े बैग। इन तैयार की गई पेपर सीट पर बड़े ही शानदार नेचुरल टेक्सचर उभर कर आते हैं, जो देखने में बहुत ही यूनिक और प्राकृतिक लगते है। इसी प्रकार इन्होंने इस विधि से लगभग सौ तरह की पेपर सीटें तैयार की हुई है। और यह तैयार की गई सीट इतनी मजबूत और सुंदर होती है, कि इन्हें फेविकोल से दीवारों पर भी चिपका सकते हैं, तो कम खर्चे में दीवारों पर शानदार टेक्सचर हो जाता है।
पेपर बनाने की यह क्रियाविधि यहां पर लगभग 15वीं सदी से चलती आ रही है। यदि कोई बंधु इनसे संपर्क करना चाहे, तो जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास इनकी फैक्ट्री या वेबसाइट kalpanahandmadepaper.com विजिट कर सकते हैं। इस लेख के माध्यम से हमने मुगल काल से चली आ रही शानदार पेपर बनाने के जानकारी ली। इसी तरह अन्य रोचक तथ्यों को जानने के लिए जुड़े रहे द अमेजिंग भारत के साथ। धन्यवाद॥
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