कैसे बनती है हवा की अदृश्य दीवार


विज्ञान के ऐसे विचित्र प्रयोग जिन्हें देखकर आप और हम दंग रह जाते हैं। साइंस के इन छोटे-छोटे प्रयोगों के इस्तेमाल से ही बड़े-बड़े अविष्कारों का जन्म होता है। एयर प्रेशर का ऐसा विज्ञान जो सामने होते हुए भी दिखाई नहीं देता। आये जानते हैं धनंजय रावल जी से वायुदाब के मजेदार प्रयोगों के बारे जो किसी जादू से कम नहीं।

हवा में तैरती जादुई गेंद:
वायुदाब तथा बरनौली के सिद्धांत पर आधारित यह अद्भुत सा प्रयोग आपको चकित कर देगा। इस एक्सपेरिमेंट के लिए बाहर की ओर तेजी से हवा छोड़ते ब्लोअर तथा एक गेंद की आवश्यकता होती है। जैसे ही गेंद के नीचे से ब्लोअर को चलते हैं, तो वह हवा के प्रभाव से ऊपर की ओर सीधी लंबवत ऊंचाई पर तैरने लगती है तथा गेंद दाएं-बाएं भी नहीं गिरती और ब्लोअर बंद करने के उपरांत गेंद ब्लोअर के मुख पर आकर ही थम जाती है।

दरअसल गेंद हवा की धारा में केंद्रित है, जैसे ही हवा का प्रेशर गोलाकार गेंद पर पड़ता है, तो हवा गेंद के चारों दिशाओं में विभाजित हो जाती है जो उसे दाएं बाएं नहीं गिरने देती तथा गेंद को नीचे की ओर खींचने वाला गुरुत्वाकर्षण बल; गेंद को ऊपर की ओर धकेलना वाले वायु के दबाव के बल के बराबर है। लेकिन अगर आप हवा के बहाव में बैठी गेंद को बहुत ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे की गेंद हवा की धारा में आगे-पीछे दोलन कर रही है। यही बरनौली का सिद्धांत प्रदर्शित करता है।

जहां तक हवा का प्रेशर गेंद पर पड़ता है वह उतनी ही ऊंचाई तक जाती है। यदि तैरती हुई गेंद के साथ ब्लोअर को आगे-पीछे चलाएं तो गेंद भी ब्लोअर की दिशा में ही गति करती है। इस प्रकार हवा की एक दीवार बन जाती है जो दिखाई नहीं देती; परंतु वह गेंद को केंद्र में प्रोटेक्ट किये रखती है।
ब्लोअर के निश्चित कोण तक ही तैरती है गेंद:
यदि हम ब्लोअर और गेंद को एक दूसरे के लंबवत रखकर चलाते हैं तो गेंद आसानी से हवा में तैरती रहती है तथा यदि ब्लोअर को एक निश्चित दिशा में झुका दें तो गेंद भी उसी समांतर कोण के अनुपात में मुड़ जाती है; परंतु यदि ब्लोअर को अधिक झुका दिया जाए तो गेंद नीचे गिर जाती है, क्योंकि हवा का स्रोत और गेंद एक दूसरे के लंबवत होने के कारण गेंद का गुरुत्वाकर्षण बल प्रभाव में आ गया और वह नीचे गिर गई। इस प्रकार प्रयोग में गेंद और हवा के स्रोत के मध्य कोण का प्रभाव भी पड़ता है।

वायु के इन अद्भुत प्रयोगों का इस्तेमाल मुख्यतः ऐरो स्पेस विज्ञान में किया जाता है। इसी के कारण विमान बहुत अधिक ऊंचाई पर यह अंतरिक्ष में नहीं जा सकते। ज्यादा ऊंचाई पर अधिक हवा नहीं होती अत: वायुदाब भी कम रहता है, इसलिए ऊंचाई पर वायुयान आसानी से उड़ पाते हैं।

तो दोस्तों आज आपने जाना अंकुर हॉबी सेंटर, साइंस एंड एस्टॉनोमी स्टोर के संचालक मिस्टर धनंजय रावल जी से विज्ञान के इस अद्भुत प्रयोग के बारे में। ऐसी ही अन्य रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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