कोटा के किसान ने विकसित की है ये नई किस्म


कोटा के किसान ने विकसित की है ये नई किस्म:-
राजस्थान के कोटा जिले के किसान श्रीकृष्ण सुमन ने आम की एक ऐसी नई किस्म विकसित की है जिसमें नियमित तौर पर पूरे साल सदाबहार नाम का आम पैदा होता है। आम की यह किस्म आम के फल में होने वाली ज्यादातर प्रमुख बीमारियों और आमतौर पर होने वाली गड़बडिय़ों से मुक्त है। ये आम की बौनी किस्म है। मीडिया से मिली जानकारी के मुताबिक किसान श्रीकृष्ण सुमन ने सन् 2000 में अपने बागान में आम के एक ऐसे पेड़ को देखा जिसके बढऩे की दर बहुत तेज थी, जिसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की थी।
उन्होंने देखा कि इस पेड़ में पूरे साल बौर आते हैं। यह देखने के बाद उन्होंने आम के पेड़ की पांच कलमें तैयार की। इस किस्म को विकसित करने में उन्हें करीब 15 साल का समय लगा और इस बीच उन्होंने कलम से बने इस पौधों का संरक्षण और विकास किया। उन्होंने पाया कि कलम लगाने के बाद पेड़ में दूसरे ही साल से फल लगने शुरु हो गए। इस तरह ये किस्म विकसित हुई जिसे बारहमासी सदाबहार किस्म का के नाम से जाना जाता है। इस नई किस्म को नेशनल इन्वोशन फाउंडेशन (एनआईएफ) इंडिया ने भी मान्यता दी। एनआईएफ भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्तसाशी संस्थान है। इतना ही नहीं इस सदाबहार किस्म के आम का विकास करने के लिए श्रीकृष्ण सुमन को एनआईएफ का नौवां राष्ट्रीय तृणमूल नवप्रवर्तन एवं विशिष्ट पारंपरिक ज्ञान पुरस्कार (नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन एंड ट्रेडिशनल नॉलेज अवार्ड) दिया गया है और इसे कई अन्य मंचों पर भी मान्यता दी गई है।
बारहमासी सदाबहार आम की किस्म की विशेषताएं:-
- इस किस्म का पेड़ काफी घना होता है और इसे कुछ साल तक गमले में भी लगाया जा सकता है।
- इसका गूदा गहरे नारंगी रंग का और स्वाद में मीठा होता है। इसके गूदे में बहुत कम फाइबर होता है जो इसे अन्य किस्मों से अलग करता है।
- पोषक तत्वों से भरपूर आम स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।
- इस किस्म से प्राप्तफल का स्वाद ज्यादा मीठा, लंगड़ा आम जैसा होता है।
- बौना पेड़ होने के कारण ये किचन गार्डन में लगाने के लिए भी उपयुक्त है।
देशभर से पौधे खरीदने के लिए आ रहे हैं आर्डर:-
श्रीकृष्ण सुमन को 2017 से 2020 तक देश भर से और अन्य देशों से भी सदाबहार आम के पौधों के 8,000 हजार से ज्यादा ऑर्डर मिल चुके हैं। वह 2018 से 2020 तक आंध्र प्रदेश, गोवा, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और चंडीगढ़ को 6,000 से ज्यादा पौधों की आपूर्ति कर चुके हैं। 500 से ज्यादा पौधे राजस्थान और मध्यप्रदेश के कृषि विज्ञान केंद्रों और अनुसंधान संस्थानों में वे खुद लगा चुके हैं। इसके अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात के विभिन्न अनुसंधान संस्थानों को भी 4,00 से ज्यादा कलमें भेज चुके हैं।
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