खजूर की खेती से किसान बनेगा करोड़पति


अब किसान भी काफी स्मार्ट हो गया है। ना सिर्फ किसान खेती में अलग अलग टेकनीक का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि कई अलग तरीके की खेती पर एक्सपेरिमेंट कर रहा है। अब उत्तर प्रदेश में किसान केसर की खेती कर रहे हैं तो कई स्ट्राबैरी, मशरूम और मोती पर भी दांव खेल रहे हैं. इसी बीच, कई किसानों ने तो खजूर भी उगाने का प्रयास किया और इसमें अधिकतर किसानों ने इससे अच्छी कमाई भी की है। इंटरनेट पर कई ऐसे किसानों की सक्सेस स्टोरी है, जिन्होंने खजूर की खेती की और उन्होंने पैसे कमाए भी हैं।
अरब या अफ्रीका में होती है ज्यादा खजूर की खेती:-
वैसे अरब या अफ्रीका को खजूर की खेती के लिए माना जाता है और यहां से ही विश्वभर में खजूर निर्यात किए जाते हैं। ऐसे में अगर आप इसकी खेती कर सकते हैं और इससे अच्छा पैसा कमा सकते हैं। तो जानते हैं कि आखिर खजूर की खेती किस तरह से की जा सकती है और इसके लिए आपको कितना निवेश करना होगा और कितने दिनों बाद आपकी कमाई शुरू हो जाएगी…जानते हैं खजूर की खेती से जुड़ी खास बातें..

धरती पर सबसे पुराना वृक्ष:-
खजूर, इस धरती पर सबसे पुराना वृक्ष है, जिसकी खेती की जाती है। यह कैल्शियम, शूगर, आयरन और पोटाशियम का उच्च स्त्रोत है। यह कई सामाजिक और धार्मिक त्योहारों में प्रयोग किए जाते हैं। इसके अलावा कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं, जैसे कब्ज से राहत, हृदय रोग को कम करना, दस्त को नियंत्रित करना और गर्भावस्था में सहायता करना। इसे विभिन्न तरह के उत्पाद जैसे चटनी, आचार, जैम, जूस और अन्य बेकरी उत्पाद बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी पैदावार और अच्छी उपज के लिए अच्छे निकास वाली, गहरी रेतली दोमट मिट्टी जिसकी पी एच 7-8 हो, उचित रहती है। जिस मिट्टी की 2 मीटर नीचे तक सतह सख्त हो, उन मिट्टी में उगाने से परहेज़ करें। क्षारीय और नमक वाली मिट्टी भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है लेकिन इनमें खजूर की कम पैदावार होती है।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार:-
Barhee:
यह किस्म 2016 में विकसित की गई है। यह देरी से पकने वाली किस्म है जो कि मध्य अगस्त में पकती है। इसका वृक्ष कद में लंबा और तेजी से वृद्धि करता है। यह अंडाकार आकार के फल पैदा करता है जो कि रंग में पीले होते हैं और इनका औसतन भार 12.2 ग्राम होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 25.4 प्रतिशत होती है। फल विकसित होने की पहली अवस्था में इसकी औसतन पैदावार 68.6 किलो प्रति वृक्ष होती है।
Hillawi:
यह किस्म 2016 में विकसित की गई है। यह अगेती से पकने वाली किस्म है जो कि मध्य जुलाई में पकती है। इसके फल लंबाकार आकार के होते हैं जो कि रंग में हल्के संतरी रंग के और छिल्का हल्के पीले रंग का होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 29.6 प्रतिशत होती है और फल का औसतन भार 15.2 ग्राम होता है। फल विकसित होने की पहली अवस्था में इसकी औसतन पैदावार 92.6 किलो प्रति वृक्ष होती है।
दूसरे राज्यों की किस्में:-
Medjool:
यह देरी से पकने वाली किस्म है। इसके फल बड़े, लंबकार और मध्यम आकार के होते हैं। इसकी एक वृक्ष में औसतन 75-100 किलोग्राम पैदावार प्राप्त होती है।
Khunezi:
यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसके फल लाल रंग के और लंबकार होते हैं। इसकी एक वृक्ष में औसतन 40 किलोग्राम पैदावार प्राप्त होती है।
Khadarawyi:
इस किस्म के फल नर्म और पीले रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 60-80 किलोग्राम प्रति वृक्ष प्राप्त होती है।
Khalas:
इस किस्म के फल लंबाकार और मध्यम आकार के होते हैं। फल पीले भूरे रंग के होते हैं। फल में मिठास मध्यम, ना ज्यादा कम और ना ज्यादा उच्च होती है।
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