गोबर की चप्पलें


नौकरी छोड़कर करी शुरूआत:
रितेश अग्रवाल 15 साल पहले, खेती और पशुपालन के बारे में कुछ नहीं जानते थे। लेकिन प्रकृति से उनका जुड़ाव हमेशा से था, आस-पास फैला प्रदूषण और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए ही, उन्होंने नौकरी छोड़कर, गौसेवा से जुड़ने का फैसला किया।
पहले वह गौशाला से गोबर खरीदकर इससे ईको फ्रेंडली चीजें (Cowdung products) बनाया करते थे। सबसे पहले उन्होंने राजस्थान के प्रोफेसर शिवदर्शन मलिक से गोबर की ईटें बनाना सीखा। फिर उन्होंने गोबर की ईटें, लकड़ी, दिये, मूर्तियां आदि बनाने का काम शुरू कर दिया।

ऐसे आया चप्पल बनाने का ख्याल:
दरअसल, रितेश गोबर को काफी फायदेमंद मानते हैं। इसलिए वह अक्सर इसके नए-नए प्रयोग के बारे में सोचते रहते हैं। उन्होंने बताया, “मेरी दादी हमेशा कहा करती थी कि वे गोबर की लिपाई किए हुए घर में रहते थे। अब टाइल वाले घर में मैं गोबर तो लीप नहीं सकता था, इसलिए मुझे गोबर से चप्पल बनाने का ख्याल आया।”
चप्पल (Cowdung slippers) बनाने के पीछे का एक और कारण टूटी हुई चप्पलों से फैल रहे प्रदूषण को कम करना भी था। गोबर से बनी उनकी ये चप्पलें पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली हैं।
दादी के लिए बनाई पहली चप्पल:
उन्होंने पहली चप्पल अपनी दादी के लिए ही बनाई थी। वह चप्पल थोड़ी सख्त थी, लेकिन उनकी दादी ने उन्हें बताया कि इससे उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी हो रहे हैं, जिससे रितेश को ऐसी और चप्पलें बनाने के लिए प्रेरणा मिली।
उनकी दादी को देखकर कई लोगों ने उन्हें ऐसी और चप्पलें बनाने को कहा। उन्होंने इस चप्पल (Cowdung products) को बनाने में गोबर, ग्वारसम और चूने का इस्तेमाल किया है। एक किलो गोबर से 10 चप्पलें बनाई जाती हैं। अगर यह चप्पल 3-4 घंटे बारिश में भीग जाए, तो भी खराब नहीं होती, धूप में इसे सुखाकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
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