गोवंश की टूटती सांसों का सहारा,बचा चुके हैं 10 हज़ार गोवंश की जान


बिना किसी सरकारी मदद के 36 साल से कर रहे हैं सेवा:-
सेवा का जरिया कोई भी हो सकता है। इस शख्स को गोसेवा का जुनून है। 36 साल से वह गोवंश की सेवा कर रहे हैं, वह भी बिना किसी सरकारी मदद के। बूढ़े, विकलांग, बीमार गोवंश की तलाश करते हैं और अपनी गोशाला में लाकर उन्हें पालते हैं। खासियत यह कि यहां पल रहे 75 गोवंश में से एक भी गाय दूध नहीं देती। इस सेवा के लिए उन्हें उत्तराखंड, हरियाणा और गुजरात सरकार सम्मानित कर चुकी है।
10 हजार की बचा चुके जान:-
विजयकांत शहर के अंदर-बाहर बीमार गोवंश की तलाश करते रहते हैं। अब तक वह 10 हजार से अधिक गोवंश की जान बचाने के साथ सात हजार से अधिक गोवंश का अंतिम संस्कार कर चुके हैं।
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोवंश की सुरक्षा के लिए प्रत्येक जिले में गोशाला खोलीं। बेसहारा गोवंश को इनमें रखा गया। हर जिलाधिकारी को गोवंश की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई। सहारनपुर के नुमाइश कैंप निवासी विजयकांत चौहान ने 1984 में एक गोवंश को बीच बाजार में भूख से तड़पते देखा तो गोवंश की सेवा करने की ठान ली।

प्राचीन सिद्धपीठ श्रीश्री गोदेवी मंदिर के नाम से छोटी सी गोशाला बनाई। बेसहारा गोवंश को यहां रखना शुरू किया। यहां एक समय 200 से अधिक गोवंश हुआ करते थे। फिलहाल गाय, बछड़े समेत 75 गोवंश हैं। गोवंश के बीमार होने या दुर्घटना में घायल होने की सूचना पर वह गोवंश को अपनी गोशाला में लाकर डाक्टर से उपचार कराते हैं।
विजयकांत का कहना है कि इस सेवाकार्य में कोई बाधा न पड़े, इसलिए उन्होंने शादी नहीं की। सुबह 10 बजे से रात 12 बजे तक गोवंश की सेवा में लगे रहते हैं। ऐसा करना उन्हें बेहद अच्छा लगता है। कहते हैं। इसी में जीवन का आनंद है। इसी में परम सुख समाहित है।
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