चुनावी वादों की लम्बी फेहरिस्त तैयार

20 Mar 2018 | others
चुनावी वादों की लम्बी फेहरिस्त तैयार


कृषि, रोजगार और गरीबी उन्मूलन पर पार्टी के प्रस्ताव के अंतिम पैराग्राफ में दिए गए वादे मैं कहा गया है कि यह निधि इसलिए बनाई गई हैं ताकि इसके इस्तेमाल से सीधे वंचित वर्गों को लाभ दिया जा सके। अगर चुनाव मैं जीत मिली तोह यह लागु होगा। मतलब साफ़ हे की यह एक चुनावी हवा बाजी जो चुनाव के बाद सिर्फ कागजो मैं सिमट कर रह जाएगी और इसके बाद गरीब किसान की याद अगले चुनाव मैं याद आएगी।


कांग्रेस के अनुसार वह किसानो के प्रति गहरी चिंता रखती हैं। आय असमानता के बढ़ते स्तर सरकार की प्रतिकूल नीतियों का प्रत्यक्ष परिणाम है। पर कांग्रेस ने 70 साल मैं किसान को क्या दिया हैं यह बताने की जरुरत नहीं हैं। चुनाव नजदीक देख सभी पार्टियों ने किसानो के लिए कुछ न कुछ सोचना शुरू कर दिया हैं और कागजी कारवाही जोरो पर हैं।


भाजपा ने सबका साथ सबका विकास का वादा किया था लेकिन उनके नारे के विपरीत काम किया है। सबसे अमीर का धन 73% तक बढ़ गया है जबकि बीजेपी शासन के दौरान आबादी के निचले आधे हिस्से में सिर्फ 1% की वृद्धि हुई है। "


नोटेबंदी मैं कई लोगो ने लाइन मैं लग कर अपनी जान दी। लाखों लोग दिन रात परेशान रहे। किसान तो पहले से ही परेशान था इससे और ज्यादा परेशान हो गया और किसान की आत्महत्यों मैं इजाफा हुआ। अब राजनितिक पार्टियों के जागने का समय आ चूका हैं। चुनावी वादों की लम्बी फेहरिस्त तैयार की जा रही हैं। अब तो बिल भी पारित कर दिया की विदेशों से पार्टी के लिए आने वाले फण्ड पर कोई कार्यवाही नहीं होगी। मतलब साफ़ हे की देश की भोली भाली जनता का पैसा पहले माल्या , नीरव मोदी जैसे लोगो द्वारा बाहर भेजा जायेगा और फिर उस पैसे को राजनितिक पार्टियां अपने लिए इस्तेमाल करेंगी। माल्या , नीरव मोदी को तो दिवालिया घोषित कर सब पैसे डकार गए। पर दिन रात मेहनत करने वाला गरीब किसान कहा जाये। उससे तोह कर्ज वसूलना हैं चाहे वो १ रूपए का क्यों न हो।


करोड़ों ले कर भागने वाले को देश से भगा दिया जायेगा पर किसान को प्रताढ़ीद किया जायेगा और उस समय किसान के पास सिर्फ एक ही उपाय होता हे और वो होता हैं आत्महत्या। सोचने की बात हे की किसान 5000 /- के कर्ज मैं बेशर्मी महसूस करता हैं और इस शर्म से आत्महत्या कर लेता हैं। पंजाब मैं तोह एक बैंक ने कर्ज लेने वाले किसानो के फोटो तक चस्पा करवा दिए थे। वह भी महज 1000 या 2000 रूपए के लिए। पर करोड़ों का कर्ज लेने वालो को किस बात की शर्म। माल्या आराम से विदेश मैं आराम फ़र्मा रहा हैं। जय जवान जय किसान अब पुराने ज़माने की बात हो गई है। अब नाह तो कोई जवानो को पूछ रहा हैं नहीं किसानो को अब तो बस माल्या और नीरव मोदी जैसे भगोड़े की बात होती हैं। सरकार जितनी जल्दी अपने लिए बिल पारित करती हैं उससे आग्रह हे की किसान हित मैं कुछ सोचे।


किसान अन्नदाता है उसके बारे मैं सोचिये वरना अगर किसान ने काम करना बंद कर दिया तो समज जाइये क्या होगा ??????



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