जयपुर की नीली मिट्टी के बर्तनों का कमाल


राजस्थान के जयपुर में होता है यह कमाल, बना रहे सदियों पुराने पारंपरिक नीली मिट्टी के बर्तन। जिन पर है फारसी सेरेमिक शैली का गहरा प्रभाव, लेकिन इन्होंने अपने स्वयं के डिजाइन को भी इतना विकसित कर लिया कि उन्हें देखकर हर कोई इस कलाकारी की तरफ आकर्षित हो रहा है। विभिन्न प्रकार के पाउडर रूपी पदार्थों के मिश्रण को आटे की तरह गूंथकर बनाते हैं अनेकों प्रकार के बर्तन। जिन पर बाद में विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां अलग-अलग रंगों से उकेरी जाती है, जिनमें फूल-पत्तियां, जानवरों,पक्षियों आदि से निश्चित पैटर्न में बर्तन को सजाया जाता है। आये जानते हैं इन कलाकारों से किस प्रकार करते हैं यह इस अद्भुत कार्य को-

आवश्यक मटेरियल:
ब्लू पॉटरी बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में विभिन्न प्रकार के पाउडर की आवश्यकता होती है, जिनमें प्रमुख रूप से पापड़ में डलने वाली साजी, क्वार्टज पत्थर का पाउडर, मुल्तानी मिट्टी, बोरेक्स, गोंद और पानी को आपस में मिलाते है।

ब्लू पॉटरी बनाने की विधि:
इन सभी पदार्थों के मिश्रण को आटे की तरह गूथंकर, 2 दिन सूखने के लिए छोड़ देते हैं। फिर इसकी एक प्रकार से रोटी बेलकर, सांचे पर चढ़ाकर मोल्ड करते है और बाउल नुमा आकर दे देते हैं। उसके बाद उसमें गाय के गोबर की राख के मिश्रण को मोल्ड में भरते हैं। ताकि मोल्ड का आकार बना रहे। उसके बाद सांचे को बाहर निकाल लेते हैं तथा उसे तीन-चार दिन धूप में सूखने के लिए छोड़ देते हैं। हल्का सूखने पर राख को भी निकाल देते हैं तथा फिर और दो-तीन दिन तक उस बाउलनुमा आकार को सुखने देते हैं। अब जैसे कुछ भी अन्य बर्तन या पोर्ट बनाना हो तो वह इस बाउल के ऊपर ही तैयार होता है। अर्थात् यह इन बर्तनों का आधार है। इसके बाद बाउल को चाक पर सेट कर अन्य आकृतियां दी जाती है। जैसे पोट बनाना हो तो चाक को घुमा-घुमा कर उपरोक्त पदार्थ से हाथों की कलाकारी द्वारा पोट बनाया जाता है।

पोट बन जाने के बाद उसकी घिसाई कर, व्हाइट कोटिंग का अस्तर भी चढ़ाते हैं जिससे और ज्यादा फिनिशिंग आ जाती है। तथा तैयार प्रोडक्ट एकदम चमकदार दिखता है। फिर सूखने के बाद इस पर ब्रश और रंगों के माध्यम से डिजाइनर नए-नए पैटर्न में सुंदर आकृतियां बनाते हैं। इसके लिए सबसे पहले पेन से आउटलाइन करते है और फिर उसमें हाथों द्वारा रंग भरे जाते हैं। ये सभी प्राकृतिक रंग, पोर्ट पर हो जाने के बाद जब यह भट्टी में 200 डिग्री सेंटीग्रेड ताप पर पकते हैं तो अपना रंग हल्का परिवर्तित कर देते हैं, जिससे यह और अधिक शानदार और आकर्षक लगते हैं। अतः इन बर्तनों को भट्टी में पकाना भी एक कलाकारी है, क्योंकि यह तापमान के हिसाब से रंग बदलते और कुछ ही देर में नीले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। इसके उपरांत ग्लेजिंग होती है, जिसमें बर्तनों पर एक चमकदार कोटिंग की जाती हैं जो सभी डिजाइनों को सुरक्षित भी रखती है। इन बर्तनों को एक विशेष प्रकार की भट्टी में परत दर परत, 10 से 12 घंटे के लिए धीमी आंच से उच्च तापमान पर पकाया जाता है, अधिक तापमान होने पर इनमें दरार पडने का भी डर रहता है।

तो दोस्तों आपने देखा यह शानदार कलाकारी से भरा कार्य, जो मात्र जयपुर में होता है। परंतु वर्तमान में इसका विस्तार बढ़ता जा रहा है, विभिन्न प्रशिक्षण स्कूल भी जयपुर में खुल गए हैं। तथा अब अन्य स्थानों पर भी इसकी शुरुआत धीरे-धीरे होने लगी है। यदि कोई भाई इनसे संपर्क करना चाहे तो इनका मोबाइल नंबर 8426808830 तथा 8005532919 पर कॉल कर सकते हैं। इसी प्रकार अन्य रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे “द अमेजिंग भारत” के साथ। धन्यवाद॥
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