नौवीं पास किसान ने 10 रुपये के इको-फ्रेंडली गोबर के गमले में लगायें पौधे!


अगर आप के पास गाय है तो गाय के दूध से जितनी कमाई करते है उससे कई गुणा अधिक कमाई आप गोबर के गमले के बिजनेस से कर सकते है। एक गाय दिनभर में लगभग आठ से दस किलो गोबर देती है। गांव में जिनके पास गाय नहीं है वह आसपास के घरों से गोबर इकटठा करके इस बिजनेस को शुरू कर सकते है।
गोबर से तैयार गमलों की डिमांड बढ़ने की मुख्य वजह है कि हिन्दु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय के गोबर में लक्ष्मी का निवास होता है। गाय के गोबर को पर्वित माना जाता है। ऐसे में गाय के गोबर को घर में रखना भी शुभ होता है। भेऺस के गोबर का उपयोग करके भी आप गमला तयार कर सकते हैं। चलिए आपको बताते हैं ऐसे ही एक शख्स की कहानी जिसने गोबर से गमले बनाये हैं।
नर्सरी में पौधों को रखने के लिए ज़्यादातर पॉलिथीन का इस्तेमाल किया जाता है, पर पॉलिथीन में रखकर जब हम किसी पौधे को लगाते हैं और जब उस पौधे की जड़ें फैलने लगती हैं तो वे पॉलिथीन भले ही फट जाती है, पर इसके कण मिट्टी में रह जाते हैं। इसका असर कहीं न कहीं पेड़-पौधों के विकास और मिट्टी की गुणवत्ता पर पड़ता है।

इसलिए आजकल लोगों ने कोकोपीट के लिए भी इको-फ्रेंडली तरीके ढूँढना शुरू कर दिया है। बहुत-सी जगह नारियल के खोल में पौधे लगाने पर जोर है। इसी क्रम में अब ‘गोबर से बना गमला’ भी शामिल हो गया है। जी हाँ, गुजरात के एक साधारण से किसान द्वारा बनाया गया यह गोबर का गमला न सिर्फ़ पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि इसे आप खुद घर पर भी बना सकते हैं।
गुजरात के छोटा उदयपुर जिले में कथौली गाँव के रहने वाले 65 वर्षीय किसान गोपाल सिंह सूरतिया एक ग्रासरुट इनोवेटर भी हैं। साल 2005 में उन्हें नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। उन्हें उनके इनोवेशन के लिए ज्ञान फाउंडेशन और नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा सम्मानित भी किया जा चूका है।
नौवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले गोपाल सिंह बताते हैं कि वे भले ही ज़्यादा पढ़ नहीं पाए, लेकिन उन में सीखने की और कुछ नया करने की चाह कभी भी खत्म नहीं हुई। खेती में भी वे कुछ न कुछ नया एक्सपेरिमेंट करते रहते। खेती की उपज बढ़ाने के लिए कभी कोई देसी नुस्खा इजाद करते तो कभी खेती के काम आसान करने के लिए किसी जुगाड़ मशीन पर काम करते।
किसानों को हर दिन खेती के काम में किसी न किसी समस्या का सामना करना ही पड़ता है। जानकरी और ज्ञान के अभाव में अक्सर इन समस्याओं का हल भी ग़रीब किसानों को खुद ही ढूँढना पड़ता है। और कहते हैं न कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, तो अपनी हर रोज़ की ज़रूरत के हिसाब से गोपाल सिंह ने भी इनोवेशन किये। और उनके ये इनोवेशन आज न सिर्फ़ किसानों के काम को आसान कर रहे हैं, बल्कि कई जगहों पर उनकी आमदनी बढ़ाने में भी सहायक हैं।
गोपाल भाई बताते हैं कि उनका सबसे पहला आविष्कार एक ‘हैंड ड्रिवेन स्प्रेयर’ मशीन थी। इस मशीन को बनाने के पीछे का उद्देश्य मज़दूरों की कमी होते हुए भी खेती का काम समय पर किया जाना था। साथ ही, काफी अधिक वजन वाले परंपरागत स्प्रेयर को पीठ पर उठाना भी आसान नहीं था, इसलिए गोपाल सिंह ने इस इनोवेशन पर काम किया।
उन्होंने इस मशीन को पुरानी साइकिल का इस्तेमाल कर के बनाया है और इसे हाथ से चलाया जा सकता है। साथ ही, बैरल, नोज़ेल और स्प्रे बूम को इस तरह से एडजस्ट किया गया है कि पेस्टिसाइड स्प्रे को ज़रूरत के हिसाब से कम-ज़्यादा किया जा सके।
इस मशीन की कीमत लगभग 4, 000 रूपये है। इसके अलावा इस मशीन को रिपेयर करना और इसका रख-रखाव बहुत ही आसान है। इस मशीन से एक एकड़ फसल को स्प्रे करने में सिर्फ़ 5-6 घंटे लगते हैं।
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