पेरिस्कोप का राम मंदिर में अलौकिक प्रयोग


साइंस का ऐसा अनोखा करिश्मा जिसने अयोध्या के राम मंदिर में स्थापित रामलाल की मूर्ति पर अनोखा तिलक किया, जिसे देखकर लोग हतप्रभ गए। रामनवमी के दिन राम जी के मस्तक पर सूर्य का एक ऐसा दिव्य तिलक हुआ, जिसे सूर्य-तिलक का नाम दिया गया। इसके पीछे का विज्ञान बडा ही विचित्र और रहस्यमयी है। सूर्य के रिफ्लेक्शन द्वारा बनने वाले इस चमत्कारी दृश्य को जानेंगे धनंजय रावल जी से कि यह अद्भुत कार्य किस प्रकार संभव हुआ।

पेरिस्कोप का प्रभाव:
वास्तव में यह चमत्कारी कार्य पेरिस्कोप की मदद से संभव हुआ। पेरिस्कोप पर सूर्य की किरण पडती है और परिवर्तित होकर एक प्रकाशमयी पुंज राम जी की प्रतिमा पर अलंकृत हो जाता है। पेरिस्कोप समतल दर्पणों के संयोजन द्वारा विकसित एक आभासी प्रतिबिंब बनाता है। यह परिदर्शी प्रकाशिक यंत्र अपने चारों ओर के वातावरण को छुप कर दिखा सकता है, इसलिए मुख्यतः इसका प्रयोग पनडुब्बी, युद्धपोत, क्रूस तथा युद्धक्षेत्र में छिपे सैनिकों द्वारा एक तोपखाने के तोपची अफसर द्वारा लक्ष्य को देखने और शत्रु की गतिविधि का ज्ञान करने के लिए किया जाता है। इसमें ऊपर तथा नीचे 45 डिग्री के झुकाव पर दो समतल दर्पण लगे होते हैं।

रामलला की प्रतिमा पर सूर्य तिलक का रहस्य:
धनंजय रावल जी बताते हैं कि मंदिर के शीर्ष पर पेरिस्कोप की भांति एक दर्पण लगा हुआ है, जिस पर सूर्य का प्रकाश पड़ने पर किरण रिफ्लेक्ट होकर सीधे मंदिर में प्रवेश कर प्रतिमा पर विराजमान हो जाती है। यह किरण किसी खास दिन ही परिवर्तित होकर प्रतिमा पर तिलक करती है। इसलिए इसका यह विज्ञान काफी कठिन और पेचीदा भी है। क्योंकि राम मंदिर कर्क रेखा से ऊपर है फिर भी वैज्ञानिकों ने साइंस और टेक्नोलॉजी की मदद से यह है असंभव-सा कार्य भी संभव कर दिखाया है। इसके लिए एक विशेष कंप्यूटराइज टेलीस्कोप का प्रयोग किया गया है जो स्वत: ही सूर्य की दिशा और स्थिति के आधार की सेटिंग पर कार्य करता है, कुछ ऐसा ही ऑटो ट्रैकिंग सिस्टम वाला टेलीस्कोप मंदिर में भी लगाया गया है, जिस कारण यह कार्य हो पता है। रामनवमी के अलावा और भी बहुत सारे दिन ऐसी स्थिति के लिए सेट हो सकते हैं। अर्थात् साल में कुछ विशेष दिन यह सूर्य तिलक प्रतिमा पर दिखाई देगा।

पेरिस्कोप के और अन्य उपयोग:
इसका प्रयोग समुद्र में कई सौ मीटर नीचे पानी में चलने वाली पनडुब्बियों में बाहर की स्थिति का पता लगाने के लिए भी किया जाता है। पनडुब्बी में प्रयुक्त होने वाले पेरिस्कोप की नली लगभग 40 फुट लंबी होती है। यह जंग रोधी इस्पात या कांस्य की बनाई जाती इसे दाएं बाएं घूमने के लिए विद्युत शक्ति का उपयोग किया जाता है। इसमें प्रयुक्त छोटे-से लेंस आवर्धन क्षमता का प्रयोग कर चीजों को बड़ी करके दिखाते हैं। इस प्रकार पेरिस्कोप का प्रयोग उन जगहों पर किया जाता है, जहां मनुष्य की उपस्थिति नहीं होती; परंतु वह दूर से ही वहां की स्थिति का पता लगाने में सक्षम हो जाते है।

तो दोस्तों आज आपने जाना लेंस और दर्पण के प्रयोग से बनने वाले चमत्कारी पेरिस्कोप या परिदर्शी के बारे में। ऐसे ही अन्य रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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