भारत की अद्भुत वैज्ञानिकता का प्रमाण जंतर-मंतर


आज से 300 साल पहले भारतीयों ने कर दी थी ऐसी वेधशाला की रचना, जो सौरमंडल में सूर्य, चंद्रमा और सभी ग्रहों की स्थिती की एकदम सटीक जानकारी देती है। वर्तमान में भी इसका प्रयोग करके पंचांग बनाते हैं, जिससे अनेकों भविष्यवाणी की जाती हैं जैसे- ग्रहण कब पड़ेगा, किसी तारे की स्थिति क्या होगी। देश-विदेश के बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इसके विज्ञान को समझने भारत आते हैं तथा इसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करते हैं। इसी के साथ यूनेस्को और नेशनल वर्ल्ड रिकॉर्ड ने भी इसे अपनी सूची में शामिल किया हुआ है।
जयपुर शहर के संस्थापक अमेर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने सन् 1724 से 1734 तक भारत के पांच शहर जयपुर,दिल्ली,उज्जैन, बनारस और मथुरा में यह शानदार वेधशालाएं बनवाई थी। जिसमें जयपुर की जंतर मंतर वेधशाला में करीब 14 प्रमुख उपकरण है, जिनकी सहायता से अनेकों वैज्ञानिक गतिविधियों का पता लगाया जाता है। इनमें कुछ उपकरण निम्न प्रकार है-
जयप्रकाश यंत्र:
इस यंत्र का नाम राजा सवाई जय सिंह जी के नाम पर पड़ा, ये एक खोखला गोला जैसा उपकरण है। जिसमें सभी 12 राशियों को अलग-अलग पट्टियों पर दर्शाया गया है, जो सूर्य प्रकाश की स्थिति पर कार्य करता है। इसके माध्यम से पता चलता है कि सूर्य कौन सी राशि में चल रहा है। यह यंत्र जंतर मंतर में ही अलग-अलग स्थान पर दो भागों में बनाया गया है। स्थिति इंगित करने के लिए इसमें तारों पर एक लोहे का टुकड़ा लगा है, जो सूर्य की स्थिति के अनुसार मूवमेंट करता रहता है। अतः इसकी स्थिति हर घंटे बदलती है। इसके बीच में विषुवत रेखा को इंगित करती हुई एक लाइन बनी है। जिसपर सूर्य की परछाई ऑटोमेटेकली 21 मार्च या 23 सितंबर को विश्वत रेखा पर पड़ेगी, और इस तारीख को दिन और रात का समय बिल्कुल बराबर 12-12 घंटे का होता है।

लघु सम्राट यंत्र:
जंतर मंतर पर सम्राट यंत्र एक बहुत बड़ा त्रिभुज है। जो 70 फीट ऊंचा, 114 फीट लंबा और 10 फीट मोटा है। इससे आधे सेकंड की सटीकता के साथ दिन का समय मापा जाता है। इस यंत्र का प्रयोग ग्रह के झुकाव कोण की गणना करने के लिए भी किया जाता है। इसी के साथ जंतर-मंतर पर बहुत सारी आकृतियों को नाप तोलकर बनाया गया है, जिनकी सहायता से राशियों की स्थिति का सही-सही पता लगाया जा सके है।
यह सभी यंत्र बहुत ही वैज्ञानिकता से कार्य करते हैं इसीलिए पंचांग बनाते समय ही इस वेधशाला में अंदर जाकर कैलकुलेशन करने की अनुमति मिलती है। जिसके आधार पर सटीक आंकड़े प्राप्त होते हैं। इसके अलावा वहां पर एक मिश्रा यंत्र भी है, जिसकी सहायता से सबसे छोटे दिन का निर्धारण किया जाता है, इसे स्वयं राजा जयसिंह ने बनाया था।
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