यह किसान सालाना कमाती हैं 1 करोड़


लेकिन यह सपना सिर्फ़ रोजा का ही था, उनके परिवार का नहीं। रोजा का परिवार जो पीढ़ियों से खेती करता आ रहा है, चाहता था कि खेतों की मिट्टी में मेहनत करने के बजाय वह शहर में अच्छी सैलरी वाली नौकरी करें।
अपने परिवार की इच्छा के अनुसार, रोजा ने बी.ई. की पढ़ाई पूरी की। जल्द ही उन्हें बेंगलुरु की एक बढ़िया कंपनी में नौकरी मिल गई। कुछ समय तक रोजा अपने सपने को किनारे कर कॉर्पोरेट जॉब करती रहीं। लेकिन 2020 में COVID-19 महामारी के आने के बाद चीज़ें बदल गईं।

कैसे हुई शुरुआत:
लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम की वजह से वह अपने घर लौट आईं। फिर उन्होंने ऑर्गेनिक खेती शुरू करने का फैसला किया।
उनके पिता और भाई फुलटाइम किसान हैं। लेकिन कुछ सालों से उन्हें खेती में भारी नुक़सान हो रहा था।
वह कहती हैं, “वे पूरी तरह से हार मानने लगे थे और मैं इस बारे में कुछ करना चाहती थी। हालांकि मेरा परिवार नहीं चाहता था कि मैं खेती करूं। लेकिन मैंने अपने खेत को ऑर्गेनिक तरीक़ों से पुनर्जीवित करने की ठान ली। ऑफ़िस का काम ख़त्म होने के बाद, शाम 4 बजे से खेत में काम करना शुरू कर दिया।”
रोजा आगे बताती हैं, “मेरे परिवार को यक़ीन नहीं था कि मैं ऑर्गेनिक तरीक़े से ज़मीन को फिर से उपजाऊ बना सकती हूं, क्योंकि वे कई सालों से केवल केमिकल फर्टिलाइज़र का इस्तेमाल कर रहे थे। यही केमिकल हमारे खेत की उपज को कम करने का सबसे बड़ा कारण थे। बहुत मेहनत के बाद, मैंने उन्हें ग़लत साबित कर दिया। ”
आज, रोजा ने अपनी नौकरी छोड़ दी है और एक फुलटाइम किसान के रूप में काम करती हैं। वह 50 एकड़ की विशाल ज़मीन पर ऑर्गेनिक सब्जियां उगाती हैं। वह बताती हैं कि अब उनकी सालाना कमाई क़रीब 1 करोड़ रुपये है।
ऑर्गेनिक खेती क्यों ज़रूरी:
रोजा बताती हैं कि जब उन्होंने 2020 में ऑर्गेनिक खेती शुरू की, तो उनके परिवार, ख़ासकर उनके पिता और भाई ने उनके फैसले का विरोध किया। रिश्तेदारों और आस-पास के लोगों ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि जब रोजा के पास एक अच्छी सैलरी वाली कॉर्पोरेट जॉब है तो उन्हें खेती करने की क्या ज़रूरत।
रोजा आगे कहती हैं, “लोगों का मानना था कि केवल केमिकल खेती से ही उन्हें बेहतर उपज मिलेगी, लेकिन यह सोच बिलकुल ग़लत थी।”
वह कहती हैं कि बड़े होते हुए उन्होंने अपने दादाजी को ऑर्गेनिक खेती करते देखा था, लेकिन उनके पिता और भाई ने इतने लंबे समय तक केमिकल का इस्तेमाल किया कि मिट्टी की क्वालिटी बहुत गिर गई, जिसका असर उपज पर पड़ा।
सूखाग्रस्त चित्रदुर्ग जिले के डोनहल्ली गाँव में 20 एकड़ के खेतों में से केवल छह का इस्तेमाल उनका परिवार अनार उगाने के लिए करता था। सिंचाई में कठिनाई होने की वजह से बाक़ी की ज़मीन का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था।
रोजा ने अपने परिवार से कहा कि वे उसे इस्तेमाल नहीं हो रही ज़मीन पर खेती करने दें। वह छह एकड़ में अपना ऑर्गेनिक सब्जी का फार्म बनाना चाहती थी।
खेती ने बनाया आत्मनिर्भर:
अपने गांव में ऑर्गेनिक खेती में सबसे सफल किसान होने की वजह से, आज कई किसान इसे सीखने रोजा के पास आते हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं जिन्होंने शुरुआत में इस तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए उनका मज़ाक उड़ाया था।
रोजा बताती हैं कि अब तक उनके गाँव के लगभग 25 किसानों ने उनसे मार्गदर्शन लिया है और ऑर्गेनिक खेती को अपनाया है। वह कहती हैं, “मैं उन्हें बिना किसी बिचौलिए के सीधे बाज़ारों में अपनी उपज बेचने में मदद करती हूं, जिससे उनकी कमाई भी अच्छी होती है।”
अब उन्होंने अपने खेत का विस्तार छह एकड़ से 50 एकड़ तक कर लिया है और टमाटर, बीन्स, गाजर, बैंगन, भिंडी, लौकी, करेला, मिर्च और खीरे की किस्मों सहित लगभग 20 तरह की सब्जियां उगा रही हैं।
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