यह पौधा किसी सोने से कम नहीं

23 May 2024 | Innovation
यह पौधा किसी सोने से कम नहीं

कीचड़ में खिला हर फूल कमल हो ना हो लेकिन इस तालाब में उगने वाला यह पौधा किसी सोने से कम नहीं बस जरूरत है पहचानने वाले एक जौहरी की। इस जौहरी रूपी परिवार ने कर दिखाया कमाल जब इन्होंने इस पौधे को सुखाकर इसके रेशों से बनाई बेहतरीन चमकदार साड़ियां तथा और भी कई प्रोडक्ट्स। आईए जानते हैं इन लोगों से किस प्रकार करते हैं ये यह शानदार कार्य


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दोस्तों अक्सर तालाब में खड़ी हुई चौड़े पत्तों वाली हरी घास आपने ज़रूर देखी होगी जिसे जलकुंभी कहा जाता है। ये लोग सबसे पहले इसे जड़ से काटते हैं फिर इसके शीर्ष पर आने वाले पत्ते को काट देते हैं तथा जलकुंभी की बची हुई डंडी को इकट्ठा करते हैं। उनको एक गठड़ी में बांधकर सूखने के लिए छोड़ देते हैं। लगभग चार से पांच दिन सीधी सूरज की धूप में सूखने के बाद वह सुनहरे रंग की हो जाती है। जो सूखने के बाद बहुत मजबूत हो जाती है अगर आप इसको हाथ से खींच कर तोड़ना चाहे तो टूटेगा नहीं।


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इसके बाद इन सूखी हुई डंडियों को बीच में से छीलने पर एक प्रकार का फाइबर निकलता है। छीलने के बाद इन्हें पानी में भिगोते हैं तथा पुनः सूखने के लिए छोड़ देते हैं जिससे अब यह बहुत ही नरम हो जाते हैं और इसमें धागेनुमा तंतु भी दिखने लगते हैं। फिर यह मील में जाता है वहां इसके साथ कुछ मात्रा में कॉटन को मिलाकर धागा बनाया जाता है और उसे धागे से जो साड़ी का निर्माण होता है वह बेहद खूबसूरत और आकर्षक है। साड़ियों के अलावा सूट और कुर्तों का भी निर्माण किया जाता है जिनकी कीमत दो से ढाई हजार तक होती है।


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कपड़ों के अलावा इसका प्रयोग अन्य प्रोडक्ट बनाने के लिए भी किया जाता है। जिसमें इससे धागा ना बनाकर गत्ता या कागज बनाते हैं, इसके लिए जलकुंभी को सुखाकर भिगोकर तथा फिर सुखाकर और एक पेपर पर ग्लू के माध्यम से चिपका कर मोटे गत्ते की स्ट्रिप के रूप में बना लिया जाता है। तथा उससे फोटो-फ्रेम, पेंसिल बॉक्स, पेपर फाइल फोल्डर तथा अन्य सुंदर और आकर्षक प्रोडक्ट बनाए जाते हैं।


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इन हैंडीक्राफ्ट आइटम्स की बाजार में काफी डिमांड है क्योंकि यह पूर्णतया ऑर्गेनिक प्रोडक्ट है। जो देखने में बहुत ही शाही प्रतीत होते हैं। दोस्तों साड़ी और अन्य क्राफ्ट बनाने का यह था एक अनोखा तरीका। उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी ऐसी ही और अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहे हमारे साथ। धन्यवाद॥




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