वेस्ट-प्लास्टिक-बॉटल का प्रयोग कर बनाया लाजवाब घर


जुगाड़ और क्रिएटिव दिमाग से भरे भारत के युवा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। जो वेस्ट मटेरियल का भी बड़े शानदार तरीके से प्रयोग कर बेहद उपयोगी और लाजवाब प्रोडक्ट बना देते हैं। जिन पर आम आदमी सोचने को मजबूर हो जाता है, ऐसा ही कमाल कर दिखाया इन लोगों ने। 85000 प्लास्टिक की बोतल इकट्ठा कर बना दी शानदार सुंदर और मजबूत दीवार, जो ईटों से बनी दीवार को भी फेल करती है। इसमें लोहे के सरियों की जगह बांस का इस्तेमाल किया गया है। आये जानते हैं इन भाई साहब से यह किस प्रकार इस लाजवाब कार्य को कर रहे हैं।
ऐसे बनाते हैं बोतलों से दीवार:
सबसे पहले विभिन्न स्रोतों से यूज की हुई प्लास्टिक की बोतलों को इकट्ठा कर एक स्थान पर लाया जाता है। उसके बाद क्रश सेंड या बालू रेत में 5 से 7% सीमेंट तथा उसमें पानी मिलाकर एक घोल या लिक्विड बना लेते हैं। जिसे बारी-बारी से यह लिक्विड इन बोतलों में भरा जाता है, इसके अलावा बोतल में मिट्टी भी भर सकते हैं। इन्हीं बोतलों का इस्तेमाल कर इन्होंने करीब 1000 स्क्वायर फीट में यह घर बनाया हुआ है।
दीवार चिनने का वही साधारण तरीका है, जिस प्रकार ईट को चिना जाता है। सीमेंट के पेस्ट को लगाकर उसके ऊपर बारी-बारी से इन बोतलों को रखा जाता है। यह काफी मजबूत भी माना जाता है। इन दीवार पर चाहे तो प्लास्टर भी कर सकते हैं अन्यथा बिना प्लास्टर के भी ये बोतलें काफी यूनिक और शानदार दिखती है। प्लास्टर करने के लिए यह व्हाइट सीमेंट में आवश्यक कलर का पिगमेंट मिला देते हैं, जिससे प्लास्टर होने के साथ-साथ कलर भी हो जाता है और यह कलर कभी हटाता भी नहीं। अपने घर के ऑफिस में इन्होंने छत बनाने के लिए भी प्लास्टिक की बोतलों और सरिया के स्थान पर बंबू अर्थात बांस का इस्तेमाल किया हुआ है, जिस कारण यह कमरा वातानुकूलित भी रहता है। स्लैब बनाने के लिए भी 70% बांस और 30% स्टील या लोहे का प्रयोग करते हैं। कमरे बनाने के साथ-साथ गार्डन में स्विमिंग पूल तथा वहां की दीवारें भी प्लास्टिक की बोतल से ही विकसित की हुई है। बोतलों से बनी स्विमिंग पूल की सीढ़ियां देखने में बड़ी ही आकर्षक और प्रभावशाली लगती है। यदि कोई इनके इस यूनिक से प्रयोग को आकर देखना चाहे तो इनका यह घर पुणे महाराष्ट्र में स्थित है तथा इनका मोबाइल नंबर 9822050330 है।
दोस्तों इस आकर्षक प्रयोग का इस्तेमाल आप भी अपने ऑफिस, कार्यस्थल, स्कूल, रेस्टोरेंट आदि की दीवार पर कर सकते हैं। यह वास्तव में दिखने में एकदम शानदार और यूनिक लगेगा, जिसे देखकर निश्चित रूप से लोग प्रभावित होंगे। इससे पर्यावरण को भी निश्चित रूप से फायदा होगा, क्योंकि वेस्ट प्लास्टिक का सही प्रयोग होगा, ईंटें बनाने हेतु मिट्टी की बचत होगी। अतः इस कार्य को स्कूल-कॉलेज वाले अपने विद्यार्थियों से आर्ट एंड क्राफ्ट के पीरियड में करा सकते हैं, जिससे बच्चों में क्रिएटिविटी का विकास होगा। इस प्रकार की अन्य रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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