सैकड़ों साल पुरानी लाइटें


मन की दृढ़-इच्छा और जिज्ञासा इंसान से बड़े-बड़े रहस्यमयी कार्य आसानी से करा देती है। ऐसे ही 40 वर्षों से एंटीक लाइटें, लैंप आदि का कलेक्शन कर रहे इस युवक ने कमाल कर दिया। अपने इस म्यूजियम में संजो रखें है सैकड़ों वर्षों पुराने विभिन्न यंत्र, जिनमें अद्भुत डायरी लैंप, पिंजरे की तरह दिखने वाली लाइट, साइकिल में इंडिकेटर देने वाला यंत्र और रेलगाड़ी की चार दिशाओं वाली लाइटें सहित सैकड़ों उपकरण प्राचीन इतिहास की अद्भुत रूप में जानकारी दे रहे हैं। आये जानते हैं सभी रहस्यमयी गैजेट्स के बारे में यह किस प्रकार कार्य करते थे।

डायरी-लैंप:
डायरी की तरह दिखने वाली यह लाइन पांच परतों में विभाजित है, जिसे खोलने पर यह पिरामिड के आकार में बदल जाता है। इसकी दीवारें विशेष प्रकार के कांच की बनी हुई है। बीचों-बीच एक मोमबत्ती रखी जाती थी, जिसका प्रकाश कांच से रिफ्लेक्ट होकर चारों दिशाओं में चार गुना होकर फैलता था। यह अनोखी डायरी ट्रैवलिंग लैंप के रूप में जानी जाती है।
पिंजरेनुमा लैंप:
विभिन्न पत्तियों से डिजाइन किया गया यह गोलाकार लैंप अद्भुत है। इसके अंदर तीन परतें चलायमान है तथा अपनी धुरी पर घूमती रहती है। बीचों-बीच एक भारी वजन में लैंप रखा जाता है। ज्यादा वजन होने के कारण यह लैंप संतुलित रहता है, हिलने पर इधर-उधर नहीं डगमगाता था। इसका प्रयोग प्राचीन समय में बैलगाड़ी में किया जाता था। बैलगाड़ी में टांगने पर केवल इसका पिंजरेनुमा आकर ही हिलता था, जबकि अंदर की जलने वाली बत्ती संतुलित रहती थी। इसमें छोटे-बड़े आकार के लैंप आते हैं। लाइट की यह तकनीक 150 से 200 साल पुरानी है

रेलगाड़ी का सिग्नल:
बड़े ही चमत्कारिक तरीके से रेलगाड़ी का सिग्नल देने हेतु लैंप का प्रयोग किया गया है। इस अद्भुत से लैंप में चारों तरफ प्लेटें लगी है, जिनमें दो हरे रंग की तथा दो लाल रंग की है। बीच में मिट्टी के तेल में डूबी हुई एक बत्ती जलाई जाती थी। रेलगाड़ी को रोकने के लिए इसकी प्लेटों को ऊपर नीचे फिक्स करके लाल प्लेट की तरफ घुमा दिया जाता था, जिस कारण लैंप लाल रंग का प्रकाश उत्सर्जित करता और उसे देखकर ट्रेन रुक जाती थी। इसी प्रकार रेलगाड़ी को चलाने के लिए बत्ती को हरी प्लेट की तरफ फिक्स कर चला देते थे और ट्रेन हरी लाइट देखकर चल पड़ती थी। यह था रेलगाड़ी को सिग्नल देने का प्राचीन और अद्भुत तरीका।
साइकिल लैंप:
बहुत ही छोटे आकार का डिबिया जैसा एक लैंप मौजूद है, जो करीब 150 साल पुराना है। जिसमें पीछे की तरफ एक बैटरी लगाने की जगह है तथा बीच में एक बल्ब जलता है और उसके आगे की तरफ विभिन्न रंगों से युक्त एक शीशा लगा है, जो एक ढक्कन से कवर है तथा ढक्कन में एक गोल हॉल से प्रकाश निकलता है। जिसको घूमाने पर रंग-बिरंगा प्रकाश उत्सर्जित होता है। इस लैंप को साइकिल पर आगे लगा देते थे, तो यह बहुत दूर तक तीव्रता के साथ प्रकाश उत्सर्जन करता था।
यह भाईसाहब प्राचीन इतिहास को सुरक्षित रखने के लिए पिछले 40 वर्षों से कार्यरत है, इनका उद्देश्य है कि आने वाली पीढ़ी को अपने प्राचीन इतिहास की जानकारी से अवगत कराना। इसके लिए विभिन्न स्रोतों से एंटीक उपकरणों का कलेक्शन करते हैं। उनके इस छोटे से म्यूजियम में बहुत तरह की एंटीक घड़ियां और लैंप मौजूद है। यदि कोई भाई उनके इस शानदार से म्यूजियम को विजिट करना चाहे तो, यह पुणे महाराष्ट्र में प्रभात रोड पर लेने नंबर 9 के नीचे स्थित है। तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं और ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहेगा "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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