हजार साल पुराना अद्भुत भूमिगत जल-संग्रहण सिस्टम


राजस्थान में अरावली पहाड़ी के बीच बसा यह शानदार किला दुनिया के सभी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को फेल करता है। 1000 साल पहले बड़ी प्लानिंग और उच्च तकनीक का प्रयोग करते हुए बनाया गया, जो 10 साल तक भी पानी की कमी नहीं होने देता तथा 60 लाख गैलन जल को संचय करने की क्षमता रखता था। इसकी बनावट देखकर आज के वास्तुकार भी दंग रह जाते हैं। इस पहाड़ी इलाके में पत्थर को काट-काट कर कई किलोमीटर क्षेत्रफल में बड़े-बड़े वॉटर कैनाल बना रखे हैं, जो बारिश के पानी को एक जगह लाकर इकट्ठा कर देते थे। आये जानते हैं 1036 ई. अर्थात् लगभग 1000 वर्ष पहले बने इस गजब के वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के बारे में।

4 किलोमीटर लंबी वॉटर कैनाल:
इस महल के बीच में एक बहुत बड़ा तथा गहरा तालाब बना रखा है, जो विभिन्न नहरों से अटैच है, इनके माध्यम से बारिश का पानी संचित होकर आता है और इस तालाब में इकट्ठा हो जाता है। महल के बाहर 4 किलोमीटर लंबी ढलानदार नहर बनी है, जो किले के पास 200 मीटर चौड़ी तथा आगे जाकर 1 किलोमीटर तक चौड़ी हो जाती है। इस नहर के माध्यम से टैंक में पानी आता था, इसके मुहाने पर एक बड़ी जाली लगी है, जो कचरे को रोकने का कार्य करती थी। इस नहर की संरचना, तकनीक के हिसाब से विभिन्न ढलनों से युक्त है। आखिर में इसका ढलान 5 फीट ऊंचाई तक हो जाता है, जिससे पानी बहाव के साथ ऊपर तक जाता है तथा फिर नीचे आता है। इससे पानी में उपस्थित मोटे कंकड़ पत्थर वहीं रुक जाते हैं और पानी और पत्ते वगैरा बहकर नीचे आ जाता है। यहां आकर यह नहर दो भाग में बट जाती है। जब इस कैनाल के माध्यम से पहली या दूसरी बारिश में मिट्टी युक्त गंदा पानी आ रहा होता है, तो वह सामने वाले पहले भाग में अर्थात् 30 फीट गहरे लंबे-चौड़े खुले तालाब में जाने दिया जाता है। और दो-तीन बारिश के बाद साफ पानी आना शुरू हो जाता था, तब पहले वाले भाग को लकड़ी के स्लैब द्वारा बंद कर देते थे और दूसरे भाग में पानी जाने दिया जाता था, आगे चलकर यह भाग भी तीन हिस्सों में विभाजित हो जाता है।

निथार सिस्टम से जल शुद्धीकरण:
तीनों कैनाल अलग-अलग बड़ी-सी हौद में जाकर खुलते है, जो थोड़ी गहरी होने के कारण आने वाले कंकड़-पत्थर मोटे पदार्थ को वहीं रोक लेती है और साफ पानी को आगे जाने देती है। जैसे-जैसे बारिश होती थी, वैसे ही इन तीनों टैंकों में जल संचय कर लिया जाता था। जल टैंक में जाने से पहले निथार सिस्टम अर्थात् सेडिमेंट्री फिल्ट्रेशन द्वारा शुद्ध होकर टैंक में गिरता था, इसमें छोटे-छोटे 4 पाइपों के माध्यम से पानी रिस-रिसकर आता था। यह पाइप भी मिट्टी के शंकरों को जोड़-जोड़कर बनाए हुए हैं जो फिल्टर करने में महत्वपूर्ण है। जैसे-ही एक टैंक भरता था, जल ओवरफ्लो होकर दूसरे टैंक जो 58 फीट गहरा है में चला जाता था। दूसरा टैंक भरने पर जल तीसरे टैंक में ओवरफ्लो हो जाता था। इस प्रकार तीसरे टैंक में सबसे शुद्ध जल प्राप्त होता था, जिसका प्रयोग पीने हेतु किया स्वाभाविक था। टैंक में वेंटिलेशन के लिए जगह-जगह बहुत सारी विंडो भी बना रखी है। इस टैंक के केंद्र में एक 2*2 का का एक विंडो बना है जहां से इस 158 फीट लंबे, 138 फीट चौड़ा और 30 फीट गहरे तालाब की देखरेख की जाती है। इस टैंक में 60 लाख गैलन पानी जमा हो जाता है। यह तीनों टैंक केंद्रीय प्रांगण के नीचे भूमिगत है। इन टैंकों में दोनों तरफ सीढ़ियां भी बनाई हुई है, ताकि आपातकालीन स्थिति में बारिश कम होने पर पानी का स्तर नीचे रहें, तो सीढ़ी से उतरकर जल भर कर ले जाया जा सके।
इन टैंकों का पानी कभी खाली नहीं हुआ था, वर्तमान में इनकी सफाई करने हेतु पंपों की मदद से इसे पहली बार खाली तब किया गया जब 1976 में इंदिरा गांधी की सरकार में एक अफवाह फैली की इन टैंकों में राजा जय सिंह और उसके रिश्तेदारों के आभूषण, खजाने संग्रहित है, हालांकि वहां ऐसा कुछ नहीं मिला था।
तो दोस्तों आपने देखा जयगढ़ किले में जल संग्रहण करने की शानदार प्रणाली जिसमें पहाड़ियों पर स्थित पक्की नहरें बारिश के पानी को इन तालाबों तक लाने के लिए जिम्मेदार होती थी। किले में बने तालाब का पानी आपातकाल के लिए संग्रहित किया जाता था; आमतौर पर पानी उन तालाबों से लिया जाता था जो आमेर की तरफ पहाड़ियों के नीचे स्थित है। इसी प्रकार अन्य रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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