सैकड़ो साल पुरानी तकनीक पर कार्य करते विभिन्न यंत्र


मनुष्य के काम को आसान कर देने वाली मशीनों का इस्तेमाल तो अब से पहले भी होता था, किंतु जब यह मशीनें आयी-आयी थी, तब इनकम मेकैनिज्म अब से अनोखा था। इस संदर्भ में हम जानेंगे आज से 300 साल पुरानी सिलाई मशीन, आयरन, ताले, तराजू, बाट, पंखे, टेलीफोन, टाइपराइटर इत्यादि के बारे में, जिनके बारे में जानकर आप निश्चित रूप से प्राचीन प्रौद्योगिकी पर गर्व महसूस करेंगे।
सन् 1700 की सिलाई मशीन:
अद्भुत मेकैनिज्म से बनी यह 300 साल पुरानी मशीन हाथ से घूमाने पर चलती थी, इसमें ऊपर की तरफ धागे से भरी रील लगाई जाती थी तथा एक हाथ से मशीन का हैंडल घूमते थे तथा दूसरे से मशीन की सुई के पास कपड़े को रखकर सिलाई करते थे।

अद्भुत प्रेस:
कपड़ों पर आयरन करने के लिए पुराने समय में विभिन्न तकनीक का प्रयोग किया जाता था। जैसे शर्ट या ट्राउजर पर क्रिज़ या धारी बनाने के लिए एक चिमटेनुमा प्रेस थी जिसके बीच में कपड़े को रखकर स्वैप करने पर धारी बन जाती थी। इसके अलावा विभिन्न कपड़ों पर आयरन करने के लिए ठोस लोहे की बनी प्रेस आती थी, जिसमें कोयल नहीं भरने पड़ते थे; बल्कि प्रेस की तली पर एक महीन लोहे की परत का अस्तर लगाकर आग पर रखकर गर्म करते और कपड़े से साफ कर प्रेस की जाती थी। यह प्रेस विभिन्न आकारों में हैंडल के साथ इस शानदार से म्यूजियम में याद बनाने हेतु आज भी उपलब्ध है।

प्राचीन ताले:
2 से 3 किलोग्राम वजन के यह तले भी अपने आप में एक आकर्षक गुण रखते हैं। इनको खोलने के लिए भी करीब 1 फुट लंबी चाबी का इस्तेमाल किया जाता था, जो गरारी के मेकैनिज्म पर कार्य करते थे तथा चाबी को कई बार घूमने पर आगे गोल कड़े के आकार में लगा कुंदा खुल जाता था।

विभिन्न प्रकार के प्राचीन मापक यंत्र:
पुराने समय में मुद्रा के प्रचलन से भी ज्यादा वस्तुओं के विनिमय पर बाजार प्रणाली निर्भर रहती थी। इसके लिए लोग विभिन्न प्रकार के बाटों का इस्तेमाल करते थे, उसी कड़ी में ब्रिटिश काल में एलबीएस यूनिट अर्थात् पाउंड इकाई में बाटों का भी प्रचलन था। इन बाटों को कैरी करने के लिए ऊपर हैंडल भी लगे हुए थे। इसके अलावा निश्चित आयतन के कुछ पात्र भी थे, जिनमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ भरकर उनका मापन किया जाता था।

100 किलो तक वजन मापने वाली छोटी सी तराजू:
एनालॉग पद्धति के माध्यम से वजन को दर्शाने वाली यह तराजू दिखने में तो बहुत ही छोटी लगती है; परंतु इसके माध्यम से बहुत भारी वजन को भी आसानी से मापा जा सकता है, इसमें नीचे की तरफ एक हुक लगा है, जिस पर वजन रखने से सूईं घूमती है और एक चक्कर घूम जाने पर 10 किलो वजन हो जाता है और नीचे एक लाइन उभर कर आती है। इस प्रकार इसके माध्यम से एक सटीक वजन कि मापन हो जाता है।

बिना बांट वाले तराजू:
इसी प्रकार ऐसे तराजू जिन पर वजन रखने से उनमें लगी सुई वजन की ओर इंगित कर देती। यह मापक यंत्र आज के डिजिटल तराजू की तरह वर्क करता था; परंतु यह बिना किसी करंट या बैटरी के कार्यशील है। सामान्यतः इनका प्रयोग डाक विभाग में पोस्टल सामग्री मापन हेतु भी किया जाता था।

लकड़ी से बना सीलिंग फैन:
लगभग 100 साल पुराना लकड़ी की पंखुड़ियां से बना यह पंखा आज भी कार्यरत है और अच्छी हवा देने के साथ-साथ दिखने में एकदम यूनिक और शानदार प्रतीत होता है। इसके अलावा उनके इस रहस्यमयी म्यूजियम में बहुत सारी अन्य प्राचीन धरोहरें संरक्षित है।

दही बिलोने हेतु हाथ से चलने वाली छोटी-छोटी कितनी वैरायटी में उपलब्ध मशीनें भी गजब की है। इसी के साथ पुराने समय में उपयोग होने वाले टाइपराइटर, टेलीफोन की विभिन्न वैरायटी भी संग्रहित की हुई है। तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा इनसे संपर्क करने के लिए पुणे, महाराष्ट्र में स्थित Vikram Pendse Cycles Private Museum को विसिट् कर सकते हैं, ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ धन्यवाद॥
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