प्लास्टिक से ईंधन ऑयल बनने तक का सफर


पेट्रोल का भंडार दिनों-दिन खत्म होता जा रहा है, जिस कारण पेट्रोल-डीजल के दाम भी बढ़ रहे हैं। उसी के चलते इंजीनियरिंग पद्धति के लोगों ने प्लास्टिक से फ्यूल बनाने की तकनीक को विकसित कर लिया है। घरों से निकले प्लास्टिक-पॉलिथीन के वेस्टेज से बनाया जाता है ऐसा कमाल का तेल, जिसका ईंधन के तौर पर बहुमुखी रूप से प्रयोग होता है। इस प्लास्टिक रेद्दी से चलेगी गड्डी। डॉक्टर मेधा और उनके हस्बैंड ने किया है यह आविष्कार। वह अपनी टीम के द्वारा घर-घर से प्लास्टिक इकट्ठा कर किस प्रकार इस कार्य को संपन्न करते हैं आये जानते हैं इस लेख में।

प्लास्टिक से तेल बनाने की संपूर्ण प्रक्रिया:
सबसे पहले इनके द्वारा गठित टीम विभिन्न मेगा स्टोर तथा बहुत सारे घरों से निकलने वाले प्लास्टिक या पॉलीथीन के वेस्टेज को महीने में दो बार या हर हफ्ते कलेक्ट कर अपनी फैक्ट्री के अंदर लाती है। प्राप्त प्लास्टिक में से सॉफ्ट और हार्ड प्लास्टिक को अलग-अलग भाग में बांट लेते हैं, जिसका बाद में एग्लो बनता है।

विभिन्न खाद्य पदार्थों के रैपर्स सहित 30-40 प्रकार की प्लास्टिक का रीयूज़ करने के लिए एक बड़ी-सी मशीन में क्रेशिंग करते हैं, जिसमें अंदर ब्लेड लगे रहते हैं, जो घूम घूम कर प्लास्टिक को चूर्ण की तरह क्रश कर देते हैं।

फिर इस मिक्सड क्रश्ड प्लास्टिक को छोटे बोरों में भरकर एक भट्टीनुमा दिखने वाली बड़ी-सी मशीन में डाल देते है, जिसका टेंपरेचर 200 से 250 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है। प्लास्टिक मेल्ट होने लगती है और गैसेस स्टार्र में लगे कॉलम और बैंड पाइप के द्वारा गैस कंडेनसर में आती है। कंडैन्शर में आने के बाद कूलिंग चालू करते हैं, जिससे गैस लिक्विड फॉम में कन्वर्ट हो जाती है।

तथा जो गैसेस बच जाती है, उसको पाइप के माध्यम से लगे ऑटो प्रेशर स्विच द्वारा प्रयोग कर लेते है, जिसे 0.5 पर सेट किया हुआ है। अब इस लिक्विड को ही तेल के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह तेल कंडेनसर से पाइप के द्वारा नीचे आता है और ऑयल टैंक में तेल स्टोर कर लेते हैं।
कंपनी निर्माण प्रक्रिया:
मेधा जी और उनके को-फाउंडर शिरीश फड़तरे ने 2009 में यह रुद्रा ब्लू प्लेनेट कंपनी इस्टैबलिश्ड की थी। जिसमें यह प्लास्टिक बनाने की रिवर्स प्रक्रिया को दोहराते है। जैसे प्लास्टिक हाइड्रोकार्बन या डीजल, पेट्रोल इत्यादि से बनता है, उसी प्रकार यह रिवर्स प्रक्रिया अपनाकर प्लास्टिक से पुन: तेल प्राप्त किया जाता है। यह तेल भी पेट्रोलियम डीजल जैसा ही होता है या उससे थोड़ी कम क्वालिटी का कह सकते हैं। जैसा कि ऊपर बताया कि विभिन्न कॉलोनी के घरों से प्लास्टिक वेस्टेज को हफ्ते या महीने में उनकी टीम उठा कर ले आती है, जिससे यह फ्यूल बनता है। तथा इससे बचे हुए प्लास्टिक से बिटमैन रोड अर्थात् प्लास्टिक की सड़क भी बनाते हैं।

कंपनी के डायरेक्टर शिरीश जी बताते हैं कि हम 100 किलो प्लास्टिक का उपरोक्त विधि से इस्तेमाल कर लगभग 50 लीटर तक फ्यूल प्राप्त कर लेते हैं। इसी के साथ इसमें से 25 से 30 लीटर गैस भी निकलती है जिसको स्टोर कर इस्तेमाल किया जाता है तथा अपने इस फ्यूल से ही मशीनों को संचालित भी करते है।

अर्थात् प्राप्त फ्यूल और गैस से ही मशीनों के द्वारा हीटिंग करायी जाती है। तथा तेल निकल जाने के बाद जो रेसिड्यू यह चार बचता है उसका सड़क बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। यह अब तक 5 से 8 लाख किलो प्लास्टिक से फ्यूल और विभिन्न जगह रोड़ भी बन चुके हैं। इनकी यह रुद्रा ब्लू प्लेनेट कंपनी पुणे महाराष्ट्र में स्थित है। जिसे इच्छुक व्यक्ति विसिट कर सकते हैं, ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद॥
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