डेनिम या जींस कपड़ा बनाने की शानदार फैक्ट्री

08 Sep 2024 | Manufacturing
डेनिम या जींस कपड़ा बनाने की शानदार फैक्ट्री

सैकड़ों सालों से चली आ रही विशेष कपड़ा बनाने की एक ऐसी विधि, जो ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में अपनी मांग बनाए हुए हैं। अद्भुत तरीके से निर्मित यह डेनिम जींस का कपड़ा अपना एक अलग इतिहास रखता है। धागे से बनेगा कपड़ा और इस कपड़े से बनती है जींस। यह कार्य फुल ऑटोमेटिक मशीनों द्वारा बहुत ही स्मार्ट तरीके से किया जाता है। आये जानते हैं सोनीपत के रविंद्र कुमार जी से डेनिम कपड़ा बनने तथा उसकी कलरिंग से लेकर वॉशिंग प्रक्रिया तक के सफर को।

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कैसे बनता है जींस या डेनिम का धागा: 

डेनिम उत्पादन प्रक्रिया कपास के पौधे की खेती से शुरू होती है। इसका पौधा बढ़ने के साथ अपने छोटे काले बीजों के चारों ओर रेशों की एक मोटी गेंद विकसित करता है और इन रेशों को इकट्ठा करके उन्हें बीज से अलग करके कपड़ा बनाया जाता है। साफ किए गए कपास के रेशों को कंघी करके लंबी पतली डोरी बनाई जाती है, फिर उन्हें औद्योगिक मशीन का उपयोग कर सूत में काता जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कई तरह की धुलाई या रंगाई जैसी गतिविधियों की जाती है जिन्हें हम आगे देखेंगे।

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डेनिम कपड़ा बनने की विधि:

जींस का कपड़ा बनाने के लिए सबसे पहले कच्चे माल के रूप में यार्न के पहले से ही निर्मित विभिन्न प्रकार के धागे आते हैं, जिन्हें 10-12 बीम में सेट कर औद्योगिक मशीन द्वारा उपरोक्त धागों से बुनकर एक सीट बनायी जाता है। वह सीट गाइड रोल के थ्रू आगे कलरिंग के लिए कलर किचन एरिया में जाती है। जहां पर सभी कलर तैयार होते हैं जो सीट पर चढ़ाते हैं।

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उससे पहले बनी कपड़े की यह सीट वॉश होती है। वॉशिंग के बाद कलरिंग करने का कार्य शुरू किया जाता है। रंग करने के लिए कपड़ा मशीन में एक तनाव के साथ लंबवत लपेटा जाता है, जिसे मशीन गोल-गोल घूमा कर रंग से भरे टैंक में डूबाती है। यह प्रक्रिया अलग-अलग 6 से 7 टैंक में डिप करके दोहराई जाती है, जिससे निर्मित कपड़े पर डार्क रंग उभर कर आता है और यह रंग सूखने के बाद छूटाये नहीं छूटता। 

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कलरिंग हो जाने के उपरांत आगे साइजिंग हेतु यार्न के अंदर मांडी लगाई जाती है, जो इसकी स्ट्रैंथ बढ़ाती है। इसमें उपरोक्त रंगी हुई सीट यान में लगे ड्राई कैन द्वारा सुख कर ऊपर जाती है। जहां इसका एक बार फिर मॉइश्चर चेक होता है। पूर्ण रूप से ड्राई शीट को एकम्युलेटर मशीन से पासिंग करते हैं और फाइनली प्रोडक्ट रोलिंग हो जाता है। फिर सीट्स की रोल टू रोल स्ट्रेचिंग हो जाती है। बाद में यह दूसरी मशीन पर जाता है, जहां बहुत सारे बर्नर्स लगे हैं, यह इसको स्मूथ करने का कार्य करते हैं।

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दरअसल इस फैब्रिक के ऊपर रिनेस होते हैं, जो बर्नर्स द्वारा गर्म करने पर रिमूव हो जाते हैं और कपड़ा स्मूथ, मुलायम अर्थात् फैब्रिक में लस्टर आ जाता है। अब इस सिंगल रोल को बैच में कन्वर्ट कर फिनिशिंग यूनिट में ले जाया जाता है, जहां फैब्रिक फिनिशिंग प्रक्रिया से पास होते हुए, एक बार फिर वॉशिंग की प्रक्रिया से गुजरता है और ड्राई होने के उपरांत फाइनल प्रोडक्ट प्राप्त होता है।

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जिसकी क्वालिटी चेक कर कपड़े को ग्रेडिंग सिस्टम द्वारा अलग-अलग क्वालिटी में इकट्ठा कर लेते हैं। अब फाइनली जींस के कपड़े से बने करीब 150 मीटर लंबे रोल को मशीन द्वारा रोलिंग पॉलिथीन से पैक कर मार्केट में सप्लाई कर देते हैं।यह जींस बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी और विभिन्न विधियों से गुजरती है, जिसमें सबसे पहले यार्न की टेस्टिंग कर सीएसपी चेक करते हैं,

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जिससे बनने वाले कपड़े की क्वालिटी का अंदाजा लगाया जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार की वैरायटी भी होती है। जैसे- लाइक्रा, सनफोराइज्ड डेनिम, स्ट्रेच्ड डेनिम, आरएफडी फैब्रिक, निट फैब्रिक आदि। पानीपत में स्थित इनकी यह कंपनी यदि कोई पाठक विजीट करना चाहे तो इनके मोबाइल नंबर 9999555977 पर संपर्क कर जा सकता है। इसी प्रकार अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद। जय हिंद॥



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