100 वर्ष पहले के अद्भुत साइकिल मॉडलों का इतिहास


पुराने समय में साइकिलों का भी तगड़ा स्वैग होता था। जो नई-नई टेक्नोलॉजी से युक्त बहुत सारे मॉडलों और काफी सारी सुविधाओं के साथ आती थी। उस समय इन्हें स्टेटस सिंबल के तौर पर भी देखा जाता था और साइकिल रखने के लिए हर साल टैक्स का भी भुगतान करना पड़ता था। आज के इस लेख में जानेंगे ऐसे ही साइकिल से जुड़े अनेक रहस्यों के बारे में।

सन् 1920 की साइकिल:
यह गोल्डन सनबीम कंपनी की साइकिल इस म्यूजियम में ओरिजिनल पेंट के साथ अपनी पुरानी याद बनाए हुए हैं। जिसमें एयर फिलिंग पंप भी अटैच है तथा आगे की तरफ कार्बाइड लैंप अंधेरे में रोशनी करनी हेतू लगा है। इसी के साथ इसके हैंडल ग्रिप में पंक्चर लगाने हेतु टूल्स भी उपलब्ध है। अर्थात् यह साइकिल इतनी दूरदर्शी थी कि कोई कमी आने पर चालक इसे स्वत: ही सुधार सकता था। इसके अलावा साइकिल में अन्य तरह के छोटे पोर्टेबल एयर पंप भी उपस्थित है, जो थोड़ी सी असेंबलिंग के साथ ही सुचारू रूप से कार्य करने लगते हैं।

अद्भुत ब्रेक वाली साइकिल:
एक ऐसी शानदार पेंडल-ब्रेक साइकिल जिसमें यदि आगे की तरफ पेंडल मारे तो साइकिल स्पीड में चलती है और यदि पेंडल को पीछे की तरफ चलाएं तो ब्रेक लग जाते हैं। इसी के साथ इस टेक्निकल साइकिल में आगे के पहिए पर 25 सीसी का छोटा इंजन; तेल टंकी, साइलेंसर आदि के साथ लगा हुआ है, जो पेट्रोल से चलता है। यदि चालक को साइकिल पेट्रोल से चलानी हो तो छोटी-सी असेंबलिंग के साथ इंजन को पहिए के रिम से अटैच कर देते हैं और साइकिल स्वयं ही स्पीड पकड़ने लगती है।
पंख वाली साइकिल:
इस साइकिल में चलाने के लिए पेंडल नहीं है बल्कि हैंडल के स्थान पर विभिन्न गरारियों से अटैच हुए पाइप लगे हैं, जिन्हें हाथ से दाएं-बाएं अर्धवृताकार दिशा में घुमाया जाता है, तो साइकिल स्पीड पकड़ लेती है तथा डायरेक्शन अगले पहिए के फुट रेस्ट पर रखें पैरों द्वारा दी जाती है।

इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करने वाली साइकिल:
पहिए के रिम में विशेष प्रकार का डायनुमो लगी यह साइकिल चलने पर विद्युत उत्पन्न करती है, जिससे साइकिल में लगी हेडलाइट सुचारू रूप से जलने लगती है तथा दिन में साइकिल चलने पर बनने वाली विद्युत को एसी टू डीसी कन्वर्ट कर एक बैटरी में स्टोर कर लिया जाता है। यह एक सिलैंडरिकल शेप वाली छोटी बैटरी, साइकिल के पाइप से अटैच है।

बीएसए कंपनी की फोल्डिंग साइकिल:
यह एक ऐसी साइकिल जो पोर्टेबल है अर्थात् जहां पहाड़ी इत्यादि क्षेत्र पर साइकिल चलाने की जगह नहीं है, वहां इसे फोल्ड कर कंधे पर बैग के माफिक टांग कर ले जाया जा सकता है। और समतल भूमि आने पर बड़ी ही आसानी से खोलकर साइकिल का रूप दे देते हैं।
इसके अलावा इंडियन पोस्टमैन के लिए विशेष प्रकार की रेड कलर की साइकिल का निर्माण किया हुआ है, जिसमें आगे पेंडल के ऊपर की तरफ एक बॉक्स लगा है। इसमें डाकिया विभिन्न प्रकार के पत्रों को रखता था।विभिन्न मेकैनिज्म के साथ बहुत प्रकार के तालों का निर्माण भी किया गया है, जो साइकिल को सुरक्षा प्रदान करते थे। जिन्हें इन्होंने अपने इस अद्भुत से म्यूजियम में संग्रहित कर रखा है, जो अतीत की यादों को पुनर्जीवित कर देते हैं।
अब से 100 साल पहले धोती या चौड़ी मोहरी के पयजामे पहनने का प्रचलन अधिक था। जिनका साइकिल की चेन में आने का खतरा बना रहता था। इससे बचने के लिए क्लिप आते थे, जो पैर में बांध लेने से कपड़ा उड़कर चैन में नहीं जाता था।दोस्तों आज आपने जाना 100 साल से चलते आ रहे साइकिलों के मॉडल के बारे में। यदि आप इस शानदार से म्यूजियम को देखना चाहें तो विजिट करने हेतु Vikram Pendse Cycle private Museum पुणे में जा सकते हैं। ऐसी ही अन्य रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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