500 साल पुराना, गीजर वाला लग्जरियस बाथरूम

01 Jul 2024 | others
500 साल पुराना, गीजर वाला लग्जरियस बाथरूम

जिन भौतिक सुख-सुविधाओं पर आज की पीढ़ी गुमान करती हैं, सदियों पहले हमारे राजा-महाराजाओं ने बेहद प्राकृतिक तरीके से उन सुविधाओं का इस्तेमाल कर छोड़ दिया है। आज जानते हैं ऐसे ही एक शानदार महल में लगे प्राचीन गीजर के बारे में, जो बिना बिजली और गैस के चलता था। जिसकी सहायता से हमेशा उपलब्ध रहता था ठंडा और गरम पानी। जो उस समय के विशाल स्नानघरों में बहुत ही तकनीक पूर्ण ढंग से बना हुआ है। आये जानते हैं महल में बने इस लग्जरियस बाथरूम के बारे में-


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स्नानघर में प्रयुक्त तकनीक:

दरअसल यह स्नानघर महल के अंदर कई हिस्सों में फैला है, जैसे एक तरफ गड्ढेनुमा नाली में दो छोटे-छोटे द्वार बने हैं, जिनमें ईंधन के रूप में लकडियों को लगाया जाता है। उसी से जुड़ा हुआ ऊपर की तरफ एक गुंबद बना है जहां से निकलने वाला धुआं निष्कासित हो जाता था। स्नान घर के मुख्य द्वार की तरफ वह हिस्सा है जहां ईंधन लगा हुआ था तथा उसके ऊपर एक होद बनी है जिसकी तली धातु की है। उस होद में पाइप के माध्यम से ठंडा पानी आता है, जो तली के नीचे ईंधन जलने की वजह से गर्म हो जाता है। उसी के बराबर में एक दूसरी होद बनी है, जिसमें पाइप के द्वारा ठंडा पानी आता है। पाइप के माध्यम से गर्म और ठंडा पानी आवश्यकता अनुसार मिलता हैं और बराबर में बने तुर्किश बाथरूम की होद में चला जाता है। इस तुर्किश बाथरूम का डिजाइन बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से बनाया गया है। इसमें चारों तरफ आले बने हुए हैं जिन पर इत्र और गुलदान रखे जाते थे। इसी के साथ इस बाथरूम की छत भी डायमंड की सेप में विशेष तकनीक से बनी है, जो होद से निकलने वाली गर्म पानी की भाप को परिवर्तित कर नीचे भेजती है, जिससे नहाने वाले की स्टीम बाथ भी हो जाती थी। इस बाथरूम पर सूर्य का प्रभाव भी बना रहे, इसलिए इसे पूर्व दिशा में बनाया गया है।


विशेष प्रकार के प्राचीन शौचालय: 

इस महल के अंदर विभिन्न प्रकार के करीब 99 शौचालय बने हैं। जिनको बनाने में बेहतरीन इंजीनियरिंग का भरपूर इस्तेमाल किया गया है। तथा इसके अंदर भी गर्म पानी की व्यवस्था की है, जिसके लिए एक अंगीठी में बड़े से धातु के पतीले से पानी गर्म होकर, वॉशबेसिन-नुमा होद में जाता है, उसी के बराबर में दूसरी होद में पाइप की मदद से ठंडा पानी आता है। इसी के साथ स्नानघरों में शानदार वेंटीलेशन की सुविधा भी वैज्ञानिकता पूर्ण तरीके से दी हुई है।


सैफरन गार्डन: 

वहां के राजा मानसिंह जी ने महल के बराबर में एक केसर का बाग भी लगा रखा था, जिसे कश्मीर से आयात किये पौधों द्वारा विकसित किया गया था। इस गार्डन के वास्तुकार मोहन जी थे, जिस कारण इसे मोहनबाड़ी गार्डन भी कहते हैं। केसर को ठंडा रखने के लिए एक झील भी बनाई गई थी, जिसे मौउखा लेक कहते हैं। 

तो दोस्तों यह थी भारतीय वास्तुकला से जुड़ी एक अदभुत जानकारी, जिसमें स्नानघर की मरम्मत का कार्य बड़े ही साइंटिफिक ढंग से किया गया है। ऐसी ही शानदार और रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥



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