क्या गारंटी है की हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा ? किसानों बिलों में एक जगह भी न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात नहीं की, जब मंडियों में टैक्स लगेगा और बाहर टैक्स नहीं लगेगा, तो मंडियां टूटेंगी, जब सारा व्यापार प्राइवेट धन्ना सेठों के हाथ में चला गया, तो क्या गारंटी है की हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा ? ईनेम मंडी के तहत भी किसानों को पूरे देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने का अधिकार था भारत में आज तक कोई सरकार ऐसी नहीं आई जो एमएसपी से नीचे खरीदने पर व्यापारी को सजा और जुर्माना लगा पाई हो

केंद्र सरकार का पक्ष नई दिल्ली-

सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की घोषणा करके यह साफ करने की कोशिश की है कि कृषि विधेयकों के पास होने से किसानों को कोई नुकसान नहीं होने जा रहा। यही नहीं कृषि विधेयक में इस तरह के प्रावधान की बात कही गई है, जिससे किसान मंडियों की गुलामी से मुक्त हो सकेंगे और अपनी इच्छा के अनुसार अपनी कीमत पर अपना कृषि उत्पाद बेच सकेंगे। तो सवाल है कि फिर किसानों के नाम पर राजनीतिक पार्टियां इतना हाय-तोबा क्यों मचा रही हैं? प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि कृषि मंडी पहले की तरह ही चलती रहेंगी। ये बदलाव कृषि मंडियों के लिए नहीं हैं। कृषि मंडियों को आधुनिक बनाने का काम किया गया है। कृषि मंडी समाप्त होने की बात भ्रामक है। हमारे देश में अधिकांश किसानों के पास थोड़ी सी जमीन है। छोटी जोत के साथ किसानों की उपज भी कम होती है जिससे उनको अपनी उपज की सही कीमत नहीं मिल पाती। आशा है कि कृषि के क्षेत्र में हो रहे नए सुधारों से किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिलेगी।

मंडी कर्मचारियो का पक्ष-

खत्म हो जाएगी मंडी की आय:

बैठक में कहा गया कि जब मंडी में खरीदी ही नही होगी तो मंडी की आय समाप्त हो जायेगी ऐसी स्थिति में मंडी कर्मचारियों,अधिकारियों को वेतन नही होगा साथ ही हजारों मजदूरों को रोजगार नही मिलेगा। सभी को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा इसलिए जो केन्द्र सरकार ने अध्यादेश यानि कृषि बिल लेकर आई है उसका पूरे देश में विरोध किया जा रहा हंै। इसी कड़ी में हम लोग भी आज 25 सितंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल कर सरकार के इस अध्यादेश का विरोध करने की बात कही हैं।

मंडी में वसूले जाएंगे टैक्स:

इस बैठक में केन्द्र सरकार द्वारा जो अध्यादेश जारी किया गया हैं उसके संबंध में विस्तार से चर्चा कर यह बताया कि सरकार ने जो तीन अध्यादेश लागू किए है जिसमें मंडियों को बंद करने सहित किसान विरोधी हंै जिससे मंडी के कर्मचारी,अधिकारी व मंडी में काम करने वाले रेंजा, हम्माल , तौलकों को खासा परेशानियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि मंडी में व्यापारी धान खरीदी करने आते हैं लेकिन वे जब खरीदी करने आयेगें तो उनसे टैक्स लिया जायेगा और बाहर खरीदने पर नही लिया जायेगा ऐसी स्थिति में वे मंडी नही आयेगे।

किसान क्यो है इस बिल के विरोध में ?

साल पहले व्यापारी किसान के खेत से मन मर्जी के दाम से फसल खरीदता था, फिर सर छोटू राम ने मंडियां बनवाई, जिसके चलते किसान को ठीक दाम मिलने लगे,अब मंडियां हटाने की फुल तैयारी है, और व्यापारी को फिर से किसान के खेत से खरीदने की छूट दी गई है, और अब इसे "आज़ादी" का नाम दिया गया है !

 

कृषि बिल (New Farm Bill) के खिलाफ किसान संगठनों ने आज भारत बंद बुलाया है. पंजाब में रेल रोको आंदोलन शुरू हो गया है. कुछ किसान ट्रैक्टर से दिल्ली आ रहे हैं जिन्हें हरियाणा में रोका गया है. इस बीच कांग्रेस (Congress) ने राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन शुरू करने का फैसला किया है. जिन बिलों को मोदी सरकार (Modi Government) किसानों के लिए वरदान बता रही है आखिर उसके खिलाफ किसान क्यों सड़कों पर उतरे हुए हैं. समझते हैं कि इस आंदोलन की जड़ क्या है?

  1. किसानों को सबसे बड़ा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP- Minimum Support Price) खत्म होने का है. इस बिल के जरिए सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति (APMC-Agricultural produce market committee) यानी मंडी से बाहर भी कृषि कारोबार का रास्ता खोल दिया है. मंडी से बाहर भी ट्रेड एरिया घोषित हो गया है. मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर किसान से उसकी उपज एमएसपी पर लेते हैं. लेकिन बाहर कारोबार करने वालों के लिए एमएसपी को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है. इसलिए मंडी से बाहर एमएसपी मिलने की कोई गारंटी नहीं है.
  2. सरकार ने बिल में मंडियों को खत्म करने की बात कहीं पर भी नहीं लिखी है. लेकिन उसका इंपैक्ट मंडियों को तबाह कर सकता है. इसका अंदाजा लगाकर किसान डरा हुआ है. इसीलिए आढ़तियों को भी डर सता रहा है इस मसले पर ही किसान और आढ़ती एक साथ हैं. उनका मानना है कि मंडियां बचेंगी तभी तो किसान उसमें एमएसपी पर अपनी उपज बेच पाएगा.
  3. इस बिल से ‘वन कंट्री टू मार्केट’ वाली नौबत पैदा होती नजर रही है. क्योंकि मंडियों के अंदर टैक्स का भुगतान होगा और मंडियों के बाहर कोई टैक्स नहीं लगेगा अभी मंडी से बाहर जिस एग्रीकल्चर ट्रेड की सरकार ने व्यवस्था की है उसमें कारोबारी को कोई टैक्स नहीं देना होगा. जबकि मंडी के अंदर औसतन 6-7 फीसदी तक का मंडी टैक्स (Mandi Tax) लगता है.
  4. किसानों की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि आढ़तिया या व्यापारी अपने 6-7 फीसदी टैक्स का नुकसान न करके मंडी से बाहर खरीद करेगा. जहां उसे कोई टैक्स नहीं देना है. इस फैसले से मंडी व्यवस्था हतोत्साहित होगी. मंडी समिति कमजोर होंगी तो किसान धीरे-धीर बिल्कुल बाजार के हवाले चला जाएगा. जहां उसकी उपज का सरकार द्वारा तय रेट से अधिक भी मिल सकता है और कम भी.
  5. किसानों की इस चिंता के बीच राज्‍य सरकारों-खासकर पंजाब और हरियाणा- को इस बात का डर सता रहा है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्‍हें मंडियों में मिलने वाले टैक्‍स का नुकसान होगा. दोनों राज्यों को मंडियों से मोटा टैक्स मिलता है, जिसे वे विकास कार्य में इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, हरियाणा में बीजेपी का शासन है इसलिए यहां के सत्ताधारी नेता इस मामले पर मौन हैं.
  6. एक बिल कांट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित है. इसमें किसानों के अदालत जाने का हक छीन लिया गया है. कंपनियों और किसानों के बीच विवाद होने की सूरत में एसडीएम फैसला करेगा. उसकी अपील डीएम के यहां होगी न कि कोर्ट में. किसानों को डीएम, एसडीएम पर विश्वास नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि इन दोनों पदों पर बैठे लोग सरकार की कठपुतली की तरह होते हैं. वो कभी किसानों के हित की बात नहीं करते.
  7. केंद्र सरकार जो बात एक्ट में नहीं लिख रही है उसका ही वादा बाहर कर रही है. इसलिए किसानों में भ्रम फैल रहा है. सरकार अपने ऑफिशियल बयान में एमएसपी जारी रखने और मंडियां बंद न होने का वादा कर रही है, पार्टी फोरम पर भी यही कह रही है, लेकिन यही बात एक्ट में नहीं लिख रही. इसलिए शंका और भ्रम है. किसानों को लगता है कि सरकार का कोई भी बयान एग्रीकल्चर एक्ट में एमएसपी की गारंटी देने की बराबरी नहीं कर सकता. क्योंकि एक्ट की वादाखिलाफी पर सरकार को अदालत में खड़ा किया जा सकता है, जबकि पार्टी फोरम और बयानों का कोई कानूनी आधार नहीं है. हालांकि, सरकार सिरे से किसानों की इन आशंकाओं को खारिज कर रही है

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