100 साल पुरानी रॉयल एनफील्ड साइकिल का जमाना


सन् 1900 के दशक में बड़े-बड़े जमींदार और साहूकारों के पास दिखने वाली साइकिल बड़ी ही शाही और समृद्धता का प्रतीक मानी जाती थी। लगभग 99% साइकिलें इंग्लैंड से आयात होती थी। सन् 1952 की रॉयल एनफील्ड की ट्राई साइकिल का भी अपना अलग ही स्वैग रहता था। मजे की बात यह है कि आज भी इन साइकिलों को देखकर, उस समय की यादों को ताज़ा किया जा सकता है। पुणे महाराष्ट्र के एक संग्रहालय में यह सभी साइकिल ओरिजिनल पेंट और स्टाइल में सुरक्षित रखी हुई है। जो बहुत सारे प्रकार के मॉडल्स में उपलब्ध है। आये जानते हैं विस्तार से इन साइकिलों की विशेषताओं को।

ट्राइस साइकिल:
दिखने में एकदम खूबसूरत, मजबूत और आरामदायक यह साइकिल तीन पहियों की बनी हुई है, जिसमें दो पीछे तथा एक आगे है। उस समय सबसे प्रचलित रॉयल एनफील्ड कि यह साइकिल मजबूत और टिकाऊ मानी जाती थी। वजन में हल्की और आरामदायक गद्दी के साथ इसको चलाना भी बहुत आसान होता है। इनके इस संग्रहालय से इन अद्भुत साइकिलों को खरीद भी सकते हैं।

1950 का कार मॉडल:
रेड चेरी कलर में यह रॉयल कार उस समय के मॉडल के रूप में उपस्थित है। जिसमें आगे की तरफ चार पिस्टन लगे हैं तथा बैटरी के माध्यम से चलने वाली यह टू सीटर गाड़ी हर किसी का दिल जीतने की काबलियत रखती है। सन् 1950 तक इंग्लैंड की साइकिलों का भारत में बहुत अधिक बोल-बाला था। उसके बाद भारत में भी साइकिल की कंपनियां एस्टेब्लिश हुई और भारत स्वयं ही साइकिल बनाने में आत्मनिर्भर हो गया। इंग्लैंड के एंड्स ब्रांड, रज़ एवं ट्रैम्प कम्पनी की साइकिल विशेष रूप से उपलब्ध है।

साइकिलों में प्रयुक्त लैंप:
बेहद अनोखी तकनीक से विकसित इन साइकिलों में लैंप भी लगे हुए थे, जो रात्रि में तेज रोशनी देने का कार्य करते थे। इसी के साथ साइकिल में विभिन्न प्रकार के रिफ्लेक्टर भी आते थे, जो पीछे की तरफ मरगार्ड में लगे होते हैं।

दो लोगों द्वारा चलने वाली साइकिल:
उस समय साइकिलों के द्वारा ही लंबी-लंबी दूरियां तय कर ली जाती थी। साइकिल चलाने में आसानी रहे इसलिए उसमें दो अलग-अलग पेंडल लगाए जाते थे। तथा एक ही साइकिल पर दो व्यक्ति बैठकर पेडल मार कर बड़ी ही आसानी से सफर तय कर लेते थे। इसमें दोनों पेंडल एक ही चैन से जुड़े रहते थे।

म्यूजिक सिस्टम वाली साइकिल:
उस समय भी साइकिलों में लग्जरियस गैजेट्स का प्रयोग किया जाता था, जैसे सफर में चलते समय संगीत का आनंद लेने के लिए साइकिल में ट्रांजिस्टर भी लगे होते थे, जो म्यूजिक सिस्टम का बेहतरीन कार्य करते थे। यह तकनीक सन् 1980 के आसपास आयी थी।
तेल डालने हेतु कैन:
साइकिल को स्मूथली गति कराने हेतु उसमें एक प्रकार का लुब्रिकेंट प्रयोग किया जाता है। इसके लिए विभिन्न प्रकार की कैन उपस्थित है। जिनमें तेल भरकर साइकिल के विभिन्न पूर्जों पर लुब्रिकेंट के रूप में डाला जाता है। यह कैंनस् भी मेड इन इंग्लैंड ही है।

इसी के साथ ट्रैक्टर के आकार में दिखने वाली यूनिक साइकिलें भी उपलब्ध है। साइकिल की लाइट के रूप में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न प्रकार के लैम्पों की भी बड़ी श्रृंखला है, जो मोमबत्ती, केरोसिन तथा कार्बाइड आदि से जलते थे। तो दोस्तों आपने देखा तो 150 साल पुराना ऐसा गज़ब का कलेक्शन जो आज के टाइम में दिखना बड़ा ही दुर्लभ है। यदि आपके पास भी इनमें से ऐसा कोई सामान है तो कमेंट पर अवश्य बताएं अथवा इस संग्रहालय को विजिट करने के लिए पुणे महाराष्ट्र में Vikram Pendse Cycles Private Museum जा सकते हैं। ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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