कबाड़ से कमाल - खराब पन्नी से अजूबा

24 Apr 2025 | Amazing Talent
कबाड़ से कमाल - खराब पन्नी से अजूबा

जहां लोग फेंक देते हैं कबाड़, वहीं से शुरू होती है इनकी क्रिएटिविटी की उड़ान इंदौर शहर में रहने वाले सुनील जी उन लोगों में से हैं जो वाकई में यह साबित कर चुके हैं कि कचरा सिर्फ कचरा नहीं होता वह कला का कच्चा माल भी बन सकता है। आज जब दुनिया सस्टेनेबिलिटी और रीसायक्लिंग की बात करती सुनील जी जैसे लोग बिना किसी बड़े संसाधन के अपने हाथों से वो काम कर रहे हैं जो किसी बड़े आर्ट स्कूल में सिखाया जाता है।

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घर से निकला कबाड़, बना दीवारों की शान
सुनील जी ने प्लास्टिक पन्नियों, कुरकुरे-चिप्स के पैकेट्स, पुरानी जीन्स, टूटी हुई लकड़ियों, खराब मैगज़ीन्स, और यहां तक कि फटी हुई बोरियों तक को अपनी कला का जरिया बना दिया है। वे इन सभी वेस्ट मटेरियल्स को कलेक्ट करते हैं और फिर बेहद धैर्य और रचनात्मकता के साथ उन्हें शानदार पेंटिंग्स और पोर्ट्रेट्स में बदल देते हैं।

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क्रिएशन की शुरुआत – पेन से शेप, फिर पन्नियों का पेस्ट
सबसे पहले वे एक फ्रेम तैयार करते हैं फिर पेन से उसका आउटलाइन बनाते हैं। इसके बाद वे प्लास्टिक की पन्नियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर, रंगों का ध्यान रखते हुए, बड़ी बारीकी से उन्हें पेस्ट करते हैं। यह कोई आसान काम नहीं है  एक-एक कलर का प्लेसमेंट, हर शेड की समझ, और महीनों की मेहनत से एक पेंटिंग तैयार होती है। रीयलिस्टिक पोर्ट्रेट्स सुनील जी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का एक रीयलिस्टिक पोर्ट्रेट तैयार किया है जिसमें सिर्फ वेस्ट मटेरियल का उपयोग किया गया। कोई पेंट, कोई ब्रश या कोई कोर्स नहीं – केवल प्लास्टिक की डार्क और लाइट बोरियों से शेड बनाकर, बारीकियों पर ध्यान देकर, वे ऐसी कला रचते हैं कि देखने वाले दंग रह जाते हैं।

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पुरानी जीन्स से तैयार घोड़े की पेंटिंग
इनकी एक बेहद खास पेंटिंग है एक घोड़े की रीयलिस्टिक पेंटिंग जिसे पूरी तरह वेस्ट जीन्स से तैयार किया गया है। इसमें करीब 10,000 छोटे-छोटे टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ है और इसे बनाने में 6 से 7 जीन्स लगी हैं। इस पेंटिंग में एक भी बाहरी रंग या शेड का प्रयोग नहीं किया गया सिर्फ जीन्स के नैचुरल टोन ही इस्तेमाल हुए हैं।लकड़ी और मैगज़ीन से बना पोर्ट्रेट एक अन्य पोर्ट्रेट में पुरानी वेस्ट लकड़ियों का इस्तेमाल किया है जहां लाइट और डार्क वुड का संतुलन देखना अद्भुत है। वहीं एक और पेंटिंग में उन्होंने सिर्फ मैगज़ीन के टुकड़ों से चेहरा तैयार किया है इतना बारीक काम कि चेहरे की झुर्रियों यानी wrinkles तक का ध्यान रखा गया है। इसके लिए उनके पास करीब 2000 मैगज़ीन्स का कलेक्शन है जिनके रंग और शेड्स को वे कला में ढालते हैं।

डांडी यात्रा और 125 वेस्ट मटेरियल्स का कमाल
इन्होने एक और प्रोजेक्ट है जो बेहद सराहनीय पोर्टफोलियो है डांडी यात्रा का एक जिसमे उन्होंने 125 अलग-अलग वेस्ट मटेरियल्स का इस्तेमाल किया है। ये दिखाता है कि उनका विज़न सिर्फ पेंटिंग तक सीमित नहीं, बल्कि वे इतिहास, संस्कृति और पर्यावरण का खूबसूरत मेल भी अपने काम में लाते हैं। इन सभी प्रोजेक्ट्स को वे अकेले नहीं, अपनी एक छोटी-सी टीम के साथ मिलकर बनाते हैं। एक-एक पेंटिंग में उन्हें कम से कम एक से डेढ़ महीना लगता है। यही दर्शाता है कि यह कला सिर्फ हाथ की नहीं, दिल और समय की भी मांग करती है।

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निष्कर्ष:

सुनील जी जैसे कलाकार हमें यह सिखाते हैं कि वेस्ट सिर्फ फेंकने की चीज नहीं है यह हमारी सोच, हमारी नजर और हमारे हाथों में कला बन सकती है। वे न सिर्फ पर्यावरण को बचा रहे हैं, बल्कि देश के युवाओं के लिए एक प्रेरणा भी बन रहे हैं। जब भी इंदौर जाएं, इनके स्टूडियो या एग्जीबिशन में जरूर झांकिए वहां आपको प्लास्टिक की थैलियों में छिपा एक सुंदर भविष्य दिखाई देगा।

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