बैंजो बनाने की अद्भुत कला


संगीत की दुनिया का एक ऐसा अद्भुत यंत्र, जिसके बिना हर सुर-ताल-सरगम है अधूरी। हिंदुस्तान के हुनर के बादशाह द्वारा लकड़ी की मदद से बना यह यंत्र ना सिर्फ भारत, बल्कि देश-विदेश में भी प्रसिद्ध है। इसको बनाने में पूर्ण रूप से है हाथों की कलाकारी का कमाल, जिसे इनकी कई पीढ़ियां करती आ रही है। आये जानते हैं बैंजो नामक संगीत यंत्र और इसको बनाने की विधि के बारे में।
बैंजो के प्रकार:
दरअसल बैंजो कई प्रकार के होते हैं, जिनमें प्लेक्टर्म बैंजो, चार तार वाला बैंजो, गिटार बैंजो, हाइब्रिड बैंजो, रेजोनेटर बैंजो आदि प्रमुख है। इनमें सबसे प्राचीन, तार वाला बैंजो माना जाता है, जिसे इस कार्यशाला में स्पेशल रूप से बनाते हैं।।
चार तार वाला बैंजो:
इस प्रकार का बैंजो बनाने के लिए सबसे पहले जरूरत होती है लकड़ी की, जिसमें पाइन या देवदार की लकड़ी उपयुक्त मानी जाती है। उपरोक्त लकड़ी के करीब 3 फीट लंबे तथा 1.5 फीट चौड़े पीस आते हैं। जिनके ऊपर बैंजो के आकार में बने फार्मे को रखकर, पेंसिल से निशान लगाते हैं तथा निशान के अनुसार मशीन से लकड़ी की कटिंग कर लेते हैं। एक पीस से दो बैंजो के फॉर्मे बनते हैं। बैंजो की शेप में कटे टुकड़े की रंधा मशीन द्वारा चारों ओर से घिसाई की जाती है। सतह पर ओर अधिक चिकनाहट के लिए पेपर मशीन द्वारा भी घिसा जाता है। उसके बाद इस पर एक व्हाइट कलर का कोट करते हैं तथा सूखने के बाद बैंजो पर ग्लेज माइक चिपकाने के लिए फैविकोल लगाते है। अच्छे से माइका चिपका तथा घीस कर सूखने के लिए छोड़ देते हैं।

बैंजो का मेकैनिज्म:
अब बैंजो के शीर्ष की तरफ चाबी लगाने हेतु खांचे बनाए जाते हैं तथा वॉल्यूम कंट्रोल आदि बटन लगाने के लिए सुराख करते हैं। वॉल्यूम कंट्रोल हेतु चार चाबियां लगाई जाती है, यह सुरों के हिसाब से कम ज्यादा भी हो सकती है। इसमें 8 या 11 तार भी हो सकते हैं, जिसमें 7 सुरों के तथा 2 वादी तथा संवादी, संगीत के अन्य सुरों से संबंधित तार होते हैं। बैंजो के साइज अनुसार उसमें प्रयुक्त बटन की संख्या भी अलग-अलग होती है। जैसे इनके पास एक 29 बटन वाला तथा दूसरा 31 बटन वाला बैंजो तैयार है। बैंजो में एक पीछे तथा एक आगे माइक भी लगा होता है। जिससे उसकी आवाज कम्पित होकर उच्च तथा मधुर स्वर में सुनाई देती है।

इसी के साथ इन हाइटेक बैंजो के साइड में कितने सारे जैक भी लगे होते हैं। जिनको डायरेक्ट लाउडस्पीकर, एमप्लीफायर आदि से कनेक्ट कर वॉल्यूम को कितना भी बढ़ाया जा सकता है तथा फाइन ट्यूनिंग आदि भी कर सकते हैं। एक बैंजो को बनने में करीब तीन से चार दिन का समय लगता है। पुराने समय में आने वाले बैंजो पर तार के साथ-साथ नीचे की तरफ ड्रम का हेड भी लगा होता था जिससे ड्रम और वायलिन की आवाज साथ-साथ प्ले कर सकते थे। इन बैंजो के इस स्पेशलिस्ट जादूगर को यह कार्य करते हुए 60 साल से अधिक हो चुके हैं। यह वर्कशॉप सुर-साज-तरंग के नाम से थाणे, महाराष्ट्र में स्थित है। तथा इनका मोबाइल नंबर 9892221309 पर संपर्क कर सकते हैं। दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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