चश्मों के फ्रेम बनाने की हाईटेक वर्कशॉप

11 Oct 2024 | Manufacturing
चश्मों के फ्रेम बनाने की हाईटेक वर्कशॉप

एक साधारण से तार को मोड़कर बना देते हैं ऐसी नायाब चीज़, जिससे सब कुछ साफ दिखने लगता है। मशीनों तथा हाथों द्वारा होता है यह हैंडीक्राफ्ट कार्य। रॉ मटेरियल के रूप में लगने वाले बहुत थोड़े से पदार्थ द्वारा बन जाता है बेशकीमती प्रोडक्ट, जिसकी आधुनिक तकनीक द्वारा पॉलिशिंग की जाती है। जी हां दोस्तों! हम बात कर रहे हैं चश्मों की। जिनके फ्रेम का कार्य इस फैक्ट्री में बड़े ही कुशलता पूर्वक किया जाता है तथा फिर उनमें लेंस आदि भी लगते हैं। आये जानते हैं यह कार्य किस प्रकार और किन-किन मशीनों की मदद से होता है।

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चश्मा के फ्रेम बनने का प्रोसेस: 

सबसे पहले स्टेनलेस स्टील का एक वायर लेते हैं, जो पहले से ही एक रील में लिपटा हुआ आता है। उसे एक मशीन में फिट कर देते हैं। और उस कंप्यूटराइजड मशीन में फीड किए गए निश्चित आकार का फ्रेम बनने लगता है। मशीन कंप्यूटर पर दिए गए इंस्ट्रक्शन के अनुसार खुद ही तार को मोड़ती है और और चश्मे के एक रिंग बन जाने के बाद एन्ड सिरे पर से तार को कट कर देती है। जिसे बाद में सोल्डिंग कर टांका लगाते हैं और बने जोड़ को घिसकर एकसार करते हैं। इसी प्रकार चश्मे के समान आकार में दोनों रिंग बनाए जाते हैं और उन्हें एक खांचे में सेट कर बीच में एक ब्रिज स्टिक द्वारा सोल्डिंग कर जोड़ देते हैं। 

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चश्मे का लॉकिंग सिस्टम: 

दोनों रिंग बन जाने के बाद उनके कान पर टिकने वाली स्टिकस् को एक सिरे पर से 90 डिग्री मोड कर रिंग में सोल्डिंग की जाती है। साइड में लॉक को वेल्ड किया जाता है, जिसे स्क्रू की मदद से ढीला या कस भी सकते हैं। ये लॉक चश्मे की डंडियों को मोड़ने के लिए जिम्मेदार होता है। दोनों रिंग में डांडिया लगा देने के बाद फ्रेम की घिसाई तथा बफिंग की जाती है, जिससे मेटल में चमक आती है अब इस तैयार फ्रेम को कलर करने के लिए आगे प्रोसेस में भेजते हैं।

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बहुत सारे फ्रेमो को एक प्रकार के हैंगर पर सेट कर देने के बाद, इन्हें एक पॉलिशिंग बॉक्स में रखते हैं जहां इन पर घूमा-घूमा कर चारों तरफ स्प्रे द्वारा पॉलिशिंग की जाती है, जिससे यह निखारकर एकदम शाइनिंग करते हैं। कलर कर देने के बाद सूखने हेतू फ्रेम की ट्रे को एक ओवन मशीन में रख देते हैं, जहां पर रंग सुख कर और चमकदार हो जाता है। 


लेंस लगाना: 

विभिन्न डिजाइन के इन तैयार फ्रेमों में अंतिम कार्य लेंस लगाने का ही बचता है, जिन्हें व्यक्ति की रिक्वायरमेंट के अनुसार उपर्युक्त लेंस को सेट कर दिया जाता है। फाइनल प्रोडक्ट के रूप में चश्मा बनकर तैयार हो जाता है। 

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तो दोस्तों अपने जाना किस प्रकार बहुत ही कम जगह में, कम मशीनों और थोड़ी लेबर की मदद से ही प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में सफल रूप से फ्रेम बन रहे हैं। जिनकी सप्लाई देश भर में होती है। यदि कोई भाई इनसे संपर्क करना चाहे तो इनकी यह वर्कशाॅप स्टाइलराइट ऑप्टिकल इंडस्ट्री के नाम से मुंबई में स्थित है और इनका मोबाइल नंबर 9892744443 हैं। कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसे ही इनफॉर्मेटिव जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥ जय हिंद॥



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