मिट्टी के बर्तन, मिट्टी में उगाया खाना – एक अनोखा रेस्टोरेंट


हर कोई चाहता है कि जो भी खाना खाए, वह शुद्ध और अच्छा हो। झज्जर के डाबला गांव में एक ऐसा रेस्टोरेंट है, जहां खाना और खाने के बर्तन, दोनों एक ही मिट्टी से बनते हैं। यह जगह नीरज भाई द्वारा चलाई जाती है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक और पारंपरिक तरीके से भोजन तैयार करते हैं।
कैसे बनते हैं मिट्टी के बर्तन?
रेस्टोरेंट में इस्तेमाल होने वाले बर्तन लाल और पीली मिट्टी से बनाए जाते हैं। लाल मिट्टी पहाड़ों से आती है, जबकि पीली मिट्टी खदानों से निकाली जाती है। इस मिट्टी को पहले पीसा जाता है और फिर पानी मिलाकर टैंक में रखा जाता है। इसके बाद इसे छाना जाता है ताकि शुद्ध मिट्टी मिल सके।

शुद्ध मिट्टी को 2-3 दिन तक रखा जाता है, जिससे वह सही तरीके से सूख जाए। फिर कारीगर इस मिट्टी से बर्तन बनाते हैं, जिनमें भगोने, गिलास, कटोरी, चम्मच और जग शामिल होते हैं। बर्तन बनने के बाद उन्हें 2 दिन तक सुखाया जाता है, फिर 12 घंटे तक मशीन में पकाया जाता है। इस तरह पूरी तरह से प्राकृतिक मिट्टी के बर्तन तैयार हो जाते हैं, जिनमें खाना पकाने और परोसने का काम किया जाता है।
खाने की तैयारी कैसे होती है?
यहां परोसा जाने वाला खाना पूरी तरह से शुद्ध और देसी तरीके से बनाया जाता है। सब्जियां खेतों से लाई जाती हैं या स्थानीय किसानों से खरीदी जाती हैं। खाना बनाने के लिए पहले सब्जियों को काटा जाता है, फिर जरूरत के अनुसार उबाला या पकाया जाता है।

- बाजरे की रोटी मिट्टी के तवे पर बनाई जाती है और इसे ताजे माखन के साथ परोसा जाता है।
- साग खेतों से लाकर ताजा बनाया जाता है।
- बथुए का रायता तैयार किया जाता है।
- मसालों का कम से कम उपयोग किया जाता है ताकि भोजन का प्राकृतिक स्वाद बरकरार रहे।
- खाने के साथ दो तरह की चटनी भी दी जाती है।

यहां साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। खाने की जगह पर जूते-चप्पल पहनकर जाने की अनुमति नहीं होती। मिट्टी के बर्तन धोने के लिए राख का उपयोग किया जाता है, जिससे वे अच्छी तरह से साफ हो जाते हैं।
प्राकृतिक वातावरण में भोजन
रेस्टोरेंट का वातावरण पूरी तरह प्राकृतिक है। खाने की जगह को गोबर से लीपा गया है, जिससे वह ठंडी और स्वच्छ बनी रहती है। पीछे खेतों का खुला नजारा दिखता है, जहां ताजी हवा के बीच लोग भोजन का आनंद लेते हैं।

इस खास रेस्टोरेंट की एक और खासियत यह है कि आटा भी हाथ से चक्की में पीसा जाता है, जिससे उसकी पौष्टिकता बनी रहती है। यह अनोखा रेस्टोरेंट हर शनिवार और रविवार को खुलता है और लोगों को शुद्ध और स्वादिष्ट भोजन का अनुभव कराता है।अगर आप भी प्राकृतिक और देसी खाने का स्वाद लेना चाहते हैं, तो झज्जर के डाबला गांव में नीरज भाई के इस खास रेस्टोरेंट में जरूर जाएं!
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