फूल का कारखाना - Engineer का अजूबा कारखाना


भारत में मंदिरों का विशेष महत्व है। हर दिन लाखों श्रद्धालु मंदिरों में भगवान को फूल अर्पित करते हैं। ये फूल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक होते हैं लेकिन पूजा के बाद अधिकतर यही फूल बेकार समझकर कूड़ेदान में फेंक दिए जाते हैं। सोचिए, अगर इन्हीं फूलों का दोबारा उपयोग किया जाए और उनसे कुछ ऐसा बनाया जाए जो पर्यावरण को भी लाभ पहुंचाए और लोगों की आस्था से भी जुड़ा हो, तो कितना अच्छा होगा? इसी सोच को साकार किया है उज्जैन के मनप्रीत सिंह अरोरा जी ने। उन्होंने मंदिरों में चढ़े फूलों से ऐसे प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया है जो ना सिर्फ उपयोगी हैं बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद हैं।

फूलों से बना रहे हैं काम की चीजें
मनप्रीत जी का काम एकदम अलग है। ये मंदिरों से चढ़ाए गए फूलों को इकट्ठा करते हैं खासकर श्री महाकालेश्वर मंदिर से। उसके बाद इन फूलों को बहुत सोच-समझकर अलग-अलग किया जाता है गुलाब, गेंदे, और बाकी फूलों को अलग-अलग करके उनके पंखुड़ियों को 2 दिन तक सुखाया जाता है। जब ये फूल अच्छे से सूख जाते हैं तो इन्हें मशीन में डाल कर क्रश किया जाता है और पाउडर तैयार किया जाता है। यही पाउडर फिर कई उपयोगी चीजों में बदला जाता है।
कैसे बनती हैं धूपबत्तियाँ और हवन कप?
इस पाउडर को एक खास मशीन में डाला जाता है जहाँ थोड़े से पानी के साथ मिलाकर धूपबत्तियाँ बनाई जाती हैं। जो अतिरिक्त सामग्री होती है वो मशीन से अलग निकल जाती है। उसे भी फिर से प्रोसेस करके दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह से एक और खास चीज बनाई जाती है हवन कप। इसमें सूखे फूलों से बने कप में प्राकृतिक चीजें भरी जाती हैं जैसे गूगल, कपूर, और हवन सामग्री। ये कप जब जलते हैं तो शुद्ध और सुगंधित धुआँ देते हैं जिससे घर का वातावरण पवित्र और सकारात्मक बनता है।

रंग-बिरंगा गुलाल – बिना किसी कैमिकल के
इन्होने एक और शानदार चीज बनाई है फूलों से बना गुलाल। इसमें कोई भी केमिकल या आर्टिफिशियल कलर नहीं होता। सिर्फ फूलों और नैचुरल फूड कलर से रंग तैयार किया जाता है। यही कारण है कि ये स्किन-फ्रेंडली और पर्यावरण के लिए सुरक्षित होता है।

बायोडिग्रेडेबल पैकिंग और पर्यावरण का ध्यान
ये सभी चीजें पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल पैकिंग में पैक की जाती हैं यानी प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं होता। साथ ही पैकेट पर साफ-साफ लिखा जाता है कि ये श्री महाकालेश्वर और अन्य मंदिरों में चढ़े फूलों से बनाई गई चीजें हैं। गेंदे की पंखुड़ियों से बनाया गया तिलक पाउडर भी मनप्रीत जी की सोच का नतीजा है। साथ ही मंदिर के बचे हुए फूलों से गुलाब जल और दूसरे प्राकृतिक उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं।
निष्कर्ष
मनप्रीत सिंह अरोरा जी का यह प्रयास ना सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छा है बल्कि भक्ति से जुड़े फूलों को सम्मान देने का एक सुंदर तरीका भी है। मंदिरों में चढ़े फूल अब कूड़े में नहीं जाएंगे बल्कि हमारी हवा को शुद्ध करेंगे, होली में रंग भरेंगे और घरों में खुशबू फैलाएंगे। ऐसे प्रयोग देशभर में होने चाहिए जहां आस्था और विज्ञान साथ मिलकर कुछ अच्छा करें।
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