ग्वालियर किला – सदियों पुरानी तकनीक


ग्वालियर का किला न सिर्फ अपनी भव्यता के लिए मशहूर है, बल्कि यहाँ इस्तेमाल की गई पुरानी तकनीकों के लिए भी जाना जाता है। यहाँ कम्युनिकेशन यानी संचार के लिए पुराने समय की सबसे बेहतरीन तकनीकें अपनाई गई थीं। किले के निर्माण में गोंद, चुना, गुड़ और उड़द दाल जैसी प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया गया था, जिससे इसकी दीवारें और संरचनाएं बेहद मजबूत बनीं। दीवारों और पिलरों पर अद्भुत नक्काशी की गई है जैसे मगरमच्छ के मुँह, चूहों के कान, हाथी की सूंड, शेर के पंजे। दीवारों पर जो नीला रंग दिखाई देता है उसे मीनाकारी कहते हैं। इस नीले रंग को बनाने में कांच, जड़ी-बूटियाँ और फूल-पत्तियों का इस्तेमाल हुआ था। इसी कारण से आज भी यह रंग दीवारों पर चमकता हुआ नजर आता है।मानसिंह मंदिर महल का निर्माण राजा मानसिंह ने 1486-1516 ईस्वी के बीच करवाया था। यह महल मुगलों से भी पहले का बना हुआ है, यानी 15वीं सदी का है। इसे भूल-भुलैया महल भी कहा जाता है क्योंकि इसमें कई अंडरग्राउंड रास्ते हैं जिनका इस्तेमाल केवल राजा-रानी और राजपरिवार के लोग करते थे।

पुरानी साइंस और वेंटिलेशन सिस्टम
यहाँ का वेंटिलेशन सिस्टम अद्भुत है। सूरज की रोशनी और हवा को अंदर पहुँचाने के लिए खास डिजाइन बनाई गई थी। महल में रंगीन काँच लगे हुए थे, जिनसे रोशनी छनकर अंदर आती थी और पूरे महल को रोशन कर देती थी। यहाँ दीवारों में दो पाइपलाइन बनाई गई थीं, जिनसे आवाज सीधे नीचे तक पहुँच जाती थी। महल में क्रॉस वेंटिलेशन भी है यानी हवा का प्रवेश और निकास बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से होता था।
लाइटिंग की खास व्यवस्था
लैंप और दीयों से रौशनी करने के लिए दीवारों में छोटे-छोटे होल बनाए गए थे। तेल डालकर दीये जलाए जाते थे और रंगीन काँच से प्रकाश चारों ओर फैलता था। सूरज की दिशा के अनुसार भी रोशनी महल के हर कोने तक पहुँचती थी।
राजा का समर बैडरूम और हैंड फैन सिस्टम
राजा का कमरा इतनी ऊँचाई पर बनाया गया था करीब 300 फीट जहाँ से ठंडी प्राकृतिक हवा आती थी। जालीदार खिड़कियों और हाथ से चलने वाले पंखों हैंड फैन से भी ठंडक बनाए रखने का इंतजाम था। परदों के लिए लोहे की रिंग्स का इस्तेमाल होता था जो अब भी देखी जा सकती हैं।

पुरानी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग तकनीक
किले में 9 बावड़ियाँ यानि कुएँ हैं, जिनमें सबसे गहरी बावड़ी 60 फीट गहरी है। बारिश का पानी छानकर नालियों और जालियों के माध्यम से इन बावड़ियों में जमा किया जाता था। पानी को शुद्ध रखने के लिए इसमें जड़ी-बूटियाँ और तांबे के बर्तन डाले जाते थे।

दीवाने-खास और राजा का सीक्रेट मीटिंग हॉल
- यहाँ एक दीवाने-खास हॉल है, जहाँ राजा रानियों और मंत्रियों के साथ गुप्त बैठकें करते थे। दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी बनी हुई हैं।
- बैठने की व्यवस्था इतनी सुंदर थी कि परिवार के सदस्य खुले हॉल में बैठते थे और राजा अंदर से कार्यवाही करते थे।
कुछ खास बातें
515 साल पुरानी लोहे की रिंग्स आज भी मौजूद हैं जिनका इस्तेमाल परदों के लिए होता था। बाहर के पिलरों पर तुलसी और रुद्राक्ष की मालाएँ सजाई गई थीं। अभी किले में कुछ हिस्सों में मरम्मत और पुनःनिर्माण का काम चल रहा है, जैसे अंडरग्राउंड रास्ते जो जल्द ही फिर से खोले जाएंगे। ग्वालियर किला वाकई में यह साबित करता है कि Old is Gold। यह जगह न केवल स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि हमारे पूर्वजों की वैज्ञानिक सोच और सुंदर कलाकारी को भी दर्शाती है।
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