लकड़ी की कटिंग कर बना रहे शानदार म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट


हिंदुस्तान की लकड़ी का उपयोग कर बनाया ऐसा कमाल का म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट जो देश नहीं विदेशों तक भी प्रसिद्ध है। भारत का सबसे प्राचीन और प्रचलित वाद्य यंत्र ढोलक का निर्माण हाथों की कलाकारी द्वारा बड़े ही अनोखे ढंग से हो रहा है। ढोलक के साथ ये बनाते हैं मृदंग,पखावज,नाद, तबला तथा डमरू भी। इन यंत्रों को बनाने का तरीका आपको भी सोचने पर मजबूर कर देगा। लकड़ी के एक मोटे लक्कड़ की कटिंग कर, किस प्रकार एक लक्कड़ से चार-पांच ढोलक बनाई जाती है। आये जानते हैं आगे इस लेख में।

ढोलक के निर्माण की कला:
सबसे पहले रॉ मटेरियल के रूप में इनके पास मोटे-मोटे लक्कड़ आते हैं, जिनको कटर की मदद से छोटे-छोटे पीस में काट लिया जाता है। तथा फिर इन गोल टुकड़ों को कुल्हाड़ी की मदद से चारों ओर से छिलते है। इस लक्कड़ को ढोलक का रूप देने के लिए एक हैंडमेड मशीन पर ले जाते हैं जिसको ठिया बोलते हैं। वहां पर लक्कड़ को गोल-गोल मोटर की मदद से घुमाकर छीला जाता है और परत को चिकना करते हैं। तथा लकड़ी में विभिन्न प्रकार के डिजाइन भी बनाए जाते हैं।

अभी यह लक्कड़ ढोलक के रूप में ठोस गोला है, इसके अंदर से करीब दो-दो इंच मोटी परत निकाली जाती है। एक विशेष प्रकार की मशीन लकड़ी को अंदर से चीरकर करीब चार या पांच खोकली ढोलक निकाली जाती है। जब लक्कड़ में से एक के अंदर से एक ढोलक निकालते हैं, तो उनका साइज छोटा होता चला जाता है। अब इन प्राप्त ढोलक के जोड़ को चिपका कर फिक्स कर लेते हैं तथा इस पर एक वुडन पुट्टी की जाती है। सूखने के बाद सेंड पेपर से घिस कर फिनिशिंग लाते है तथा फिर उस पर पॉलिशिंग की जाती है, पोलिश की 4-5 लेयर चढ़ाने के बाद उसमें फिनिशिंग तथा शाइनिंग आ जाती है। अब इस में मशीन द्वारा छिद्र करने का कार्य करते हैं, जिनमें नट बोल्ट आदि लगते है।

सुराख आदि का कार्य हो जाने के बाद ढोल को एक विशेष चाक पर चढ़ाकर विभिन्न प्रकार के सुंदर कलर किए जाते हैं। रंग सूख जाने के बाद इन्हें मढ़ाई डिपार्टमेंट में ले जाते हैं, जहां पर इनमें नट बोल्ट तथा रस्सियां और पोढ़ा लगाकर मढ़ाई का कार्य शुरू हो जाता है। इन्हें कसने तथा ढीला रखने से ढोलक में तनाव या खिंचाव आता है, जिससे उसकी ध्वनि परावर्तित होकर मधुर और तेज आवाज में निकलती है। जहां से ध्वनि जनरेट होती है, उसे पौढा बोलते हैं। यह पहले तो किसी जानवर के चमड़े आदि से बनता था; परंतु अब इसे सिंथेटिक फाइबर आदि का प्रयोग कर भी बनाया जाता है।
चमेली ढोलक:
यह एक विशेष प्रकार की ढोलक है, जो एक तरफ से चौड़ी तथा दूसरी तरफ से पतली है। इसे अब से 30-40 साल पहले विदेशों से आयात किया जाता था; परंतु अब इसे निर्यात करते हैं। इसकी विदेश में अधिक डिमांड है। इसमें मढ़ाई का कार्य भी केवल चौड़े वाले सिरे पर होता है तथा झंकार युक्त ध्वनि प्रोड्यूस होती है।

डैरू का निर्माण:
आमतौर पर गंगा घाट की आरतियों पर दिखने वाले बड़े-बड़े डमरूओं को ही डैरू कहते हैं। यह मध्य भाग में से संकीर्ण तथा सिरों पर उभरे हुए होते हैं, जो रास्सियों में लगे कंकर के प्रहार से ध्वनि उत्पन्न करते हैं।इसी प्रकार इनके पास दर्जनों प्रकार के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट का निर्माण किया जाता है, जो हाथों की कलाकारी द्वारा विकसित है।

यदि कोई भाई इनसे संपर्क करना चाहे तो इनकी वेबसाइट www.rammusical.com विजिट कर सकते हैं। तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह जानकारी कमेंट कर अवश्य बताएं तथा ऐसी भी रोचक जानकारी के लिए जुड़े रहे "द अमेजिंग भारत" के साथ। धन्यवाद॥
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