पंजाब के लाम्बा गांव में रहने वाले जैसविन्दर सैनी जी बीते करीब 20 वर्षों से एक अनूठे कार्य में लगे हैं गांव के गंदे पानी की सफाई। उन्होंने खुद का वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट (WWTP) तैयार किया है, जिससे प्रतिदिन करीब 4 लाख लीटर गंदा पानी साफ होकर सिंचाई योग्य बन जाता है। उनका यह मॉडल ग्रामीण भारत में पानी के पुनः उपयोग की एक मिसाल बन चुका है।

कैसे काम करता है जैसविन्दर सैनी का वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट?

इस प्लांट की प्रक्रिया पूरी तरह ग्रेविटी बेस्ड है, यानी इसे चलाने में बहुत कम ऊर्जा की जरूरत होती है। सबसे पहले, पूरे गांव से गंदा पानी एक बड़े स्क्रीनिंग चैम्बर में आता है। इसमें साधारण ग्रिल लगी होती है, जो बड़ी बोतलें और ठोस कचरे को रोक लेती हैं।

इसके बाद, पानी अगले चैम्बर में जाता है जहां एक गोल टैंक की तरह रचना बनी है। यहां पानी रोटेट करता है, जिससे गारा यानी कीचड़ नीचे बैठ जाती है और ऊपर का साफ पानी अलग हो जाता है। जो भी ठोस वेस्ट होता है, वो ऊपरी सतह पर रुक जाता है और हटाया जा सकता है।

तीसरे चैम्बर में बारीक पाइप और छोटे-छोटे फिल्टर लगाए गए हैं। यदि कोई हल्का कचरा अब भी बचा हो तो वह यहीं रुक जाता है और फिल्टर पानी नीचे चला जाता है।

सोलर एनर्जी और इनोवेशन का मेल

इस पूरे सिस्टम में जैसविन्दर जी ने सौर ऊर्जा का प्रयोग भी किया है। उन्होंने 5 हॉर्सपावर की मोटर को सोलर से चलाने की व्यवस्था की है। यही नहीं, उन्होंने एक टरबाइन भी लगाई है, जो पानी के फ्लो से बिजली जनरेट करती है। यह टरबाइन केवल ऑक्सीजन मिक्सिंग के लिए ही नहीं, बल्कि रात के समय लाइटिंग की जरूरतों के लिए भी बिजली पैदा करती है।

उन्होंने एक छोटा ट्रायल करके देखा कि पानी के फ्लो से बैटरी चार्ज की जा सकती है। अब वे इस दिशा में एक छोटा जनरेटर तैयार कर रहे हैं, जिससे रात के वक्त बैटरी चार्ज होकर स्ट्रीट लाइटिंग या अन्य उपयोगों में काम आ सके।


सफाई के बाद पानी का क्या होता है?

जब पानी पूरी तरह से फिल्टर हो जाता है, तब उसका रंग सफेद जैसा साफ हो जाता है। इस पानी को बर्बाद नहीं किया जाता, बल्कि गांव में सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। इसके लिए एक पाइपलाइन गांव के खेतों तक बिछाई गई है, जिससे किसानों को साफ पानी मिल रहा है और भूमिगत जल का दोहन भी कम हो रहा है।


जैसविन्दर सैनी का उद्देश्य और प्रभाव

जैसविन्दर जी का उद्देश्य सिर्फ पानी की सफाई नहीं, बल्कि गांव के पर्यावरण को बेहतर बनाना है। उनका मानना है कि यदि हर गांव में इस प्रकार का छोटा मॉडल लग जाए, तो गांवों की स्वच्छता, स्वास्थ्य और कृषि तीनों में सुधार आ सकता है। उनका यह प्रयास न केवल पर्यावरण हितैषी है, बल्कि एक आर्थिक दृष्टिकोण से भी किफायती है क्योंकि यह स्थानीय संसाधनों और सोलर ऊर्जा पर आधारित है।


निष्कर्ष

जैसविन्दर सैनी जी का यह काम हमें यह सिखाता है कि संसाधनों की कमी में भी नवाचार के जरिए हम बड़े बदलाव ला सकते हैं। उनका वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट आज पंजाब के लाम्बा गांव की पहचान बन चुका है और पूरे भारत के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल है। अगर ऐसे प्रयास हर गांव में हों, तो भारत सच में स्वच्छ और जल-समृद्ध राष्ट्र बन सकता है।