बंगाल के एक छोटे से कारखाने में मोखिब गुप्ता और उनकी टीम एक अनोखा काम करते हैं – जूट की रस्सी से सुंदर और टिकाऊ मैट (चटाई) बनाते हैं। उनका यह हुनर न सिर्फ कारीगरी का बेहतरीन नमूना है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि वे बेकार रस्सियों का इस्तेमाल करके खूबसूरत प्रोडक्ट्स तैयार करते हैं।


मैट बनाने की प्रक्रिया

मैट बनाने की शुरुआत आसपास के किसान भाइयों से रस्सी इकट्ठा करने से होती है। फिर इन रस्सियों को जोड़कर एक लंबी-लंबी चोटी बनाई जाती है। यह चोटी लगभग 1000 हाथ (फीट) तक लंबी हो सकती है। इसके बाद इसे इकट्ठा करके अंदर लाया जाता है और लकड़ी के फ्रेम (वोडेन फ्रेम) में सेट किया जाता है।


इसके बाद सिलाई (स्टिचिंग) का काम शुरू होता है। पहले इसमें थोड़ी सी सूतली से सिलाई की जाती है, फिर एक त्रिकोण (ट्राइंगल) का आकार दिया जाता है। नीचे एक मजबूत ढांचा (फरमा) तैयार किया जाता है, और किनारों पर दो त्रिकोण लगाए जाते हैं। फिर इन त्रिकोणों के आगे छोटे-छोटे बॉक्स बनाए जाते हैं। जहाँ भी बॉक्स लगाए जाते हैं, वहाँ पहले से निशान (मार्किंग) कर दी जाती है, जिससे पूरी चटाई एक सुंदर आकार ले सके।


इस पूरी प्रक्रिया में करीब 72 घंटे लगते हैं। सिलाई के दौरान इसकी मजबूती बनाए रखने के लिए तेल का उपयोग किया जाता है, जिससे सुई आसानी से चल सके और अच्छे से सिलाई कर सके । इसके बाद किनारों की सिलाई की जाती है और बाहर निकली हुई रस्सी को अच्छे से कच्ची से काटकर फिनिशिंग दी जाती है। अंत में इस मैट को दूसरे कमरे में ले जाया जाता है, जहाँ इसे हल्की हीटिंग (२ या ३) सेकंड की दी जाती है। इस प्रक्रिया से इसका रंग और भी आकर्षक हो जाता है। 

डिज़ाइनर मैट की खासियत

मोखिब गुप्ता की टीम सिर्फ सामान्य मैट ही नहीं, बल्कि अलग अलग डेसिंग में मैट भी बनाती है। यह गोल आकार का होता है और इसकी शुरुआत बीच से की जाती है। इसे धीरे-धीरे घुमाकर बड़ा किया जाता है, जब तक कि यह 8 से 10 फीट का न बन जाए। इसके बाद इसे रोल करके पैकिंग की जाती है।

यहाँ के कारीगरों का हर काम हाथ से किया जाता है। वे अलग-अलग तरह के डिज़ाइनों के रंग-बिरंगे (कलरफुल) मैट भी बनाते हैं, जो देखने में बहुत सुंदर लगते हैं।

हुनर और मेहनत का संगम

मोखिब गुप्ता और उनकी टीम की मेहनत से बने ये मैट सिर्फ घरों की शोभा नहीं बढ़ाते, बल्कि उनकी अनोखी बनावट और टिकाऊपन की वजह से लोग इन्हें बहुत पसंद भी करते हैं। इस छोटे से कारखाने में हाथों से बनाई गई चीजों में जो प्यार और मेहनत झलकती है, वह किसी मशीन से बने प्रोडक्ट्स में नहीं मिल सकती। उनकी यह कला न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार देती है, बल्कि जूट की रस्सियों को उपयोग में लाकर पर्यावरण के लिए लाभदायक है।


निष्कर्ष

मोखिब गुप्ता की यह कला और मेहनत उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो अपने हुनर से कुछ नया और अनोखा बनाना चाहते हैं। उनके बनाए हुए मैट न सिर्फ टिकाऊ होते हैं, बल्कि हर एक मैट में उनकी लगन और मेहनत की कहानी भी छुपी होती है।

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