क्या आपने कभी सोचा है कि जो सिरेमिक के कप (मग) टूट जाते हैं, उनका क्या होता है? आमतौर पर हम उन्हें कचरे में फेंक देते हैं। लेकिन अहमदाबाद की एक यूनिट ने इस वेस्ट को एक नई पहचान दी है। यहां टूटे हुए मग और बर्तन एक खास तकनीक से दोबारा उपयोग में लाए जाते हैं और उनसे बनाए जाते हैं नए कप, टाइल्स और अन्य खूबसूरत उत्पाद। आइए जानते हैं इस रोचक प्रक्रिया के बारे में।

जब टूटा हुआ बन जाता है कच्चा माल
सबसे पहले जो मग और सिरेमिक बर्तन टूट जाते हैं, उन्हें एक विशेष मशीन में डाला जाता है। इस मशीन में सिरेमिक की बॉल्स होती हैं जो इन टूटे टुकड़ों को अच्छी तरह से क्रश करके एक बारीक पाउडर में बदल देती हैं। यह पाउडर अब नए उत्पाद बनाने के लिए कच्चे माल की तरह काम करता है।
तीन तरह की मिट्टी का मेल
अब इस पाउडर में तीन तरह की मिट्टी मिलाई जाती है – एक काली मिट्टी और दो अलग-अलग तरह की सफेद मिट्टी। इन चारों को मिलाकर एक ऐसा मिश्रण तैयार किया जाता है जिससे कोई भी नया सिरेमिक उत्पाद बनाया जा सकता है। इस मिश्रण को पानी के साथ मिलाकर लिक्विड फॉर्म में बदला जाता है।

साफ-सफाई और ब्लेजर मशीन
ताकि इस मिश्रण में कोई मोट कण न रह जाएं तो इसलिए इसे छाना जाता है। फिर इस लिक्विड मिट्टी को ब्लेजर नाम की एक मशीन में डाला जाता है। यह मशीन मिट्टी और पानी को अच्छी तरह से मिलाकर एकसमान बनाती है। इसके बाद इसे एक पंप के जरिए फिल्टर प्रेस नाम की मशीन में भेजा जाता है।

जहाँ बनता है मिट्टी का केक
फिल्टर प्रेस में 16 से 18 बॉक्स होते हैं जिनमें यह लिक्विड मिट्टी जाती है। अंदर लगे कैनवास के कारण मिट्टी का पानी अलग हो जाता है और बीच में से ठोस मिट्टी का केक निकलता है। यह केक फिर सुखाया जाता है और टुकड़ों में तोड़ा जाता है।अब इस सूखे केक को पगमिल नाम की मशीन में दो बार कंप्रेस किया जाता है और फिर एक ड्रम में रखा जाता है। इसके बाद इसे जिगर एंड जॉली नाम की मशीन में डालते हैं जो मोटर से चलती है। यहां यह मिट्टी मोल्ड में दबाई जाती है और कप का आकार लेती है।
हैंडल जोड़ना और फिनिशिंग
कप बनने के बाद उसका हैंडल एक अलग मोल्ड में बनाया जाता है। फिर थोड़ी नमी के साथ कप और हैंडल को आपस में जोड़ा जाता है। इसके बाद स्पॉन्ज से किनारों को साफ किया जाता है ताकि कोई भी रफ एज न रहे।

भट्टी में पकाना – मिट्टी से मजबूत कप तक
अब इस तैयार कप को 900 डिग्री सेल्सियस पर भट्टी में रखा जाता है। यह प्रक्रिया दो दिन तक चलती है जिसमें मिट्टी पूरी तरह से पक जाती है। पकने के बाद कप का रंग ग्रे से सफेद हो जाता है और यह इतना मजबूत हो जाता है कि अब यह कभी पानी में नहीं घुलेगा।

ग्लेजिंग और ब्रांडिंग
इसके बाद कप को फिर से साफ किया जाता है और फिर रंग में डिप किया जाता है। इससे कप के ऊपर एक ग्लॉसी और सुंदर परत चढ़ जाती है। फिर इन पर कंपनी का ब्रांडिंग स्टिकर लगाया जाता है जो ये लोग खुद बनाते हैं। इसके बाद कप को फिर से 750 डिग्री पर भट्टी में रखा जाता है ताकि रंग अच्छे से पाक जाए और स्टिकर भी चिपक जाए।

पैकिंग और अन्य उत्पाद
अंत में कप को अच्छी तरह से पैक किया जाता है और बाजार के लिए तैयार किया जाता है। यही तकनीक इस्तेमाल करके वे वाल टाइल्स, रूम पार्टिशन और अन्य सिरेमिक उत्पाद भी बनाते हैं और ये सभी अहमदाबाद में ही तैयार होते हैं।
निष्कर्ष
यह पूरी प्रक्रिया न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है बल्कि यह दिखाती है कि हम वेस्ट मटेरियल से भी खूबसूरत और उपयोगी चीजें बना सकते हैं। यह सस्टेनेबिलिटी की एक शानदार मिसाल है जहां हर टूटा कप भी एक नई कहानी कहता है।
Comments in this topic: