प्रेम किरण पवार जी की पेपर कप बनाने की फैक्ट्री


आज के समय में प्लास्टिक कप की जगह पेपर कप का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। यह हल्के मजबूत और पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं। प्रेम किरण पवार जी की फैक्ट्री में पेपर कप बनाने की एक आधुनिक और ऑटोमैटिक मशीन लगाई गई है जो पेपर रोल से लेकर तैयार पेपर कप तक पूरा काम खुद ही करती है। इस मशीन की तकनीक बिल्कुल एक रेलगाड़ी जैसी है जो बिना रुके तेज़ी से काम करती है। आइए जानते हैं कि पेपर कप कैसे बनते हैं।
1.पेपर रोल की कोटिंग
पेपर कप बनाने के लिए सबसे पहले बड़े रोल में लगे पेपर पर एक खास कोटिंग की जाती है। यह कोटिंग बहुत जरूरी होती है क्योंकि यह पेपर को पानी या चाय-कॉफी से गीला होने से बचाती है।

कोटिंग कैसे होती है
- पेपर को मशीन के अंदर हाइड्रोलिक तरीके से उठाकर रोलर्स पर लगाया जाता है।
- फिर रोलर पर कोटिंग मैटेरियल लगाया जाता है जिससे पेपर पर एक पतली परत चढ़ जाती है।
- यह रोल लगातार घूमता रहता है ताकि कोटिंग बराबर लगे।

कोटिंग को सुखाने की प्रक्रिया
- मशीन के अंदर 10 बड़े हीटर लगे होते हैं जिनमें हर एक की क्षमता 8 किलोवाट होती है।
- यह हीटर कोटिंग को अच्छी तरह सुखाते हैं।
- कामगार यह देखने के लिए कि कोटिंग सूख गई है या नहीं इसे हाथ लगाकर चेक करते हैं।

कोटिंग के बाद क्या होता है
कोटिंग होने के बाद पेपर फिर से एक बड़े रोल में लपेट दिया जाता है जिसे आगे की प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
2. प्रिंटिंग प्रोसेस पेपर कप पर डिज़ाइन कैसे छपता है
- कोटेड पेपर को अब प्रिंटिंग मशीन में लगाया जाता है
- यहाँ कप पर कंपनी का नाम डिज़ाइन या कोई पैटर्न छापा जाता है
- प्रिंटिंग के लिए मशीन में एक स्टील प्लेट (स्टीरो) लगी होती है जिस पर डिज़ाइन उकेरा गया होता है
- प्रिंटिंग के बाद पेपर को सुखाने के लिए UV हीटर का इस्तेमाल किया जाता है
- जब प्रिंटिंग पूरी हो जाती है तब यह रोल आगे कटिंग के लिए भेजा जाता है

3. कटिंग और शेपिंग पेपर को कप के आकार में कैसे बदला जाता है?
- कटिंग प्रोसेस
- अब यह रोल एक बड़ी कटिंग मशीन में लगाया जाता है
- यह मशीन एक बार में 16 पीस पेपर को काटती है
- कटे हुए इन टुकड़ों को पेपर ब्लैंक्स कहा जाता है
पेपर ब्लैंक्स क्या होते हैं
- यह गोल या कर्व शेप में कटे हुए कागज़ के टुकड़े होते हैं जिनसे कप बनता है।
- अब ब्लैंक्स को कप में कैसे बदला जाता है
- इन पेपर ब्लैंक्स को कप बनाने वाली मुख्य मशीन में डाल दिया जाता है
- मशीन पूरी तरह ऑटोमैटिक होती है और कप का निर्माण खुद ही करती है

4. पेपर कप बनाने की प्रक्रिया
- गोंद लगाना
- सबसे पहले मशीन इन पेपर ब्लैंक्स के किनारों पर गोंद लगाती है।
- इससे पेपर एक कप का आकार ले लेता है।
बॉटम तल जोड़ना
- अब कप के नीचे का भाग जोड़ने के लिए 65mm का बॉटम रोल इस्तेमाल किया जाता है।
- मशीन यह बॉटम पेपर को गोल आकार में काटकर जोड़ देती है।
- कर्लिंग ऊपरी किनारा गोल करना
- इसके बाद कप के ऊपरी हिस्से को घुमावदार कर्लिंग बनाया जाता है ताकि यह मजबूत हो और पीने में आसानी हो।
हीटिंग और फिनिशिंग
कप के जोड़ को हीट देकर और दबाकर फाइनल रूप दिया जाता है जिससे यह पूरी तरह तैयार हो जाता है।
5.पैकिंग और सप्लाई
- तैयार कप को काउंटिंग मशीन से गिना जाता है।
- यह कप 50 60 70 या 100 कप के पैकेट में पैक किए जाते हैं
- छोटे कप चाय के लिए और बड़े कप कॉफी के लिए इस्तेमाल होते है।

6. तकनीक से बना प्रोडक्ट
- प्रेम किरण पवार जी की फैक्ट्री में लगी यह मशीन एक बेहतरीन इंजीनियरिंग का उदाहरण है यह पूरी तरह ऑटोमैटिक है और बहुत तेज़ गति से काम करती है
- पेपर रोल से शुरू होकर पेपर कप बनने तक यह मशीन बिना रुके काम करती है
- रेलगाड़ी जैसी तेज़ी से काम करने वाली यह मशीन कम समय में ज़्यादा कप बनाती है।
आज के दौर में प्लास्टिक को हटाकर पेपर कप का उपयोग करना एक पर्यावरण के अनुकूल कदम है प्रेम किरण पवार जी की फैक्ट्री इस दिशा में बेहतरीन काम कर रही है और पेपर कप बना रही है।
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