संजय जी की अनोखी मशीन: कचरे से कोयला बनाने का शानदार तरीका

07 Jan 2025 | Innovation
संजय जी की अनोखी मशीन: कचरे से कोयला बनाने का शानदार तरीका

संजय जी ने एक ऐसी अनोखी मशीन बनाई है, जो नारियल, भूसे और कृषि कचरे को इस्तेमाल करके कोयला (चारकोल) और एक्टिवेटेड चारकोल तैयार करती है। इस तकनीक से सिर्फ कचरे का सदुपयोग होता है, बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना काम पूरा होता है।


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कैसे काम करती है यह मशीन


1. कचरे का उपयोग

नारियल का हरा भाग, भूसा और अन्य कृषि कचरे को मशीन में डाला जाता है।


2. गैस और सिरके का निर्माण

जब मशीन का तापमान 300-350 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है, तो कचरे से गैस निकलनी शुरू होती है। यह गैस स्क्रबिंग प्रक्रिया से गुजरती है और फिर पानी में मिलकर सिरके (विनेगर) में बदल जाती है।


3. प्रदूषण रहित प्रक्रिया

मशीन से निकलने वाली गैस और धुआं बाहर नहीं छोड़ा जाता। इसे मशीन के अंदर ही इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पर्यावरण बिल्कुल साफ रहता है।


4. कोयला तैयार करना

जब तापमान 400 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है, तो कचरा पूरी तरह से कोयले में बदल जाता है। इसे ठंडा होने में समय लगता है। जब तापमान 0 डिग्री तक जाता है, तभी मशीन का दरवाजा खोला जाता है। तैयार कोयला चमकदार और काले रंग का होता है।


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चारकोल और एक्टिवेटेड चारकोल में क्या फर्क है?


चारकोल: इसमें फिक्स्ड कार्बन की मात्रा 70-80% होती है।


एक्टिवेटेड चारकोल: इसमें फिक्स्ड कार्बन 90% या उससे ज्यादा होता है। इसके छिद्र (pores) ज्यादा खुले होते हैं, जिससे यह ज्यादा असरदार होता है।



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खेती और पर्यावरण के लिए फायदेमंद


  • गैस से बनने वाला सिरका खेती में उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • चारकोल का उपयोग जल शोधन, औद्योगिक कामों और औषधियों में किया जाता है।
  • संजय जी की इस तकनीक से केवल कचरे का उपयोग होता है, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।


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संजय जी का योगदान

संजय जी ने अपनी मेहनत और सोच से यह मशीन तैयार की है, जो 500 टन की क्षमता रखती है और 24 घंटे तक लगातार काम कर सकती है। उनकी इस खोज से कृषि कचरे को नई पहचान मिली है और इसे उपयोगी उत्पादों में बदला जा सकता है।


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निष्कर्ष

संजय जी की यह मशीन एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे वैज्ञानिक सोच और सही तकनीक से कचरे का उपयोग किया जा सकता है। यह पर्यावरण संरक्षण और खेती के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो रही है। आने वाले समय में यह तकनीक और भी बड़े स्तर पर अपनाई जा सकती है।


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