लौकी से बनने वाला सितार: सोमनाथ जी का हुनर

02 Mar 2025 | Handicraft
लौकी से बनने वाला सितार: सोमनाथ जी का हुनर

भारत में संगीत बहुत पुराना है। इसमें कई तरह के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट होते हैं। सितार भी ऐसा ही एक खास म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट है। इसे बनाने के लिए खाने वाली लौकी नहीं, बल्कि बड़ी और सख्त लौकी का इस्तेमाल किया जाता है। कोलकाता के सोमनाथ जी यह काम करते हैं। वह कई सालों से सितार बना रहे हैं। इसे बनाने में मेहनत और समय दोनों लगते हैं।

कैसे बनता है सितार?

1. लौकी की तैयारी

सबसे पहले सही आकार की लौकी ली जाती है। इसे डेढ़ महीने तक पानी में भिगोकर रखा जाता है, ताकि इसका अंदरूनी हिस्सा सड़ जाए और सिर्फ खोल (शेल) बच जाए। इससे यह हल्की और मजबूत हो जाती है।

लौकी से बनने वाला सितार: सोमनाथ जी का हुनर_7002


2. कटिंग और डिजाइनिंग

अब इस लौकी को आधे हिस्से में काटा जाता है। फिर इस पर सुंदर डिजाइन बनाए जाते हैं। इससे सितार दिखने में अच्छा लगेगा।

लौकी से बनने वाला सितार: सोमनाथ जी का हुनर_7002


3. लकड़ी जोड़ना

अब इसके ऊपर लकड़ी का एक हिस्सा लगाया जाता है। इसे फेविकोल से चिपकाया जाता है और फिर टूल्स से फिनिशिंग दी जाती है।

लौकी से बनने वाला सितार: सोमनाथ जी का हुनर_7002


4. अंदर से हल्का करना

अब इसे 1-2 दिन तक सुखाया जाता है। इसके बाद इसका अंदर का भाग पतला किया जाता है, ताकि इससे अच्छी आवाज निकले।

5. जोड़ने और रस्सी से बांधने का काम

सितार के बाकी हिस्सों को फेविकोल से चिपकाकर सही जगह पर लगाया जाता है। फिर इसे रस्सी से बांध दिया जाता है। इसे 2-3 दिन ऐसे ही रहने दिया जाता है। बाद में इसे खोला जाता है। अब सितार का आकार तैयार हो जाता है।

लौकी से बनने वाला सितार: सोमनाथ जी का हुनर_7002

6. नक्काशी और पॉलिशिंग

अब इस सितार पर खूबसूरत डिजाइन खोदकर बनाए जाते हैं। इसके बाद चार बार इसकी घिसाई की जाती है, ताकि यह चिकना हो जाए। इसके बाद इसे रंग और पॉलिश किया जाता है।

7. तार और तुब्बा लगाना

आखिर में इसमें 7 तार लगाए जाते हैं। इससे इसकी सही आवाज निकलती है। इसके साथ फाइबर का तुब्बा भी लगाया जाता है, जिससे इसकी आवाज और अच्छी होती है।


कोलकाता का अनोखा हुनर

सोमनाथ जी और उनके जैसे कारीगर इस कला को जिंदा रखे हुए हैं। सितार बनाना आसान नहीं होता, लेकिन इसका संगीत सुनकर सारी मेहनत सफल हो जाती है। यह भारतीय संगीत का एक अनमोल हिस्सा है। सोमनाथ जी जैसे लोग इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जिससे यह कला बनी रहे।

Full Video Link [ CLICK HERE ]

Share

Comment

Loading comments...

Also Read

देसी ताकत का खजाना: सत्तू
देसी ताकत का खजाना: सत्तू

गर्मी का मौसम हो या सर्दी की सुबह,

01/01/1970

Related Posts

Short Details About