मांझा बनाने की कला: रज्जू भाई का 30 साल का अनुभव

06 Jan 2025 | Manufacturing
मांझा बनाने की कला: रज्जू भाई का 30 साल का अनुभव

मांझा, जो पतंगबाजी का अहम हिस्सा है, इसे बनाने में एक खास तरह की मेहनत और हुनर की जरूरत होती है। रज्जू भाई, जो पिछले 30 सालों से मांझा बनाने का काम कर रहे हैं, बताते हैं कि यह काम जितना आसान लगता है, उतना है नहीं। आइए, जानते हैं मांझा बनाने की पूरी प्रक्रिया।

मसाले की तैयारी

मांझा बनाने के लिए सबसे पहले एक बड़े भगोने में मसाला तैयार किया जाता है। इसमें चीनी पाउडर, सुहागा पाउडर, मिर्च पाउडर और चावल का उपयोग होता है। इन सभी चीजों को मिलाकर आटे जैसी लोई तैयार की जाती है। यह लोई तब तक गूंथी जाती है जब तक यह सख्त हो जाए।

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बल्लियों का सेटअप

इसके बाद, जमीन में 7-8 मजबूत बल्लियां गाड़ी जाती हैं। इन बल्लियों के बीच तार को कसकर बांधा जाता है। तार जितना कसा हुआ होगा, मांझा उतना ही बेहतर बनेगा।

तार पर मसाले की कोटिंग

तैयार मसाले को तारों पर हाथ से लगाया जाता है। उंगलियों के सहारे मसाले की कोटिंग तार पर चढ़ाई जाती है। यह प्रक्रिया दो बार की जाती है ताकि तार पर मसाला पूरी तरह चिपक जाए।

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मांझे की मजबूती के लिए उबालना

मांझे को और मजबूत बनाने के लिए एक बड़े भगोने में पानी गर्म किया जाता है। इसमें रंग और शीशा मिलाया जाता है। यह मिश्रण उबालने के बाद तैयार होता है, जिसे मांझे पर लगाया जाता है।

सुखाने और चर्खी पर लपेटने की प्रक्रिया

मांझे को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद धागा सख्त और मजबूत हो जाता है। फिर इसे चर्खी पर मोटर की मदद से लपेटा जाता है। एक चर्खी को भरने में करीब 7-8 मिनट का समय लगता है।

पैकिंग और फैक्ट्री में भेजना

भरने के बाद चर्खियों पर फैक्ट्री का नाम और लेबल लगाया जाता है। दिनभर में लगभग 1000-1500 चर्खियां तैयार हो जाती हैं। फिर इन्हें पैक करके बाजार में भेज दिया जाता है।

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रज्जू भाई का अनुभव

रज्जू भाई की मेहनत और लगन से हर दिन हजारों मांझे तैयार होते हैं। यह उनका 30 साल का अनुभव और समर्पण है, जो उन्हें इस काम में माहिर बनाता है। उनका कहना है कि मांझा बनाना केवल एक काम नहीं, बल्कि एक कला है, जो सही तकनीक और धैर्य से ही संभव है।मांझा बनाने की यह प्रक्रिया केवल पतंगबाजी के शौकीनों के लिए खास है, बल्कि इसे तैयार करने वालों के लिए भी गर्व की बात है।


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